हिंदी के मशहूर कवि और आलोचक उदयन वाजपेयी ने कहा है कि सारी कलाओं, साहित्य और लेखन में ब्राम्हणों और ऊंची जातियों का वर्चस्व रहा है, यह सच नहीं है. यह ब्राम्हणों का षड्यंत्र नहीं है.
रायपुर साहित्य महोत्सव में 'कलाओं की अंतर्निभरता' सत्र में हिस्सा लेते हुए वाजपेयी ने कहा कि हिंदी के एक बड़े वर्ग में ऐसी अवधारणा फैली है जो सही नहीं है. मैं यह बात आधारहीन ढंग से नहीं कह रहा हूं. मेरे पास इसे सिद्ध करने के लिए तथ्य और प्रमाण हैं. धर्मपाल अपनी पुस्तक में बाकायदा तथ्यों और प्रमाणों के साथ इस बात को सिद्ध करते हैं.
वाजपेयी ने कहा कि भारतीय समाज एक प्रबुद्ध समाज रहा है और उसने सभी वर्गों और व्यक्तियों को अलग-अलग तरह का ज्ञान और शिक्षा दी है. उन्होंने कहा कि खुद अंग्रेजों का अध्ययन और आंकड़े यह कहते थे कि ब्रिटिश काल में 70 फीसदी वह आबादी, जिसे आज हम दलित कहते हैं, वह स्कूल जाती थी.
लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि हम अपने इतिहास को अंग्रेजों की नजर से ही देखने के आदी हो गए हैं. यह पूछने पर कि 70 फीसदी दलितों के स्कूल जाने की बात तो अंग्रेजों ने नहीं लिखी है, उदयन ने कहा कि वे बहुत शातिर और समझदार लोग थे. वे इस तथ्य को जानते थे लेकिन उन्होंने कभी लिखा नहीं.
उदयन वाजपेयी के इस बयान पर एक खास समूह में थोड़ी नाराजगी और गुस्सा भी दिखा. रंगकर्मी ए के पंकज ने कहा कि क्या आप यह कहना चाहते थे कि 19वीं सदी के पहले भारतीय समाज एक समतामूलक न्यायपूर्ण समाज था और यहां कोई असमानता, भेदभाव और छुआछूत नहीं था.
बिलासपुर से आए मराठी साहित्य परिषद के अध्यक्ष कपूर वासनिक ने बाजपेयी के इस बयान पर काफी नाराजगी जाहिर की और इसे ऊंची जातियों के लोगों का अहंकार बताया जिससे वे आज तक नहीं निकल पाए हैं.