साहित्य आजतक, 2017 के अंतिम दिन दूसरे सत्र में स्क्रीनराइटर, गीतकार और क्रिएटिव प्रोड्यूसर जयदीप साहनी, लेखक मयंक तिवारी और लेखक एवं निर्देशक सैयद अहमद अफजल ने शिरकत की. इन्होंने साहित्य, सिनेमा और बाजार विषय पर अपने विचार रखे.
जयदीप साहनी ने कहा, सिनेमा एक माध्यम है, उससे चाहे तो शादी का वीडियो बना लें, या आर्ट फिल्म या फिर ब्लू फिल्म कुछ भी बना सकते हैं. मीडियन को नहीं पता कि आप क्या बनाना चाहते हैं. जहां तक बाजार की बात है तो एक पेंटिंग बनाने या नॉवेल लिखने में जितना खर्च नहीं होता, उतना सिनेमा में होता है. सिनेमा में हम एक दुनिया बसाते हैं, जिसने में करोड़ों रुपए खर्च होता है. बाजार से हमारा पिंड कभी नहीं छूटेगा. बाजार की सवारी करना शेर की सवारी करने जैसा है.
हम बीच का रास्ता खोज रहे है: मयंक तिवारी
इस विषय पर मयंक तिवारी ने कहा, साहित्य में भी बाजार उसी तरह होता है, जैसे सिनेमा में. आप चाहते हैं कि आपकी किताब या कविता बिके, फिर चाहे वह पांच सौ की हो या पांच रुपए की. लिखने समय ये अवेयरनेस होती है रीडर कैसे रिएक्टर करेंगे. हम बीच का रास्ता खोज रहे हैं, जैसे मैंने न्यूटन लिखी उसे सराहना भी मिली और प्रोड्यूसर भी मिले.
सैयद अहमद अफजल ने कहा, जब सिनेमा बनाने निकलते हैं तो बहुत सारी जिम्मेदारी आ जाती है. उसमें से एक जिम्मेदारी यह भी है कि आप प्रोड्यूसर का पैसा वापस निकालकर उसे दें. इसका एक बेलेंस खोजना जरूरी है. साहित्य और प्रोड्यूसर दोनों का ख्याल रखना पढ़ता है. साहित्य के कई नजरिए हो सकते हैं, लेकिन सिनेमा का एक ही नजरिया होता है.
सेशन को आगे बढ़ाते हुए बीच का रास्ता निकालने के सवाल पर जयदीप साहनी ने कहा, एक होता है कि हम अपने लिए लिखते हैं, यदि हम अपने लिए न लिखें तो उसमें आत्मा नहीं होती. दूसरा हम ऑडिएंस के लिए लिखते हैं, वे अपना वक्त और पैसा खर्च कर रहे हैं. उनके टाइम की कद्र करना जरूरी है. जिसकी चीज विषय से इंसाफ करना है. जैसे हमने अपनी फिल्म शुद्ध देसी रोमांस करीब 84 लोगों को दिखाई, जिनमें 75 लोगों ने कहा कि मत रिलीज करो, अश्लील है. लेकिन रिलीज के दस पहले ऐसा सुनने को मिल रहा था. इस में डेढ़ सौ लोगों ने अपने डेढ़ साल लगाए थे.
साहनी ने आगे कहा, हम कहानीकार हैं और हमारा काम है अपने समाज की कहानियां निकालना और उन्हें सुनाना. अब समाज में दिल्ली का मिडिल क्लास भी हो सकता है, एथलीट भी और क्रिमिनल भी. मीरा नायर की एक लाइन है, यदि हम कहानियां नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा. अब यदि समाज में लड़का-लड़कियां साथ रह रहे हैं तो ये झूठ तो नहीं है, रह रहे हैं वो. कहानी का काम जज करना नहीं है. हमारा काम है लोगों की आवाज बनना.
पद्मावती विवाद: ओरिजनल टेक्स्ट से छेड़छाड न हो
हिस्टोरीकल कहानी से छेड़छाड़ के सवाल पर मयंक तिवारी ने कहा, ऐसी कहानियों से पूछा छेड़छाड़ करना चाहिए, लेकिन उसका एक संदर्भ होता है, जिसमें आपको फिक्शन को खोजना होता है. न्यूटन में हमने ऐसा ही किया. फिल्म की कहानी एक सपने की तरह होती है, ये सपना टूटना नहीं चाहिए. ये जारी रहना चाहिए.
पद्मावती के संदर्भ में सैयद अहमद अफजल ने कहा, पद्मावती में खास बात है कि इसके बैकड्रॉप को ट्रांसपेरेंट तरीके से दिखाना चाहिए. कैरेक्टर्स में ओरिजनल टेक्स्ट का ख्याल रखना चाहिए. उसमें छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए. कहानी के तौर पर ड्रामा हो सकता है. लेकिन ओरिजनल बातें ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए.