कई बार जिंदगी हमें ऐसे रास्ते पर लाकर खड़ी कर देती है जिसपर चलने के लिए हम तैयार नहीं होते. लेकिन कोई और रास्ता नहीं होता और हम खुद को समेटते हैं, लड़खड़ाते ही सही उस रास्ते पर कदम बढ़ाते हैं. हमें अलग तरह का अनुभव होता है. कभी अच्छा तो कभी बुरा लेकिन, रोमांचक ज़रूर होता है. जीवन से हमारी जो भी आशाएं और उम्मीदें हैं, ज़रूरी नहीं कि वो पूरी ही हों.
इरफान खान ने अपनी बीमारी के बारे में खुलासा करते हुए जो ट्वीट किया है उसका सार यही है. इरफान ने अमेरिका की मशहूर लेखिका और पत्रकार मार्गरेट मिशेल की किताब 'गॉन विद द विंड' की एक लाइन “Life's under no obligation to give us what we expect.” लिखकर अपनी मानसिक अंतर्दशा को समझाने की कोशिश की है. 'गॉन विद द विंड' पर इसी नाम से 1939 में एक फिल्म बनी थी. इस फिल्म को अलग-अलग कैटगरी में 8 ऑस्कर मिले थे.
मार्गरेट मिशेल की इस लाइन का मतलब समझने की कोशिश करें तो हम सभी के जीवन में ऐसे पल आते हैं जब हमें ऐसे अनुभवों से गुज़रना पड़ता है. जब हमें इस बात का अहसास होता है कि सब कुछ हमारी मर्जी के मुताबिक नहीं हो सकता है. हमारे जीवन पर हमारा ही कोई नियंत्रण नहीं होता है. इससे और आगे बढ़ते हैं तो पता चलता है कि हमारा अस्तित्व किसी और का दिया हुआ है और मृत्यु भी मर्जी के मुताबिक नहीं होगी.
फिर हम विचार करते हैं और खुद को खाली पाते हैं. दिमाग सन्न हो जाता है. कई सारे सवाल हमारे सामने नाचने लगते हैं. कि मेरा इस दुनिया में क्या काम है? क्या मेरा जन्म किसी कम्पनी में नौकरी करने के लिए हुआ था? क्या जो काम मैं कर रहा हूं वही करने के लिए इस दुनिया में आया था? अगर नहीं करूंगा तो क्या कुछ बदल जाएगा? मैं वो क्यूं कर रहा हूं जो सब कर रहे हैं या फिर जो सब कर रहे हैं वो मुझे भी क्यों करना चाहिए? इत्यादि. ऐसे विचारों से कुछ नहीं बचता जिसके सहारे जीवन को एक अर्थ दिया जा सके. हर तरफ शून्य दिखता है. सिर्फ शून्य.
इसे अस्तित्ववाद का संकट कहते हैं. दरअसल जीवन अपने आप में निरर्थक ही है. हम इसपर सार्थकता का चोला ओढ़ते हैं क्योंकि हम निरर्थकता को गलत मानते हैं और इस चक्कर में जीवन को ज़बरदस्ती एक अर्थ देने की कोशिश करते हैं. इस संकट पर कई दार्शनिकों ने विचार किया.
सात्रे का मत था कि, यूं तो जीवन के सारे मतलब खोखले होते हैं लेकिन अपने मन के मतलब को खोजना और उसी धुन आगे बढ़ना ही जीवन की सार्थकता है. आपका जीवन का अर्थ वही है जो आप स्वयं खुद को देते हैं. भले ही आपके जीवन को लेकर आपका निर्णय आपकी परवरिश और रहन-सहन से प्रेरित हो लेकिन वह आपका होना चाहिए. किसी और का सुझाया हुआ नहीं. सही हो या गलत बस आपको अच्छा लगना चाहिए और जब आप मरने वाले होंगे तो आपको एहसास होगा कि अभी तक आप ज़िंदा थे.
अल्बर्ट कामू का मानना था कि, सत्य की खोज मिथ्या है. हम खोजते वही हैं जो हमें पसंद होता है. सत्य नहीं. अपने मशहूर एसे 'मिथ ऑफ सिसाइफ़स' में उन्होंने अस्तित्ववाद पर लिखा. उनका कहना था कि धारा के विपरीत चलिए तभी आपको स्वयं के अस्तित्व का अहसास होगा. धारा के साथ बहेंगे तो ना आपको एहसास होगा अपने जीवन का, ना किसी और को. उन्होंने लिखा, 'I rebel; therefore I exist.' संघर्ष कीजिए. ये जानते हुए कि आप एक दिन इस संघर्ष के पहाड़ के नीचे दबकर मर जाएंगे. संघर्ष करते रहिए क्योंकि संघर्ष है. खुशी होकर अगर आप संघर्ष करते हैं तो आपका लक्ष्य सार्थक है. जीवन शून्य है. लेकिन शून्य है तो इसमें गलत क्या है?
अस्तित्ववाद के पर यूं तो सीधे-सीधे नीत्से ने कुछ नहीं कहा लेकिन उन्होंने अपनी मशहूर किताब 'दस स्पेक ज़राथुस्त्रा' में सारी मानव भावनाओं को एक-एक करके तहस-नहस कर दिया था. इस किताब में वे एक जगह लिखते हैं. 'Become who you are'. ऐसा लगता है उनका मानना था कि हर स्थापित सिस्टम को तोड़ने की ज़रूरत है क्योंकि निरर्थकता सिस्टम की देन है. सिस्टम लोगों को एक खास ढांचे में, एक झुंड में देखना चाहता है और लोगों के जीवन को निरर्थक बनाने पर मजबूर करता है. लेकिन वे जो लोग झुंड को नकारते हैं पागलखाने भेज दिए जाते हैं.
एकाकीपन, निराशा, उद्देश्यहीनता और असफलता सभी मात्र भावनाएं हैं और कुछ नहीं. क्या हुआ अगर कोई असफल हो गया? इसमें कुछ गलत नहीं है. दुनिया इसे गलत मानती है लेकिन वास्तव में ऐसा कुछ है ही नहीं. जीवन कोई रेस नहीं है. आगे बढ़ने का मन नहीं हो रहा है तो वहीं खड़े हो जाइए. दांए-बांए मुड़ जाइए या पीछे आ जाइए. संघर्ष कीजिए बस आशाएं मत छोड़िए.