पार्थ बनर्जी...परिचय जानने के लिए गूगल पर सर्च करने पर कई पेज खुलते हैं. इंटरनेट पर इस नाम के लोगों की भरमार है. इसमें से कई लोग तो अमेरिका में भी रहते हैं. पर जो पहला पेज खुलता है विकीपीडिया का, उसकी पहली पंक्ति कुछ इस तरह है. डॉ पार्थ बनर्जी, मानवाधिकार कार्यकर्ता, लेखक, शिक्षक, मीडिया समीक्षक और संगीतकार. कोलकाता में पले-बढ़े, अभी न्यूयॉर्क में रहते हैं और भारत की लगातार यात्राएं करते रहते हैं. इसके बाद उनका एक लंबा परिचय है.
पार्थ बनर्जी कोलकाता में पलेबढ़े. पिता जितेंद्र नाथ बनर्जी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के जमीनी कार्यकर्ता थे और उसकी राजनीतिक शाखा जनसंघ, जो अब भारतीय जनता पार्टी के रूप में देश पर शासन कर रही है, से जुड़े थे. पार्थ बनर्जी को पहली सियासी शिक्षा अपने पिता से ही मिली. बाद में अपने मामा बुद्धदेव भट्टाचार्जी के प्रभाव में वह कांग्रेस की तरफ झुके.
कॉलेज की शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गंवई स्कूल में चार साल तक पढ़ाया. बाद में साल 1985 में वह जैविक विज्ञान में शोध के लिए अमेरिका चले गए. वहीं उन्होंने इलीनॉयस स्टेट यूनिवर्सिटी से प्लांट बायोलॉजी में स्नातकोत्तर की दूसरी डिग्री हासिल की. साल 1992 में उन्होंने साउदर्न इलीनॉयस यूनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री ली. इसके बाद वह एल्बनी में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च साइंटिस्ट के तौर पर काम करने लगे.
साल 1999 में डॉ पार्थ बनर्जी ने विज्ञान का अपना करियर छोड़ दिया और तीसरी मास्टर डिग्री के लिए कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म में दाखिला ले लिया. अमेरिकन मीडिया और एथिक्स की समझ के लिए यहां उन्हें प्रतिष्ठित सेवेलॉन ब्राउन अवार्ड से सम्मानित किया गया. यहीं से वह स्क्रिप्स हॉवर्ड फेलोशिप के तहत अन्य साथी छात्रों के साथ इजराइल, फिलिस्तीन और जॉर्डन गए, उस इलाके में धार्मिक व्यवहार के अध्ययन के लिए.
इस दौरान मीडिया में किए गए अपने योगदान के लिए वह इंडिपेंडेंट प्रेस असोसिएशन और इमीग्रेंट सेविंग बैंक अवार्ड से नवाजे भी गए. उन्होंने एबीसी, न्यूयॉर्क टाइम्स, सीएनएन, द प्रोग्रेसिव के अलावा भारत और बंगलादेश में भी कई पत्रपत्रिकाओं में लिखा. नोम चोमस्की के साथ उनका साक्षात्कार काफी चर्चित रहा.
पर मुख्यधारा की मीडिया में पूंजी के बढ़ते प्रभाव व दुनिया भर में विस्थापितों की समस्या को देखते हुए वह अध्यापन गतिविधियों की तरफ मुड़ गए. बाद के दौर में एक विज्ञान पत्रकार, सामाजिक विषयों के जागरूक लेखक, मानवाधिकार कार्यकर्ता, शिक्षक, श्रमिक अधिकारों के समर्थक और विस्थापन विषयों के विशेषज्ञ के रूप में उन्होंने दुनियाभर में अपनी पहचान बनाई.
वह अंग्रेजी और बंगला के चर्चित लेखक हैं. उनके संस्मरण बंगला में घोटीकहिनी नाम से छपा. रवींद्र संगीत पर उनका अलबम भी आ चुका है. पार्थ बनर्जी अभी पिछले दिनों दिल्ली आए थे, अपनी बंगला कहानियों के अंग्रेजी में छपे संकलन ‘म्युजिक बॉक्स एंड मूनशाइन’ के लोकार्पण के सिलसिले में. इस किताब को रुब्रिक पब्लिशिंग ने छापा है और इसमें बंकिम चंद चट्टोपाध्याय से लेकर सुनील गांगुली तक कुल 18 साहित्यकारों की कहानियां हैं. साहित्य आजतक ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए पार्थ बनर्जी से अनौपचारिक बातचीत की.
यह पूछे जाने पर कि विज्ञान, उद्योग, शिक्षा और अब साहित्य, आपने हर समय जीवन में अलग-अलग क्षेत्र चुने, कोई वजह? पार्थ बनर्जी का जवाब था कि हर उम्र व क्षेत्र में सीखने के कई मौके हैं. एक तरह से व्यापक शिक्षा के कई स्तर....अपने अनुभवों से मैं वर्तमान शिक्षा पद्धति में हर स्तर पर बदलाव का हिमायती हूं. अपने जीवन से मैंने उदाहरण प्रस्तुत करने की एक कोशिश की है.
यह पूछे जाने पर कि आप तो एक शिक्षाविद हैं. फिर आपको साहित्य से जुड़ने, वह भी बंगला कहानियों का संकलन कर उनके अंग्रेजी अनुवाद की आवश्यकता क्यों महसूस हुई. इसकी कोई खास वजह? पार्थ बनर्जी का त्वरित जवाब था, क्योंकि मैं इस काम को साम्राज्यवाद विरोधी सांस्कृतिक प्रतिरोध आंदोलन कहता हूं. अगर मुझे हिंदी या तमिल भाषाओं की इतनी समझ होती तो मैं इन भाषाओं में भी यही काम करता.
इस सवाल पर कि आपका यह बंगला संकलन अब अंग्रेजी में भी है, आपको अपने इस संकलन ‘म्युजिक बॉक्स एंड मूनशाइन’ की कहानियों में से किस लेखक की कौन सी कहानी अधिक पसंद आई? पार्थ बनर्जी का जवाब था, "यों तो सभी कहानियों की अपनी खासियत है, पर टैगोर की कहानी 'एक पत्नी का पत्र', विभूति भूषण बंदोपाध्याय की कहानी 'पानी का झोंका', सैयद मुज़्तबा अली की कहानी 'नून पानी' सबसे अच्छी लगीं."
बंगाल के अपने अनुभवों के बाद पार्थ बनर्जी अमेरिका के अपने अनुभवों पर भी एक किताब लिख रहे हैं. उनका मानना है कि जलवायु परिवर्तन, अंधाधुंध कमाई और संपत्ति संबंधी असमानताएं दुनिया के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती हैं, जिसके समाधान के लिए वैसे तो काफी देर हो चुकी है, फिर भी अगर मानवता और जीवन को बचाना है तो इस दिशा में तुरंत प्रयास किए जाने चाहिए.
आपके पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, वामपंथी संगठन, अमेरिका की पूंजीवादी नीतियों सहित नोम चोमस्की के काम का विस्तृत अनुभव है? आपकी नजर में दुनिया के सामने इस समय सबसे बड़ा खतरा क्या है, और क्या साहित्य के पास इसे सुलझाने की क्षमता है? पर उनका जवाब था, "दुनिया की सबसे बड़ी समस्या जलवायु परिवर्तन, संपत्ति असंतुलन और एकतरफा ऐतिहासिक आय है. इसका समाधान न ढूंढा गया तो दुनिया और मानव सभ्यता को विनष्ट होने से नहीं बचाया जा सकता."