साहित्य आजतक 2017 के चौथे सत्र बदलता व्यंग्य में मशहूर व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी, गौतम सान्याल और आलोक पुराणिक ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पांडे ने किया. इस सत्र में मौजूदा दौर में व्यंग्य की सार्थकता और बदलते स्वरूप पर चर्चा की गई.
गौतम सान्याल ने कहा कि वह बचपन से ही बिगड़ना चाहता था लिहाजा मैं लेखक बन गया. आलोक पुराणिक ने कहा कि आज के दौर में सीधी बात न की जा सकती है और न ही समझा जा सकता है. आलोक के मुताबिक आज के समाज को समझना सिर्फ कार्टून अथवा व्यंग्य के जरिए किया जा सकता है. पुराणिक के मुताबिक आज का व्यंग्य सिर्फ सच्चाई है. इतिहास में व्यंग्य सच्चाई की तरह दर्ज हो रहा है.
पीयूष ने पूछा कि आखिर व्यंग्यकार के दिमाग में आइडिया कहां से आते हैं. इसके जवाब में ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा कि किसी भी चीज को देखने के 360 कोंण होते हैं, लेकिन व्यंग्यकार के लिए हजारों कोंण मौजूद हैं. पुराणिक ने कहा कि व्यंग्य महज एक नजरिया है.
आलोक पुराणिक ने कहा कि ब्यूटी क्वीन के मुकाबले में जब कोई सुन्दरी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपना आदर्श बताए तो यह सिर्फ हास्यास्पद हो सकता है. आज के बाजार में सूई से लेकर तेल-साबुन तक बेचने के लिए सुन्दरी को आगे कर दिया जाता है.
इस सत्र में पीयूष ने पूछा कि क्या मौजूदा दौर में कॉलम की उपयोगिता खत्म हो रही है. इसके जवाब में पुराणिक ने कहा कि व्यंग्य के लिए शब्दों की संख्या का कोई महत्व नहीं है. पुराणिक के मुताबिक कबीरदास ने एक पंक्ति में अच्छे-अच्छे व्यंग्य किए हैं. पुराणिक ने कहा कि सोशल मीडिया से कॉलम को खतरा नहीं है. बाजार में एक लाइन के व्यंग्य से लेकर फेसबुक पोस्ट और किताब तक सबकुछ बिकता है.