अनवर जलालपुरी की पहचान ने नई शक्ल ले ली, जब उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को उर्दू शायरी में उतारने का मुश्किल काम किया. इस काम को महज अनुवाद कहना समझदारी न होगी. ‘‘लोकों का सार उन्होंने निहायत आसान जबान में पेश किया है. पढ़ते वक्त साफ लगता है कि गीता को जैसे उन्होंने एक आम आदमी को समझने लायक बनाने की जिद-सी पकड़ ली है. उनकी अर्धांगिनी, 63 वर्षीया आलिमा खातून चार साल तक चले इस उपक्रम की कदम-कदम की गवाह हैं. रात-रात भर जगकर एक-एक लफ्ज, मिसरे और शेर को सुनकर पहली श्रोता के रूप में यथास्थान उन्होंने तब्दीली भी कराई है. अब तो उन्होंने उमर खय्याम की 72 रुबाइयों और टैगोर की गीतांजलि का भी इतनी ही आसान जबान में अनुवाद पेश कर दिया है. लेकिन फिलहाल वे गीता के अलावा और किसी पहलू पर बात करने को तैयार नहीं हैं. हाल ही लखनऊ में रामकथा गायक मोरारी बापू और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसका लोकार्पण किया. मजा देखिए कि हिंदी के 2-3 स्वनामधन्य प्रकाशकों ने इसे छापने लायक ही नहीं समझा. अंत में छोटे-से आखर प्रकाशन से 500 प्रतियां छपवाकर वे इसे पाठकों के सामने ला सके. लखनऊ में लालकुआं स्थित अपने आवास पर 67 वर्षीय जलालपुरी ने असिस्टेंट एडिटर शिवकेश से बातचीत की. उसी के चुनिंदा अंश आप भी पढ़ेः
जैसा कि आपने भूमिका में भी लिखा है कि गीता के सब्जेक्ट और इसके विस्तार को देखते हुए पहले आप पीछे हट गए थे. 2008 में फिर कैसे यह काम शुरू किया?
साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन मेरे स्वभाव में रहा है. बीए में फॉर्म भरते वक्त अंग्रेजी, उर्दू और अरबी लिटरेचर भर दिया. यानी अंदर कहीं स्वभाव में यह बात बैठी हुई थी. इस्लाम को पढ़ा तो सोचा कि हिंदू धर्म की किताबें भी पढऩी चाहिए. तो गीता, रामचरितमानस और उपनिषदों के कुछ हिस्से पढ़े. गीता पढ़ते वक्त लगा कि इसमें बहुत-सी बातें ऐसी हैं जो कुरान और पैगंबर के हदीसों में भी हैं. पिछले 150 वर्ष में गीता के 24 तर्जुमे हुए हैं. पर वो जमाना पर्शियनाइज्ड उर्दू का था. मुश्किल से 8-10 किताबें मिल पाईं. सोचा क्यों न मैं इसे जन सामान्य की भाषा में ढाल दूं. लगा कि आसान जबान में इसे हिंदू और मुसलमान, दोनों को पढ़वाया जा सकता है.
कहा जा रहा है कि आपने श्लोक को लोक तक पहुंचाने का तुलसी जैसा काम किया है लेकिन मोरारी बापू कहते हैं कि नहीं, यह आपने वेदव्यास का काम किया है, तुलसी का काम तो तब होगा जब आप मानस को भी उर्दू शायरी में ढाल दें. अब?
बापू ने देखा कि एक आदमी जब गीता का आसान भाषा में तर्जुमा कर सकता है तो मानस का भी कर सकता है. उन्हें मेरे टैलेंट पर इतना विश्वास था कि उन्होंने इशारतन दुआ के तौर पर मुझसे एक बात कह दी. बापू ने मुझे मेरी बाकी जिंदगी के लिए एक पवित्र काम दे दिया.
पर गीता संस्कृत में है और संस्कृत आपकी भाषा नहीं रही है.
यह वो दौर है जब आपको कोई बड़ा लिटरेचर दर्जनों भाषाओं में मिल जाएगा. गीता के 5-6 उर्दू अनुवाद मेरे पास हैं. हिंदी और अंग्रेजी के भी हैं. लेकिन गीता पर ओशो रजनीश की टीका (गीता दर्शन) से मैं बहुत मुतास्सिर हुआ. मैं एक श्लोक पढ़ता. उस पर ओशो, (लोकमान्य) तिलक और अजमल खां साहब वगैरह की टीकाएं देखता. उन्हें पढ़कर जो भाव मेरे मन में आता, उस भाव के निचोड़ को लेकर मैं पोएट्री बनाताः पहले शब्द, फिर मिसरे और फिर शेर.
ओशो से मुतास्सिर होने का क्या अर्थ?
पहले ही पहले श्लोक में अंधे धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि मैदान में क्या हो रहा है? मैंने यूं शुरू कियाः धृतराष्ट्र आंखों से महरूम थे, मगर ये न समझे कि मासूम थे. इसकी जो दूसरी लाइन है वह रजनीश ने दी है. वे कहते हैं कि अंधे होने से ये न समझिए कि वासनाएं-इच्छाएं खत्म हो जाती हैं. गीता की एक खास बात हैः इसमें तहदारी बहुत है. उसका एक श्लोक, अर्थ और व्याख्या पढ़िए, आठ दिन बाद फिर पढ़िए, तब कुछ और अर्थ मिल जाएगा. शेक्सपियर के ड्रामों में जिस तरह से मानव मनोविज्ञान की एनालिसिस है, शायद यह बड़ी बात हो जाए कहना, मुझे लगता है कि शेक्सपियर ने गीता जरूर पढ़ी होगी.
