रायपुर साहित्य महोत्सव में अशोक वाजपेयी ने कहा कि हिंदी न तो हमारी राष्ट्रभाषा है और न ही इसे राष्ट्रभाषा होना चाहिए. भारत में कुछ भी एकवचन नहीं है. वेद भी एक नहीं, चार हैं. भारत विविधताओं और बहुलताओं का देश है. खान-पान, संस्कृति और पहनावे से लेकर यहां सबकुछ विविधतापूर्ण है.
उन्होंने कहा, 'यह बहुत मूर्खतापूर्ण चिंतन और विलाप है कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं है. आखिर हिंदी को राष्ट्रभाषा क्यों होना चाहिए. अगर हिंदी को राष्ट्रभाषा होना चाहिए तो फिर तमिल, मलयालम, तेलगू और कन्नड़ भाषाओं को राष्ट्रभाषा क्यों नहीं होना चाहिए, जिसमें इतना उम्दा साहित्य लिखा जा रहा है.' उन्होंने यूआर अनंतमूर्ति के हवाले से कहा कि अगर हम विविधता के पीछे भागेंगे तो एकता की ओर जाएंगे और अगर एकता के पीछे भागेंगे तो विविध और अलग-थलग हो जाएंगे.
उन्होंने कहा कि एकता का राग अलापने वाली शक्तियां हमारे देश के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हैं. भारत सिर्फ एक देश नहीं है. यह दुनिया की गिनी-चुनी और सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है. भारत की खासियत उसकी विविधता में है, एकता में नहीं.