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उर्दू शायरी के पुरोधा कैफी आजमी की वेबसाइट शबाना आजमी ने की लॉन्‍च

मैं ढूंढ़ता हूं जिसे वो जहां नहीं मिलता,नई ज़मीं नया आसमां नहीं मिलता. मशहूर उर्दू शायर कैफी आजमी की इस नज्म लिखे जाने के अरसे बाद कैफी आजमी को उनका नया पता मिल गया है. शायर और गीतकार कैफी आजमी उर्फ अताहर हुसैन रिजवी की बेटी शबाना आजमी ने कैफी साहब से जुड़ी यादों को समेटने का काम किया है. शबाना ने अपने पिता कैफी आजमी के नाम से उनकी याद में एक वेबसाइट www.azmikaifi.com शुरू की है.

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कैफी आजमी बेटी शबाना आजमी के साथ
कैफी आजमी बेटी शबाना आजमी के साथ

मैं ढूंढ़ता हूं जिसे वो जहां नहीं मिलता,
नई ज़मीं नया आसमां नहीं मिलता.

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मशहूर उर्दू शायर कैफी आजमी को इस नज्म लिखे जाने के अरसे बाद  नया पता मिल गया है. शायर और गीतकार कैफी आजमी उर्फ अताहर हुसैन रिजवी की बेटी शबाना आजमी ने कैफी साहब से जुड़ी यादों को समेटने का काम किया है. शबाना ने अपने पिता कैफी आजमी के नाम से उनकी याद में एक वेबसाइट www.azmikaifi.com शुरू की है.

इस वेबसाइट में कैफी आजमी की जिंदगी से जुड़े कामों और उनके बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराई गई है. कैफी आजमी ने हिंदी फिल्मों के लिए बहुत कुछ लिखा. कैफी आजमी की नज्म आज भी लोगों के जहन में जिंदा है. कैफी साहब का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मिजवान में 14 जनवरी 1918 को हुआ था.

कैफी आजमी की मशहूर गजल
आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है,
आज की रात न फ़ुटपाथ पे नींद आएगी.
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी.

ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थी,
पाँव जब टूटती शाखों से उतारे हमने,
इन मकानों को ख़बर है न, मकीनों को
ख़बर उन दिनों की जो गुफ़ाओं में गुज़ारे हमने.

हाथ ढलते गए साँचों में तो थकते कैसे,
नक़्श के बाद नए नक़्श निखारे हमने,
की ये दीवार बुलन्द, और बुलन्द, और बुलन्द,
बाम-ओ-दर और ज़रा और निखारे हमने.

आँधियाँ तोड़ लिया करतीं थीं शामों की लौएँ,
जड़ दिए इस लिए बिजली के सितारे हमने,
बन गया कस्र तो पहरे पे कोई बैठ गया,
सो रहे ख़ाक पे हम शोरिश-ए-तामीर लिए.

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अपनी नस-नस में लिए मेहनत-ए-पैहम की थकन,
बन्द आँखों में इसी कस्र की तस्वीर लिए,
दिन पिघलता है इसी तरह सरों पर अब तक,
रात आँखों में खटकती है सियाह तीर लिए.

आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है,
आज की रात न फुटपाथ पे नींद आएगी,
सब उठो, मैं भी उठूँ, तुम भी उठो, तुम भी उठो,
कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी.

कोई तो सूद चुकाये, कोई तो जिम्मा ले उस इन्कलाब का...

कैफी इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन के शुरुआती सदस्यों में शामिल रहे. कैफी ने कुछ यादगार फिल्मों के लिए भी लिखा. जिसमें यहूदी की बेटी, कागज के फूल, ईद का चांद, मिस पंजाब मेल, हकीकत, मंथन शामिल हैं. कैफी आजमी ने बाबरी विंध्वस पर बनी फिल्म नसीम में अपनी एक्टिंग का नायाब नमूना भी पेश किया. इस फिल्म को काफी सराहा गया था.

कैफी आजमी को उनके काम के लिए कई अवॉर्ड्स से भी सम्मानित किया गया. कैफी साहब को राष्ट्रीय पुरस्कार, साहित्य पुरस्कार, फिल्मफेयर अवॉर्ड सहित कई सम्मानित पुरस्कार मिले.

कैफी आजमी की प्रतिभा को पहली बार पहचान तब मिली जब 11 साल की उम्र में वो अपने पिता-भाई के साथ एक मुशायरे में गए. इस मुशायरे में कैफी आजमी की पढ़ी गजल को सुनकर उनके पिता-भाई हैरान रह गए.

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बेटे की प्रतिभा को पहचानने के लिए जब कैफी आजमी के पिता ने उन्हें एक गजल लिखने को कहा, तो कैफी साहब ने बिना किसी देरी के एक गजल लिखी. चंद पलों में लिखी इस गजल को मशहूर गजल गायिका बेगम अख्तर ने अपनी आवाज दी. कैफी साहब ने जो गजल 11 साल की उम्र में लिखी थी वो कुछ यूं थी, ' इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े, हंसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े'.

19 साल की उम्र में कैफी आजमी ने कम्युनिस्ट पार्टी अॉफ इंडिया जॉइन की. जिसके बाद कैफी कौमी जंग अखबार में काम करने के लिए मुंबई चले गए. यहीं से कैफी को लिखने की वजह और अपनी लेखनी में निखार मिला.

तो अगर आप कैफी आजमी और उनकी गजलों के बारे में जानना चाहते हैं तो इस वेबसाइट का रुख कीजिए. क्योंकि कैफी आजमी ने ही कहा है- ''कोई तो सूद चुकाये, कोई तो जिम्मा ले उस इन्कलाब का , जो आज तक उधार सा है''.

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