मशहूर उपन्यासकार मिथिलेश्वर को साल 2014 का 'श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान' दिया गया है. मिथिलेश्वर यह सम्मान पाने वाले चौथे साहित्यकार हैं. शनिवार को दिल्ली के कमानी ऑडिटोरियम में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि केंद्रीय संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह अवॉर्ड दिया. पुरस्कार के तौर पर उन्हें 11 लाख रुपये की सम्मान राशि, प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति पत्र और शॉल भेंट किया गया.
सम्मानित कथाकार मिथिलेश्वर ने साहित्य को सबसे शक्तिशाली माध्यम बताते हुए कहा, 'साहित्य ही समाज को उन्नतिशील और संवेदनशील बना सकता है. लेकिन साहित्य को वो प्रतिष्ठा नहीं मिलती. समाज में साहित्य की भूमिका को ध्यान में रखकर ही मैं उससे जुड़ा हूं.'
अपनी लगभग छह उपन्यासों और 11 कहानी संग्रहों के माध्यम से मिथिलेश्वर ने हिन्दी कथा-साहित्य को समृद्ध किया है. इनमें 'प्रेम न बाड़ी उपजै', 'यह अंत नहीं', 'सुरंग में सुबह', 'माटी कहे कुम्हार से' (उपन्यास) और 'बाबूजी', 'तिरिया जनम', 'हरिहर काका' (कहानी संग्रह) प्रमुख हैं. उनकी आत्मकथा के दो खंड - 'पानी बीच मीन पियासी' और 'कहां तक कहें युगों की बात' लोकप्रिय हैं. तीसरा खंड 'जाग चेत कुछ करौ उपाई' शीघ्र आने वाला है.
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, इफको अपने ‘कोर बिजनेस’ के साथ-साथ साहित्य-संस्कृति के विकास में भी योगदान कर रही है. जहां एक ओर इफको ने भारतीय कृषि व्यवस्था को उन्नत और समृद्ध बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है तो वहीं दूसरी ओर साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी इफको का उल्लेखनीय योगदान रहा है.' उन्होंने कहा, 'ग्रामीण जीवन से जुड़ी रचनाओं का सम्मान भारत के जन-जन का सम्मान है.'
सहकारी संस्था इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने साल 2011 में हिन्दी के मूर्धन्य कथाकार पद्मभूषण श्रीलाल शुक्ल के नाम पर 'श्रीलाल शुक्ल इफको साहित्य सम्मान' शुरू किया. हर साल यह सम्मान ऐसे साहित्यकार को दिया जाता है जिनका हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा हो.
समारोह में श्रीलाल शुक्ल की दो कहानियों- 'इस उम्र में' और 'सुखांत' पर आधारित नाटक का मंचन किया गया. इसका निर्देशन नेश्नल स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व निदेशक देवेंद्र राज अंकुर ने किया.