scorecardresearch
 

डेढ़ लाख किताबें पढ़ने वाले ओशो ने हिन्दी की एकमात्र इस किताब को चुना

ओशो के तर्कों के आगे बड़े-बड़े चुप हो गए या फिर दिमाग घूम गया. आम आदमी को अमेरिका में एक इंच जमीन खरीदने में पसीना आ जाए और मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव में पैदा हुआ ये दर्शनशास्त्री वहां 64 हजार एकड़ में ‘रजनीशपुरम्’ बसाकर आ गया. जब इसने एक लाइन से गोरी चमड़ी वालों को गेरुआ वस्त्र पहनाए तो अमेरिका और यूरोप के बड़े-बड़े दिग्गज दंग रह गए. उसके नाम की एक लहर चल उठी थी. लेकिन सब कुछ यूं ही नहीं हुआ. ओशो की पुण्यतिथि (19 जनवरी) पर जानते हैं उनकी दिलचस्प दास्तां.

Advertisement
X
अपनी लाइब्रेरी में ओशो
अपनी लाइब्रेरी में ओशो

Advertisement

ओशो के तर्कों के आगे बड़े-बड़े चुप हो गए या फिर दिमाग घूम गया. आम आदमी को अमेरिका में एक इंच जमीन खरीदने में पसीना आ जाए और मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा गांव में पैदा हुआ ये दर्शनशास्त्री वहां 64 हजार एकड़ में ‘रजनीशपुरम्’ बसाकर आ गया. जब इसने एक लाइन से गोरी चमड़ी वालों को गेरुआ वस्त्र पहनाए तो अमेरिका और यूरोप के बड़े-बड़े दिग्गज दंग रह गए. उसके नाम की एक लहर चल उठी थी. लेकिन सब कुछ यूं ही नहीं हुआ. ओशो की पुण्यतिथि (19 जनवरी) पर जानते हैं उनकी दिलचस्प दास्तां.

ओशो ने पहले दुनियाभर के ज्ञानियों के लिखे को खंगाला, उस पर सोचा-समझा और फिर जो अच्छा लगा उसे जहन में बिठा लिया और जो बकवास था उसे भूला दिया. ओशो ने अपने जीवन में डेढ़ लाख किताबें पढ़ी थीं. उन्होंने अपनी एक लाइब्रेरी भी बनाई थी, जिसका नाम ‘लाआत्सु पुस्तकालय’ है. ओशो ने अपनी मृत्यु से पहले कहा था कि इस पुस्तकालय की सभी किताबों को तालों में बंद कर दिया जाए. ये आम लोगों के लिए नहीं हैं. ये उन्हीं के लिए हैं, जो उन पर शोध कर रहे हों. उन्हें भी एक बार में अधिकतम तीन किताबें ही मिल सकती हैं.

Advertisement

ओशो भक्ति के कारण टूटी थी विनोद खन्ना की शादी, फिर 16 साल छोटी कविता बनी हमसफर

इस पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री में ओशो कह रहे हैं कि उन्होंने इस लाइब्रेरी की हर एक किताब पढ़ी है. इनमें 3500 किताबें ऐसी हैं, जिन्हें पढ़ने के बाद ओशो ने उन पर साइन किए और एक रंगीन पेंटिंग बनाई.

इस पुस्तकालय पर बनी डॉक्यूमेंट्री को इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं.

