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Facebook कथा: तुम और यह बदलता मौसम

एसी का टेम्परेचर, दही-मूली-दूध का दिन और रात से रिश्ता और चाय में नींबू और पत्ती की मात्रा; बखूबी समझती थीं तुम बदलते मौसम को. मां के बाद तुम ही थीं जिसने मुझे बदलते मौसम की नज़ाकत को समझाया.

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Prakhar vihaan's short story
Prakhar vihaan's short story

-प्रखर विहान की कहानी

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एसी का टेम्परेचर, दही-मूली-दूध का दिन और रात से रिश्ता और चाय में नींबू और पत्ती की मात्रा; बखूबी समझती थीं तुम बदलते मौसम को. मां के बाद तुम ही थीं जिसने मुझे बदलते मौसम की नज़ाकत को समझाया. नजला, हरारत, सिरदर्द छोटी-मोटी बीमारियां तुम्हें देख कर ही शोखियां बनती थीं. मेरा 'आआच्छूं' कहना और आ जाना तुम्हारा तमाम काढ़ों और सूप्स के साथ. वो भी क्या दिन थे साकी तेरे मस्तानों के. तुम अब यहां नहीं हो मैं बीमार भी नहीं होता. बीमारियों ने खुद को समझा लिया हो जैसे. तुम्हें पता है सिर्फ मौसम ही नहीं रिश्ते भी बदलते हैं. हर बदलाव का अपना मुताबिक होता है, हर मोड़ की अपनी तासीर. हम दोनों नहीं समझ पाए रिश्तों के बतलते मौसम को. मैं तो फिर भी नासमझ ही था तुमने क्यों नहीं समझा शिकायत रहेगी तुमसे हमेशा मुझे और अब तो मामूली सी खांसी भी नहीं होती जो तुम्हें याद करते हुए चिकन सूप बनाऊं. नज़ाकत से रखता हूं खुद को जैसे तुम रखती थीं. तुम्हारे वजूद को मैंने अपनी गंभीरता में सहेज लिया है. बरसते-बदलते मौसम में तुम याद आ रही हो बहुत ज्यादा.

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('FB कथा' सोशल मीडिया में लिखी जा रहे माइक्रो-फिक्शन यानी छोटी कहानियों का एक मंच है. अगर आप भी आते-जाते ख्याल को शब्दों की पैरहन दे सकते हैं जो इस वर्चुअल शाब्दिक फैशन के दौर में अलहदा सी लगे, तो आ जाइए अपने शब्दों की गठरिया उठाए, हमारे पते पर. अपनी FB कथा हमें भेजें booksaajtak@gmail.com पर.)

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