गीता का इस तरह का अनुवाद करने के आइडिया पर आपके पास फीडबैक क्या था?
आठ बरस पहले मैंने (जलालपुर में) अपने कॉलेज में कहीं यह बात कह दी थी. किसी चौनल वाले ने इस पर लखनऊ में शियाओं के सबसे बड़े आलिम कल्बे सादिक और सुन्नी आलिम खालिद रशीद, दोनों से राय ली. दोनों ने कहा कि बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, यह समय की जरूरत है. मुस्लिम इंटेलेक्चुअल्स ने भी ताईद की.
इस तरह के बड़े ग्रंथों के काव्यानुवाद में मूल का ढांचा और उसकी शैली की जकडऩ हावी रहती है. आपने उसे तोड़ दिया है. यह आखिर कैसे संभव हुआ?
देखिए, जब किसी दर्शन से, किसी फलसफे से, व्यक्ति से या आइडियॉलॉजी से आपको इश्क हो जाए, इश्क में बड़ी पवित्रता है और आखिरी सीमा तक जाने का संघर्ष है. तो गीता में कृष्ण जिस दैविक शैली में बात करते हैं, वह शैली मुझे बहुत पसंद आई. यही कुरान का डिवाइन स्टाइल है. खुदा इंसानों को मुखातिब होके कहता है कि ये दुनिया, ये पहाड़, ये जमीन, ये आसमान, ये चांद-सूरज...अगर ये मेरा जलवा नहीं, ये मेरी निशानियां नहीं तो किसकी हैं? बताओ ऐ इंसानों, मेरी कौन कौन-सी नेमतों को झुठलाओगे? कृष्ण इसी स्टाइल में बोलते हैं.
उर्दू शायरी में गीता की इस पूरी प्रस्तुति में इसे पढ़ाने की गहरी जिद दिखती है.
मैं तय कर चुका था कि इसे इतना आसान बना दूंगा कि हिंदी और उर्दू वाले, दोनों इसे अपनी ही भाषा का कहें. एक शब्द आया असरार, यानी रहस्य. मुझे लगा हिंदी वालों को समझने में दिक्कत होगी. तो मैंने राज का इस्तेमाल किया.
गीता का मफहूम (भावांतरण) ऐसे वक्त आया है जब केंद्र में एक दक्षिणपंथी सरकार बनी है. इसमें कोई संयोग देखते हैं?
ये दुनिया इंसानों से ही नहीं चलती, कहीं और से भी चला करती है. हमारे दोस्त राहत इंदौरी का एक शेर हैः तुझे खबर नहीं मेले में घूमने वाले, तेरी दुकान कोई दूसरा चलाता है. परिस्थितियां राजनैतिक तौर पर बदल गई हैं. जब बाबरी मस्जिद गिरी थी तो मुसलमानों में जागृति पैदा हुई थी. उन्होंने बच्चों की शिक्षा की तरफ ध्यान दिया. इन 23-24 बरस में हमारी सोच में काफी फर्क आया है. (नरेंद्र) मोदी जी बहुत कीमती जुमला बोल रहे हैः मैं 125 करोड़ हिंदुस्तानियों का प्रधानमंत्री हूं. मुझे सबके साथ न्याय करना है. उन्होंने यह भी कहा कि इस्लामी देशों से भी दोस्ती करनी है. तो अगर मोदी जी को विश्व नेता बनना है, तो उनको संकीर्णता से ऊपर उठना पड़ेगा.
आप खुद को अदब का आदमी मानते हैं और साहित्य वाले तो पुरुषार्थ पर भरोसा करते हैं. ऊपरवाले पर इतना विश्वास...
आप वीर हैं तो आपको ज्ञानी भी होना चाहिए. दोनों का संगम हो जाए तो आदमी कई गुना ऊंचा उठ जाएगा.
आपके पसंदीदा लेखक-शायर?
मीर, नजीर (अकबराबादी), मीर अनीस, गालिब, इकबाल. धर्म के रास्ते पर देखंर तो मौलाना आजाद और गांधी का कैरेक्टर मेरी जिंदगी को प्रभावित करता रहा है. गांधी के यहां कथनी-करनी में कोई फर्क नहीं.
नमाज पढ़ते हैं? खुदा से कोई शिकायत?
हां पढ़ता हूं. खुदा से शिकायत करने वाले से बड़ा कोई नादान नहीं.
अब आप लखनऊ में रह रहे हैं. यहां के कौन-से रस्मोरिवाज आपने अपनाए?
मैं अंग्रेजी का लेक्चरर रहा और कुर्ता-पाजामा पहन के कॉलेज जाता रहा. ज्यादा सब्जी खाता हूं. गोश्त में चिकन कभी-कभी, वरना दाल, सब्जी और तला मिरचा.
नई सरकार कॉमन सिविल कोड, धारा 370 और अयोध्या पर नई बहस छेड़ रही है. इन मुद्दों पर आपकी राय क्या है?
इन तीनों की अभी स्पष्ट व्याख्या की ही नहीं गई है. गोलमोल बातें हुई हैं. कॉमन सिविल कोड मुसलमानों के स्वीकारने की बात बाद में है, पहले उत्तर के, दक्षिण के, सवर्ण-दलित तो स्वीकारें. और 370, मैं बगैर कश्मीर के हिंदुस्तान का नक्शा नामुकम्मल समझता हूं.