देश में भूख है, बदहाली है, गरीबी है, असुरक्षा है और ग़ैर-समानता की गहरी खाई है. लेकिन लोकतंत्र का दुर्भाग्य देखिए, चुनाव में नेताओं का विमर्श और भाषण गधे के स्तर पर उतर आया है. गधा किसी को मज़ाक का विषय लग रहा है तो किसी को प्रेरणा का स्रोत. बातें बैल, गाय और कुत्तों की भी हो रही है. राजनीति में अब पशुओं के अलंकारों के सहारे चुनाव के रथ हांके जा रहे हैं.
ऐसे में, जब गधों से पूछे बग़ैर नेताओं ने गधों को अच्छे और बुरे, मज़ाक और नज़रिए में बांट दिया है, आजतक के मंच पर इकट्ठा हुए देश के तमाम बड़े मंचीय कवि जिन्होंने गधों और राजनेताओं के तालमेल को अपनी कविताओं में पिरोकर श्रोताओँ के सामने रखा.
'गदहा सम्मेलन' में हास्य और व्यंग्य के कवियों ने जमकर नेताओं और राजनीतिक दलों पर तंज़ किए. आजतक के इस मंच पर देश और दुनियाभर के जाने माने हिंदी-उर्दू हास्य कवि इकट्ठा हुए. इनमें डॉक्टर पॉपुलर मेरठी, वेद प्रकाश वेद, अरुण जैमिनी, सुनील साहिल, रमेश मुस्कान, बेबाक जौनपुरी, दीपक गुप्ता, पवन आगरी, डॉक्टर सुनील जोगी,महेंद्र अजनबी, तेज नारायण शर्मा बेचैन, प्रवीण शुक्ला जैसे नाम शामिल थे.
इस सम्मेलन में डॉक्टर सुनील जोगी ने गधों पर शानदार कविता सुनाई. बस्ती गधों की हो गई, जंगल गधों का हो....इतने दलों के बीच में एक दल गधों को हो.
अपनी हास्य रचनाओं और शैली की वजह से दुनिया भर में चर्चित पॉपुलर मेरठी ने सुनाया
तू इन्हें देख मत हिकारत से, पत्थरों में गौहर भी होते हैं
सारे लीडर गधे नहीं होते, इनमें कुछ बाहुनर भी होते हैं.
उन्होंने नेताओं की फितरत के बारे मे सुनायाः-
कभी इसे, कभी उस पार्टी को छोड़ देता हूं.
मैं सबके वास्ते अपनी खुशी को छोड़ देता हूं.
जहां के लोग मेरी असलियत को पहचान जाते हैं,
कसम भगवान की मैं उस गली को छोड़ देता हूं.
हास्य कवि बेबाक जौनपुरी ने इस सम्मेलन में गधों पर कविता सुनाई. गधा आप या मैं सुनो....इसमें कुछ संदेह...नकली चढ़ गए मंच पर, हम तो रहे विदेह...कहे गधा ये चीख कर बंद करो तकरार..हम पर अब लादो नहीं राजनीति का भार...
गदहा सम्मेलन: कहे गधा ये चीख कर बंद करो तकरार...
कवि वेद प्रकाश ने अपनी टिप्पणियों से श्रोताओं को खूब गुदगुदाया. उन्होंने कहा कि जो दूध के धुले थे सबका ईमां मचल गया...जिसके पास जो भी दांव था वो चल गया. टीपू और मोदी के दो गधों की लड़ाई में, मायावती का देखिए हाथी कुचल गया.
गदहा सम्मेलन: गधों की लड़ाई में हाथी कुचल गया
इस सम्मेलन में कवि अरुण जैमिनी ने एक अलग अंदाज में राजनीति में छाए गधों पर कविता सुनाई. गधे ने जंगल में सभा बुलाई, गधा चर्चा में था इसलिए भारी भीड़ आई. जिसकी लाठी उसकी भैंस से शुरू हुई राजनीति, कब भैंस के आगे बीन बजाने लगा पता ही नहीं लगा.
गदहा सम्मेलन: गधे ने जंगल में सभा बुलाई, गधा चर्चा में था तो भीड़ आई
कवि रमेश मुस्कान ने अपने सपने के जरिए गधे की अभिलाषा जाहिर कीं. उन्होंने कहा कि रात गधा सपने में गधा, उसने मुझसे ये फरमाया...नेता मुझे बना दो भैया, डूब रही भारत की नैया...
गदहा सम्मेलन: रात गधा सपने में गधा, उसने मुझसे ये फरमाया...
हास्य कवि सुनील साहिल की जब बारी आई तो उन्होंने भी श्रोताओं को निराश नहीं किया. उन्होंने सुनायाः- कोई मन की बात करते हैं, कोई मंकी सी बात करते हैं...यूपी में डॉन की बात होती थी कभी, आजतक डंकी की बात करते हैं.
गदहा सम्मेलन: कोई मंकी सी बात करते हैं, कोई डंकी की बात करते हैं...
हास्य कवि महेंद्र अजनबी ने भी इस सम्मेलन में श्रोताओं को हंसाया. उन्होंने सुनाया, सब नहीं जाता सहा, किसने किसको क्या कहा. उसकी भी एक बार सूध लो... उसे ये बात पसंद है या नहीं, एक बार गधे से भी पूछ लो.
गदहा सम्मेलन: उसे ये बात पसंद है या नहीं, एक बार गधे से भी पूछ लो
इस सम्मेलन में कवि दीपक गुप्ता ने मज़ेदार कविता सुनाई. उन्होंने सुनाया, नेता ने गधे से पूछा- कहते हुए श्रीमान, आप हिंदू हैं या मुसलमान? इतना सुनते ही गधे का स्वाभिमान जागा, उसने उलटा नेता से सवाल दागा. कहते हुए माई बाप, गधा मैं हूं या आप?
गदहा सम्मेलन: नेता ने गधे से पूछा- कहते हुए श्रीमान...
इस सम्मेलन ने कवि प्रवीण शुक्ला ने भी श्रोताओं को निराश नहीं किया. उन्होंने सुनाया, राजनीति में नहीं है आजकल नीति कोई, यहां बेरियों के जज़्बात मिल जाएंगे. बिना मतलब यहां काम नहीं होता कोई, मतलब हो तो दिन रात मिल जाएंगे. नेताजी ने वोटरों से कहा यदि चाहोगे तो एक-एक गधा फ्री में दिलवाएंगे.
गदहा सम्मेलन: नेताजी ने कहा वोटरों से,चाहोगे तो गधा फ्री में दिलवाएंगे