पूछता है कवि, सरहदें किसने बनाईं, किसने सिखाया हिंसक खेल, विजय किसकी, किस पर और क्यों?... कवियों के लिए वर्ष 2024 युद्ध के विरुद्ध, मानवता, प्रकृति और जीवन के पक्ष में खड़ा रहने का वर्ष रहा. इस वर्ष कई श्रेष्ठ कविता संग्रह आए. इतने कि 'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' में वर्ष 2024 की श्रेष्ठ संग्रहों का चयन संपादकीय टीम के लिए सबसे मुश्किल चुनौतियों में से एक था. ऐसे में जिन संग्रहों ने इस सूची में जगह बनाई, उनके रचनाकारों, प्रकाशकों, संपादकों, अनुवादकों को बधाई ...
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शब्द की दुनिया समृद्ध हो, हर दिन साहित्य आपके पास पहुंचे और पुस्तक-संस्कृति बढ़े, इसके लिए इंडिया टुडे समूह ने डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' की शुरुआत की थी. साहित्य, कला, संस्कृति और संगीत के प्रति समर्पित इस चैनल ने वर्ष 2021 में पुस्तक-चर्चा पर आधारित कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की थी... आरंभ में सप्ताह में एक साथ पांच पुस्तकों की चर्चा से शुरू यह कार्यक्रम आज अपने वृहद स्वरूप में सर्वप्रिय है.
भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब 'साहित्य तक' के 'बुक कैफे' में लेखक और पुस्तकों पर आधारित कई कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. इनमें 'एक दिन, एक किताब' के तहत हर दिन पुस्तक चर्चा, 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में किसी लेखक से उनकी सद्य: प्रकाशित कृतियों पर बातचीत और 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में किसी वरिष्ठ रचनाकार से उनके जीवनकर्म पर संवाद शामिल है.
'साहित्य तक' पर हर शाम 4 बजे प्रसारित हो रहे 'बुक कैफे' को प्रकाशकों, रचनाकारों और पाठकों की बेपनाह मुहब्बत मिली है. अपने दर्शक, श्रोताओं के अतिशय प्रेम के बीच जब पुस्तकों की आमद लगातार बढ़ने लगी, तो हमने 'बुक कैफे' को प्राप्त पुस्तकों की सूचना भी- हर शनिवार और रविवार को- सुबह 10 बजे 'नई किताबें' कार्यक्रम में देनीं शुरू कर दी है.
'साहित्य तक के 'बुक कैफे' की शुरुआत के समय ही इसके संचालकों ने यह कहा था कि एक ही जगह बाजार में आई नई पुस्तकों की जानकारी मिल जाए, तो पुस्तकों के शौकीनों के लिए इससे लाजवाब बात क्या हो सकती है? अगर आपको भी है किताबें पढ़ने का शौक, और उनके बारे में है जानने की चाहत, तो आपके लिए सबसे अच्छी जगह है साहित्य तक का 'बुक कैफे'.
'साहित्य तक' ने वर्ष 2021 से 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला शुरू की तो उद्देश्य यह रहा कि उस वर्ष की विधा विशेष की दस सबसे पठनीय पुस्तकों के बारे में आप अवश्य जानें. 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला अपने आपमें अनूठी है, और इसे सम्मानित लेखकों, साहित्य जगत, प्रकाशन उद्योग और पाठकों का खूब आदर प्राप्त है. हमें खुशी है कि वर्ष 2021 में 'साहित्य तक- बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला में केवल 5 श्रेणी- अनुवाद, लोकप्रिय, कहानी, उपन्यास, कविता की टॉप 10 पुस्तकें चुनी गई थीं.
वर्ष 2022 और 2023 में लेखकों, प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों के अनुरोध पर कुल 17 श्रेणियों में टॉप 10 पुस्तकें चुनी गईं. इस वर्ष 2024 में कुल 12 श्रेणियों में 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह सूची आपके सामने आ रही है.
'बुक कैफे' पुस्तकों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता और श्रमसाध्य समर्पण के साथ ही हम पर आपके विश्वास और भरोसे का द्योतक है. बावजूद इसके हम अपनी सीमाओं से भिज्ञ हैं. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक न पहुंची हों, यह भी हो सकता है कुछ श्रेणियों की बेहतरीन पुस्तकों की बहुलता के चलते या समयावधि के चलते चर्चा न हो सकी हो... फिर भी अध्ययन का क्षेत्र अवरुद्ध नहीं होना चाहिए. पढ़ते रहें, किताबें चुनते रहें, यह सूची आपकी पाठ्य रुचि को बढ़ावा दे, आपके पुस्तक संग्रह को समृद्ध करे, यही कामना.
