साहित्य आजतक के तीसरे सत्र में बीजेपी सांसद और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा और पूर्व पत्रकार व लेखक भारती प्रधान ने शिरकत की. सत्र का संचालन पुण्य प्रसून वाजपेयी ने किया. भारती प्रधान ने शत्रुघ्न की किताब एनीथिंग बट खामोश पर चर्चा की.
सिन्हा ने मौजूदा राजनीतिक हालात पर भी बात की. उन्होंने कहा, 'मैंने अपनी किताब सबसे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसलिए नहीं दे सका, क्योंकि तब तक ये आई नहीं थी'. अपने ' खामोश' डायलॉग पर सिन्हा ने कहा, 'अब लगता है कि हम सब खामोश हो गए हैं. देश में जो माहौल चल रहा है, उसमें सब कोई खामोश है'.
सिन्हा ने एक कविता पढ़कर अपने मन की बात कही. उन्होंने कहा,
अब किसी को भी नजर आती नहीं कोई दरार
हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूं, पर कहता नहीं
बोलना भी है मना, सच बोलना तो दरकिनार
इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके जुर्म हैं
आदमी या तो जमानत पर रिहा है या फरार
रौनक-ए-जन्नत जरा भी मुझको रास आई नहीं
मैं जहान्नुम में बहुत खुश था, ये मेरे परवर दिगार
'आडवाणी के कहने पर राजनीति में आया'
शत्रुघ्न ने कहा कि वह लाल कृष्ण आडवाणी के कहने पर राजनीति में आए. आडवाणी के आदेश पर मध्यावधि चुनावों में राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़कर राजनीतिक पारी की शुरुआत की. शत्रुघ्न ने बताया कि इस चुनाव में हारने के बाद किन हालात में उन्होंने अशोक रोड स्थित बीजेपी ऑफिस नहीं जाने की कसम खाई.
मैं पहला फिल्मी विलेन जिस पर तालियां बजीं
फिल्मों में खलनायक के रोल से अपनी पहचान बनाने पर शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा, मैंने विलेन के रोल में कुछ अलग किया. मैं पहला विेलेन था, जिस के परदे पर आते ही तालियां बजती थीं. ऐसा कभी नहीं हुआ. विदेशी अखबारों ने भी लिखा कि पहली बार हिन्दुस्तान में एक ऐसा खलनायक उभरकर आया, जिस पर तालियां बजती हैं. अच्छे अच्छे विलेन आए, लेकिन कभी किसी का तालियों से स्वागत नहीं हुआ. ये तालियां मुझे प्रोड्यूसर्स-डायरेक्टर्स तक ले गईं. इसके बाद डायरेक्टर मुझे विलेन की जगह हीरो के तौर पर लेने लगे. एक फिल्म आई थी बाबुल की गलियां जिसमें मैं विलेन था, संजय खान हीरो और हेमा मालिनी हीरोइन थीं. इसके बाद जो फिल्म आई दो ठग उसमें हीरो मैं था और हीरोइन हेमा मालिनी थीं. मनमोहन देसाई को कई फिल्मों में अपना एंड चेंज करना पड़ा. भाई हो तो ऐसा, रामपुर का लक्ष्मण ऐसी ही फिल्में हैं.
पाकिस्तान में भी बच्चे कहते हैं 'खामोश बोलो'
सिन्हा ने कहा, मैंने रोल को कभी विलेन के तौर पर नहीं, रोल की तरह ही देखा. मैं विलेन में सुधरने का स्कोप भी देखा करता था. मैं यंग जनरेशन को एक मंत्र देता हूं कि अपने आप को सबसे बेहतर साबित करके दिखाओ, यदि ऐसा नहीं कर सकते तो सबसे अलग साबित करके दिखाई. आज खामोश सिग्नेचर टोन बन गया है. पाकिस्तान जाता हूं तो बच्चे कहते हैं एक बार खामोश बोलकर दिखाओ. उन्होंने कहा, अपनी वास्तविकता को मत खोओ.
सिन्हा ने कहा कि फिल्म 'शोले' और 'दीवार' ठुकराने के बाद ये फिल्में अमिताभ बच्चन ने की और वह सदी के महानायक बन गए. शत्रु ने कहा कि ये फिल्में न करने का अफसोस उन्हें आज भी है लेकिन खुशी भी है कि इन फिल्मों ने उनके दोस्त को स्टार बना दिया. शत्रुघ्न के मुताबिक यह फिल्में न करना उनकी गलती थी और इस गलती को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कभी भी इन दोनों फिल्मों को नहीं देखा.