श्रीनगर में जन्मे उपन्यासकार सिद्धार्थ गिग्गू को उनकी कृति ‘दि अंब्रेला मैन’ के लिए एशिया क्षेत्र से 2015 के राष्ट्रमंडल लघुकथा पुरस्कार के लिए चुना गया है. पुरस्कार के आयोजकों ने इसकी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि गिग्गू ने पुरस्कार स्वरूप 2,500 पौंड (करीब 2,43,000 रुपये) जीते हैं और अब उनका मुकाबला अन्य चार क्षेत्रों के विजेताओं से होगा और यदि वह इसके भी विजेता रहते हैं तो उन्हें पुरस्कार स्वरूप पांच हजार पाउंड (लगभग 4,86,000 रुपये) मिलेंगे. अंतिम विजेता की घोषणा आठ सितंबर को की जाएगी.
The wait is over: meet the regional winners of the 2015 Commonwealth Short Story Prize! http://t.co/ppdiLvMFFk pic.twitter.com/YjTdPbWLT4
— Commonwealth Writers (@cwwriters) April 28, 2015
गिग्गू ने एक बयान में कहा, ‘मैं बेहद खुश हूं कि ‘दि अंब्रेला मैन’ को एशिया क्षेत्र से विजेता चुना गया है. मुझे विश्वास है कि अंब्रेला मैन, वह जहां भी होगा, बहुत खुश होगा.’ गिग्गू की यह पुरस्कार विजेता कहानी ‘ए फीस्टफुल आफ अर्थ एंड अदर स्टोरीज ’नाम की पुस्तक में प्रकाशित हुई है. निर्णायकों ने गिग्गू की इस कहानी की संवेदनशीलता और परिकल्पना की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसी की वजह से यह शेष कथाओं से बिल्कुल अलग है.
निर्णायकों ने अफ्रीका, एशिया, कनाडा और यूरोप, कैरीबियाई देश और प्रशांत क्षेत्र के देशों से मिली 4000 प्रविष्टियों में से 22 कथाओं को छांटा ओैर श्रेष्ठ कथा का चयन किया.
श्रीनगर में 1974 में जन्मे गिग्गू का पहला उपन्यास ‘दि गार्डन आफ सोलीट्यूड’ 2011 में प्रकाशित हुआ था. उन्होंने इसके अलावा दो काव्य संग्रह ‘फाल एंड अदर पोयम्स’ (1994) और ‘रिफ्लैक्शंस’ (1995) भी लिखे हैं.
गिग्गू ने कहा, ‘मेरी अधिकतर रचनाएं कश्मीर को केंद्र में रखकर लिखी गई हैं जहां मैंने जन्म लिया और अपने बेहतरीन दिन बिताए. अब उस जगह की सिर्फ धुंधली यादें बाकी हैं. फिर भी ऐसे लम्हे आते हैं जब वे अचानक जीवंत होने लगती हैं ओैर तभी ये कथाएं जन्म लेती हैं.’
लेखक ने राजनीतिक उथल पुथल और आतंकवाद के चलते 1990 में कश्मीर से विदा ले ली थी. उन्होंने दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई की और अब अपनी पत्नी और बच्ची के साथ दिल्ली में ही रहते हैं.