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों को समर्थन, सहयोग और प्यार देने के लिए आप सभी का आभार.
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साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10: वर्ष 2024 के श्रेष्ठ कविता-संग्रह
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* युद्ध के विरुद्ध- विश्व कविता से एक चयन (चार खंड)
- इस वृहत संग्रह की भूमिका विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने लिखी है... शांति को दुनिया का सबसे अच्छा शब्द बताते हुए वे इस संग्रह के लिए चयनकर्ता और संपादक कुमार अनुपम, सह-संपादक ओपी झा की भावना को शब्द देते हुए लिखते हैं -
पूछता है कवि
सरहदें किसने बनाईं
किसने सिखाया हिंसक खेल
विजय किसकी, किस पर और क्यों?
इस संग्रह में दुनिया भर के लगभग 350 कवियों की कविताएं कई विशिष्ट अनुवादकों के माध्यम से पहली बार हिंदी में इतने विशाल रूप में आई हैं. ये कविताएं युद्ध के विरुद्ध कवि मन का वह संदेश देती हैं, जिनमें मर्म, संवेदना, कला, आक्रोश, आवेग और वह स्वप्न शामिल है, जिसे येहूदा आमिखाई अपनी कविता 'जिस जगह हम सही हैं' में कुछ यों व्यक्त करते हैं-
जिस जगह हम सही हैं
वहां वसंत में कभी
फूल नहीं खिलेंगे...
विश्व शांति, समता, सद्भाव, समरसता और मनुष्यता का संदेश देती इन कविताओं को चयनित करने की वजह स्पष्ट करते हुए इस वृहदाकार संकलन के संपादक कुमार अनुपम 'द बीटल्स' के सह-संस्थापक जॉन लेनन की कविता 'स्वप्न' का उल्लेख करते हैं-
"कल्पना करो कि कोई देश नहीं है
यह सोचना कठिन नहीं है
मरने मारने के लिए कुछ न रहा
और कोई मज़हब भी नहीं
कल्पना करो कि सभी शांति से जी रहे हैं अपना जीवन
आप कह सकते हैं कि मैं एक स्वप्नदर्शी हूं
लेकिन मैं ही अकेला नहीं हूं
मुझे भरोसा है कि किसी दिन आप
और यह दुनिया मेरा साथ देगी, एकजुट होकर.
चार खंडों में प्रकाशित इस पुस्तक शृंखला की कविताओं की संक्षिप्त बानगी के लिए हर खंड से किसी एक कवि की रचना का कोई संक्षिप्त अंश आपके लिए... पहले खंड में कवि 'ओत्तो रेने कास्तीय्यो' की कविता 'अराजनीतिक बुद्धिजीवी' का अनुवाद प्रभाती नौटियाल ने किया है. इसकी पंक्तियां-
एक दिन, पूछे जाएंगे
मेरे देश के अराजनीतिक बुद्धिजीवी
मेरे देश के मामूली आदमी द्वारा.
पूछा जाएगा उनसे कि
क्या किया था उन्होंने
जब मातृभूमि
धीरे-धीरे बुझ रही थी
एक छोटी, अकेली
और मीठी आँच की तरह...
दूसरे खंड में शामिल 'डेविड क्राइगर' की कविता 'इराकी बच्चों के नाम हैं' का अनुवाद वेद प्रकाश भारद्वाज ने किया है. चंद पंक्तियां देखें -
इराकी बच्चों के नाम हैं
कि बेनाम नहीं हैं वे बच्चे
कोई नहीं उनमें से बेचेहरा
हर एक के पास है अपना चेहरा
सद्दाम का चेहरा नहीं पहने वे
वे सब अपने चेहरे के साथ हैं
इराक के बच्चों के नाम हैं
उन्हें सब सद्दाम हुसैन नहीं कहते
बेदिल नहीं हैं वे
अपना दिल है उनके पास
स्वप्नहीन नहीं हैं वे
उनके पास हैं अपने सपने
उनके पास है अपना दिल
जो धड़कता है...
