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निकल पड़ा 'ताजमहल का टेंडर'

अठारह साल पहले 1998 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के रंगमंडल ने 'ताजमहल का टेंडर' जैसे जबरदस्त व्यंग्य नाटक खेलकर थिएटर की दुनिया में हलचल मचा दी थी. रेलवे के एक अफसर अजय शुक्ल का लिखा यह नाटक आज की भ्रष्टाचारी व्यवस्था पर गहरा तंज कसते हुए चलता है. फिर से इसकी वापसी हुई है.

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अठारह साल पहले 1998 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के रंगमंडल ने 'ताजमहल का टेंडर' जैसे जबरदस्त व्यंग्य नाटक खेलकर थिएटर की दुनिया में हलचल मचा दी थी. रेलवे के एक अफसर अजय शुक्ल का लिखा यह नाटक आज की भ्रष्टाचारी व्यवस्था पर गहरा तंज कसते हुए चलता है. बादशाह शाहजहां अपनी प्रिय मुम्मो की याद में जल्द-अस-जल्द ताजमहल तामीर करवाने के लिए टेंडर डलवाते हैं और वह प्रक्रिया हर कदम पर उलझती ही जाती है. 

दर्शकों को जमकर हंसाने वाला यह नाटक अपनी कामयाबी की वजह से 2007 तक उत्सवों में लगातार खेला जाता रहा, फिर किन्ही कारणों से बंद कर दिया गया. पिछले दसेक साल वैसे भी एनएसडी रंगमंडल के बद से बदतर होते जाने की दास्तां कहते हैं. पहले उसके पास दसियों ऐसे नाटक हुआ करते थे, जो गहरे संदेश और साहित्यिक मूल्यों वाले होने के अलावा उतने ही मनोरंजक भी होते थे.

खैर, ताजमहल का टेंडर के निर्देशक चितरंजन त्रिपाठी को रंगमंडल ने 9 साल बाद याद किया. इस बीच वे मुंबई शिफ्ट होकर फिल्मों में अभिनय, संगीत और निर्देशन वगैरह में हाथ आजमाने लगे थे. अब पिछले एक पखवाड़े से जुटकर उन्होंने अभिनेताओं की एक नई टीम के साथ यह नाटक फिर से तैयार किया है. रंगमंडल के समर फेस्टिवल में यह नाटक 1 से 4 जून तक दिल्ली के कमानी सभागार में खेला जाएगा. नाटक के अंत में शाहजहां के मर जाने पर ठेकेदार गुप्ता जी का नौकर सुधीर पूछ बैठता है: 'सर अब क्या होगा?' जवाब मिलता है: 'कुछ नहीं, सुधीर, इस देश को गुप्ता ही चलाते आए हैं और आगे भी गुप्ता ही चलाते रहेंगे.' अच्छे नाटक के शौकीनों को यह प्रस्तुति पसंद आएगी.

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