साहित्य और संस्कृति की उर्वर धरती छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 12 से 14 दिसंबर तक चलने वाले रायपुर साहित्य महोत्सव का शुक्रवार को पहला दिन था.
महोत्सव की शुरुआत अपने निर्धारित समय से एक घंटे देर से हुई. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने दीप प्रज्जवलित कर साहित्य महोत्सव का उद्घाटन किया. वे बड़े इसरार के साथ लेखक विनोद कुमार शुक्ल का हाथ पकड़कर स्वयं उन्हें मंच पर ले गए. इस उत्सव के महत्व और जरूरत के बारे में बोलते हुए रमन सिंह ने कहा, 'साहित्यह से मेरा ज्यादा वास्ता नहीं है, लेकिन मैं राजनांदगांव से ताल्लुक रखता हूं. राजनांदगांव वह धरती है, जिस पर मुक्तिबोध का आशीर्वाद है. इसलिए उस सांस्कृतिक मिट्टी का आशीर्वाद मुझे भी मिला हुआ है.'
हालांकि उन्होंने बीच-बीच में अपनी सरकार की उपलब्धियां भी गिनाईं, लेकिन फिर भी रमन सिंह का वक्तव्य साहित्य और संस्कृति पर ही केंद्रित रहा. उन्होंने कहा कि वे छत्तीसगढ़ को न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े साहित्यिक-सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित करना चाहते हैं.
रमन सिंह ने अपने पूरे भाषण के दौरान हिंदी के लोकप्रिय जनपक्षधर वामपंथी कवि गजानन माधव मुक्तिबोध का कई बार जिक्र किया. उन्होंने हिंदी लेखक विनोद कुमार शुक्ल को छत्तीतसगढ़ का गौरव बताया. इस वक्त केंद्र और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार है और वैचारिक रूप से मुक्तिबोध राष्ट्रवादी दक्षिणपंथी विचारधारा के धुर विरोधी रहे हैं. उनके समूचे साहित्य में प्रतिरोध का यह स्वर मुखर है. इसके बावजूद एक दक्षिणपंथी सरकार का साहित्य उत्सव विरोधी विचारधारा वाले कवियों को सम्मान देकर एक पूर्वाग्रहमुक्त सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मंच बना.
इस वैचारिक द्वंद्व पर लेखक विनोद कुमार शुक्ल कहते हैं, 'विचारधारा जो भी हो, अगर लेखक को बड़े पाठकों तक पहुंचने का मंच मिल रहा है तो उसका प्रयोग किया जाना चाहिए. हां ये ध्यान रखना जरूरी है कि लेखक की आवाज और उसकी प्रतिबद्धता पर कोई आंच न आए.'