तीसरे खंड में शामिल 'मेरी गैब्रेली कोलिन्स' की कविता 'बारूद घर में स्त्रियां' की कुछ पंक्तियों का जिक्र भी जरूरी है, जिनका अनुवाद सोनाली मिश्रा ने किया है. पंक्तियां देखें -
जिन्हें अपने हाथों में समेटना था
जीवन के सारे उल्लासों का आकाश,
जिनकी उंगलियों को अभी गोद में मचलते
शिशुओं के भूखे मुँह में देनी थी वात्सल्य की धार,
या बीमार शिशु के माथे पर धरना था फाहे-सा कोमल स्पर्श,
या उसके घुँघराले बालों के साथ खेलना था,
बेटा हो या बेटी, उसे अपने माँ के प्रेम में होना था रोमांचित!
परंतु अब?
अब उनके हाथ, उनकी उंगलियां,
सनी हुई हैं बारूदों के कारख़ाने में,
उनके विचार, जिन्हें भरनी थी मुक्त उड़ान,
जैसे मँडराते हैं भँवरे खूबसूरत फूलों पर,
जिन्हें चाहिए थी खुराक अपने नवजात विचारों के लिए,
वे घिरी हैं अब जीवन के ख़िलाफ, 'मारो, मारो'...
'युद्ध के विरुद्ध' के चौथे भाग में शामिल हिलेरी लिंडसे की कविता 'सैनिक की माँ' का अनुवाद यादवेंद्र ने किया है. कविता के भाव देखें -
एक औरत है
केवल
किसी की
पत्नी
उसके
नहीं होते
हाथ
देश के लिए
लड़ने के
वास्ते
वह
केवल जनती है
बच्चे
जो
बनते हैं
सैनिक
बेहतर है
होना
बाँझ
बनिस्बत
युद्ध के दिनों में
एक सैनिक की
माँ होने से.
- प्रकाशक: सर्व भाषा ट्रस्ट
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* सुनो जोगी और अन्य कविताएँ | संध्या नवोदिता
- तुम मेरे भीतर
मेरी आत्मा की तरह हो
जिसे मैंने कभी नहीं देखा...
तुम कहते हो और मैं सुनती हूं
मैं कहती हूं और तुम सुनते हो
हम कभी देख नहीं पाते एक-दूसरे को
किसी आवाज जैसा भी कुछ भौतिक नहीं... मनुष्य की गरिमा के साथ प्रेम और साहचर्य को जीती नवोदिता की कविताएं प्रकृति के साथ भी एक अटूट साहचर्य की कामना रखती हैं. प्रेम, प्रकृति और प्रतिरोध उनकी कविताओं में ऐसे घुल-मिलकर आते हैं कि अलग से उनकी पहचान कर पाना या एक दूसरे से विलगाकर देख पाना सम्भव नहीं. संध्या उस भाषा में लिखती हैं जिसे हम रोज़ बरतते हैं. मनुष्य, मनुष्य की गरिमा और मनुष्यता के प्रति उनका लगाव इस संग्रह की कविताओं में साफ दिखता है.
- प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन
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* वासना एक नदी का नाम है | सविता सिंह
- कहना मुश्किल था
मैं पानी में थी या पानी मुझमें
किसी अनजान-सी रोशनी का थी हिस्सा मैं
या रोशनी मेरी
कह नहीं सकती
वैसे इतना गड्ड-मड्ड नहीं था सब कुछ
जितना मैं बता रही हूं... पहले कविता संग्रह 'अपने जैसा जीवन' के प्रकाशन के दो दशकों के बीच जीवन, नींद, रात, स्वप्न, शोक से होती हुई हमारे दौर की यह उल्लेखनीय कवयित्री इस संग्रह की कविताओं में वासना के अर्थ को विस्तार देती हैं. जहां सृष्टि को बचाने के लिए स्त्री को इस नदी में उतरना पड़ता है. संग्रह में मनुष्यों के साथ बाघ, अजगर, सारस, हारिल, नीलकण्ठ, हिरनी, मधुमक्खियों और गिलहरियों के साथ फिलिस्तीन के लिए आकुल मन भी है, जिसमें कवयित्री ने अपने समय की चिंताओं को भी दर्ज किया है.