https://www.youtube.com/watch?v=j1h8-WvzexY

वैसे, ओशो को सुनने और पढ़ने में जो अद्भुत ज्ञान दिखता है, उससे ये डेढ़ लाख वाली बात मानने में कोई बुराई नहीं है. बंदा उपनिषदों से शुरू करता है और कॉलिन विल्सन की ‘द आउटसाइडर’ पर आकर रुकता है. उनकी प्रिय किताबों में मिखाइल नाइमे की ‘द बुक ऑफ मिरदाद’, जिद्दू कृष्णामूर्ति की ‘द फर्स्ट एंड लास्ट फ्रीडम’, लाओत्सु की ताओ ती चिंग, उमर खय्याम की ‘रुबाईयत’, मेबल कोलन्स की ‘लाइट आॅफ दी पाथ’ आदि हैं. ओशो ने प्लेटो, नीत्शे, फ्रायड, अरस्तू, दोस्तोवस्की, फ्रेडरिक, सुकरात, शोपेनहावर, कबीर, नानक, बुद्ध, महावीर सबको पढ़ा. उसने अपनी पढ़ी किताबों पर एक किताब ही लिख दी, जिसका नाम है ‘बुक्स आई हैव लव्ड’. इसे उन्होंने खुद नहीं लिखा था, बल्कि बोलकर अपने उस डेंटिस्ट से लिखवाया था, जिसके पास उनका इलाज चल रहा था. इसमें ओशो ने ऐसी 160 मस्ट रीड किताबों का जिक्र किया है, जिसने उसे सबसे अधिक प्रभावित किया. एक-एक किताब के बारे में डिटेल में लिखा है. एक और खास बात, ओशो ने सबका लिखा पढ़ा, लेकिन खुद कभी एक शब्द भी अपने हाथ से नहीं लिखा। अपना सारा ज्ञान उसने रिकॉर्ड करवाया. आप ओशो की जितनी भी किताबें देखते हैं, वे सब रिकॉर्डेड ऑडियो के आधार पर लिखी गई हैं.

Advertisement

क्या ओशो रजनीश से डर गई थी अमेरिकी सरकार?

ओशो ने जिन डेढ़ लाख किताबों को पढ़ा, उनमें से हिन्दी मंे लिखी सिर्फ एक ही किताब शामिल है और वह है सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की ‘नदी के द्वीप.’ भले ही उन्होंने हिन्दी की एक किताब चुनी हाे, लेकिन इसकी तारीफ के इतने पुल बांध दिए हैं कि इसे टालस्टाय और चेखव के उपन्यासों से बेहतर बताया. ओशाे ने ‘नदी के द्वीप’ के बारे में जो कहा वो इस तरह है ‘इस हिन्दी उपन्यास का अब तक अंग्रेजी में अनुवाद नहीं हुआ है. ये अजीब है कि मेरे जैसा आदमी इसका जिक्र कर रहा है. इसका हिन्दी टाइटल नदी के द्वीप है, ये अंग्रेजी में ‘आईलैंड्स ऑफ अ रिवर बाय सच्चिदानंद हीरानंद’ नाम सेे हो सकता है. ये किताब उनके लिए है, जो ध्यान करना चाहते हैं. ये योगियों की किताब है. इसकी तुलना न तो टालस्टाय के किसी उपन्यास से हो सकती है और न ही चेखव के. इसका दुर्भाग्य यही है कि इसे हिन्दी में लिखा गया है. ये इतनी बेहतरीन है कि मैं इसके बारे में कुछ कहने से अधिक इसे पढ़कर इसका आनंद लेना उचित होगा. इतनी गहराई में जाकर बात करना बहुत मुश्किल है.’

आप सोच रहे हैं कि आखिर इस किताब में ऐसा है क्या? इतनी तारीफ करने के बाद ये सवाल जायज है। तो भैया ऐसा है कि इस उपन्यास में चार मुख्य किरदार हैं भुवन, रेखा, चंद्रमाधव और गौरा. ये सभी अपनी अधूरी इच्छाएं लिए भटकते रहते हैं. इसका मजमून ये भी है कि प्यार-मोहब्बत में एक-दूसरे से अलग रहकर अपने रिलेशन के मायने ज्यादा ठीक ढंग से समझ सकते हैं. फिजिकली अनटच्ड रिलेशन ज्यादा खूबसूरत होता है.

Advertisement

ओशो ने जो कहा वो सब तो ठीक है ही. किताब में कुछ दम तो होगी ही, तभी ओशो ने ये सब कहा. लेकिन इसका दूसरा पहलू भी सुन लीजिए. नामचीन व्यंग्यकार शरद जोशी, कथाकार प्रियंवद, नाटककार मोहन राकेश इन सब ने न सिर्फ इस किताब को नापसंद किया, बल्कि अज्ञेय को ही नकार दिया. शरद जोशी ने तो दो व्यंग्य भी लिख डाले. ‘नदी में खड़ा कवि’ और ‘साहित्य का महाबली’. इनमें अज्ञेय का बिना नाम लिखे शरद जोशी ने खूब मजे लिए हैं. इसी तरह प्रियंवद ने ओमा शर्मा को दिए एक इंटरव्यू में ‘नदी के द्वीप’ को महाझूठी रचना कहा.

Advertisement
Advertisement