- प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
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* उदासियों की उर्मियां | अनु चक्रवर्ती
- सब कुछ ख़त्म हो जाने के बाद भी,
अगर प्रेम को रंच-मात्र भी
जीवन के किसी कोटर में
संजो कर
रख सकें हम
तो समझो बड़ा काम किया... स्त्री पीड़ा की चुभन, एकाकीपन और परिवेशगत अनुभवों पर आधारित इस संग्रह की कविताएं स्त्री काव्य-परंपरा पर भी प्रहार करती हैं. इन कविताओं में पर्यावरण के लिए चिंता है, तो अकेले रह जाने का दुख भी. वे अवसाद के बिंब भी रचती हैं, तो कल्पना के क्षितिज पर अपने कोमल पोरों से नव-आशा का सूर्य भी टांकती हैं. सामाजिक यथार्थ, करुणा, भाव और संभावनाओं के सौंदर्य व गाम्भीर्य के मेल-जोल से बुनी ये कविताएं कविता प्रेमियों के लिए नया वितान खोलती हैं.
- प्रकाशक: वेरा प्रकाशन
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* धर्म वह नाव नहीं | शिरीष कुमार मौर्य
- अन्न मांगो उस घर से
जो विपन्न हो..
उजड़ा हो दुर्भिक्ष में उस गाँव जाओ...
उस व्यक्ति से मिलो
जिससे मिलना सबसे सरल हो
और जिसकी तरह जीना
सबसे कठिन... आंतरिक संताप, जीवन की व्याकुलता, महत्त्वाकांक्षा और धार्मिक निस्सारता के बीच साधारणता की महत्ता को स्थापित करती ये कविताएं भद्रक और बुद्ध के बहाने करुणा का महिमा गान करती हैं. भद्रक यह जान चुका है कि बुद्ध के जिस धर्म को निर्दोष और सर्वोत्तम कह कर महिमा-मंडित किया गया है, वह कुलीनों और वर्चस्ववादी शक्तियों का एक पैंतरा भर है. मैत्रेय बुद्ध महज़ एक सम्भावना हैं. मानव संवेदना को प्रलाप और वैचारिकता के नारे से दूर रहने वाली उल्लेखनीय कृति.
- प्रकाशन: राधाकृष्ण प्रकाशन
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* संयोगवश | आशुतोष दुबे
- जब वे नहीं रहे
तो कुछ को याद आया कि वे थे...
वे किसी के काम के नहीं थे
उनका होना एक असम्भवता थी...
इस दुनिया में वे एक छाया की तरह आए और गए
उनकी तरफ़ किसी का ध्यान नहीं गया
और जाए इसकी कोई कोशिश उन्होंने नहीं की...
वे गर्म रेत में पसीने की बूंद की तरह गए
वे सूखते फूल की सुगन्ध की तरह गए
वे सम्बन्ध से ऊष्मा की तरह गए
वे ऐसे गए कि जैसे थे ही नहीं
जितना हो सके
वे अपने जाने में हुए... हमारे जीवन का एक उप-जीवन भी होता है, जो दिखाई देने वाले क्रियाकलापों के समानान्तर हमारे अंतर्लोक में होता है. इस संग्रह का कवि अपनी कविताओं में वर्तमान की स्थूलताओं से इतर अतीत का आलोक-वृत्त रचता है, और पढ़ने वाले को किसी अदेखे-अछूते लोक में लिवा ले जाता है. दुबे की कविताएं महीन रेशों में धड़कते उस जीवन की कविताएं हैं, जिन्हें दैनिक दुश्चिन्ताओं और दुष्कामनाओं के शोर से बाहर आकर पढ़ना होता है. ये कविताएं पाठक को उनके अनुभव-जगत और यथार्थ के दूसरे पहलू से अवगत कराती हैं.
- प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
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* अयोध्या में कालपुरुष | बोधिसत्व
- हवा वाली खिड़कियां बन्द कर दी गईं
लेकिन एक खिड़की उस कठोर कारागार में ऐसी
अब भी खुलती थी
पीछे की पहाड़ी की ओर
बुद्ध आते थे वहां और खड़े होते थे
उस खिड़की के सामने... एक ऐसे दौर में जब अंधकार, हिंसा, उत्पीड़न, नियंत्रण, सन्देह, बेबसी और अनिश्चय से भरे संसार में मनुष्य होने के किसी सार-तत्त्व की खोज एक कठिन चुनौती है, तब ये गाथा कविताएं कविता और समय के रिश्तों की पड़ताल करती हैं. मिथक कथाओं, जनश्रुतियों, और वर्तमान के रिश्तों की पड़ताल से इन कविताओं में समय बोध का एक विराट फलक उपस्थित है. समकालीन कविता के रूढ़ मुहावरों को तोड़ते हुए कवि सृजन के आदिम विश्वास को कायम रखने में सफल है.
- प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
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* उमराव जान | प्रभात पाण्डेय
- ये क्या किया उमराव जान
तुमने ये क्या किया
सरेआम मेरे शाने पर सिर धर दिया
अपनी मुहब्बत का इस क़दर इज़हार'
जुल्फें बिखर-बिखर बेक़रार-बेक़रार
और गुनगुनाती तुम वही गीत बार-बार
जंगल-जंगल सुनसान भयो
सुन पाई ऐसी बांसुरिया... उमराव जान लोक आख्यान में समाई ऐसी शख्सियत है जिसने इतिहास और समय के साथ साथ सफर किया है पर जिसके पैरों के निशान कहीं नहीं दिखते, इतिहास में उसकी कोई जगह नहीं, सल्तनत से उसका कोई वास्ता नहीं, पर जो गुमशुदा-सी ज़िंदगी बसर करते हुए भी तमाम लोगों के लिए दिलों के चराग रोशन करती रही, जमाने को ज़िंदगी के सलीके सिखलाती रही... स्मृतियों के गर्द-ओ-गुबार में जिसकी नियति धुंधलाती रही उसी के बहाने स्त्री की नियति का लेखा-जोखा करता प्रबंध-काव्य.
- प्रकाशक: सर्व भाषा ट्रस्ट
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* 'एक परित्यक्त पुल का सपना' | सौम्य मालवीय
- फ़लस्तीन तुम्हारे बच्चे
आसमान में उड़ रहे हैं साये-साये बनकर
इस तनी हुई नीली चादर में
अंगुश्त भर भी जगह नहीं
जो उनकी सिहरन छुपा सके... इस संग्रह की कविाएं बीते दो-एक दशकों में उपजी बेचैनियों और निराशाओं को स्वर देने का प्रयास करती हैं. जैसे-जैसे कविता, विचार और संवेदना में भ्रम और कुहासा बढ़ा है; दृश्य के धुंधलाने के साथ दृष्टि भी क्षीण हुई है, ये कविताएं उसी दृष्टि की खोज हैं. इन कविताओं में एक ऐसे कवि की यात्रा है जो गणित, विज्ञान, दर्शन और समाजशास्त्र की गलियों में भटकते हुए बार-बार कविताओं के दयार पर लौटता है. यह लौटना ही कवि का अरमान भी है और उसका निकष भी.
- प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन
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* कमाल की औरतें | शैलजा पाठक
- बुद्धि से ख़त्म औरत
देह से चाही गई
आँख से अन्धी हो जाती
कोख से बाँझ
पीठ से झुक जाती हैं
पेट से लटक जाती है उम्र... इस संग्रह में सब तरह की औरतें मौजूद हैं- पीड़ित, अकेली, विद्रोही, दाम्पत्य को छिन्न-भिन्न करने को आतुर भी, और दाम्पत्य में खप जाने को तत्पर भी- इनमें से कई को प्रचलित स्त्री-विमर्श अच्छे से जानता है, लेकिन कुछ ऐसी भी हैं जिनके दुख पर आधुनिक दृष्टि उस तरह नहीं पड़ी. जैसे नैहर और ससुराल के बीच धूल उड़ाती पगडंडियों पर समय से पहले बूढ़ी होती बहन-बुआओं के असंख्य दुख, जो सबसे अदेखे रह जाते हैं. संग्रह की कविताओं को पढ़ना स्त्री दुख के किसी टापू पर अचानक पहुंच जाने जैसा है.
- प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
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वर्ष 2024 के 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' में शामिल सभी कवियों, लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों और प्रिय पाठकों को बधाई!
हम स्पष्ट कर दें, यह क्रमानुसार रैंकिंग नहीं है. टॉप 10 सूची में स्थान बनाने वाली सभी पुस्तकें आपकी 'हर हाल में पठनीय' पुस्तकों में शामिल होनी चाहिए. वर्ष 2024 में कुल 12 श्रेणियों की टॉप 10 पुस्तकों की यह शृंखला 31 दिसंबर तक जारी रहेगी.