scorecardresearch
 

शरद पवार की आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर', पढ़ने को मिलेंगे दिलचस्प किस्से

एन.सी.पी प्रमुख और चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्र में रक्षामंत्री एवं कृषि मंत्री रह चुके शरद पवार की आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर' का लोकपर्ण राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार, जनपथ, नई दिल्ली में हुआ.

Advertisement
X
शरद पवार की आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर' का लोकपर्ण
शरद पवार की आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर' का लोकपर्ण

Advertisement

एन.सी.पी प्रमुख और चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और केंद्र में रक्षामंत्री एवं कृषि मंत्री रह चुके शरद पवार की आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर' का लोकपर्ण राष्ट्रीय संग्रहालय सभागार, जनपथ, नई दिल्ली में हुआ. इस मौके पर सीताराम येचूरी, के.सी त्यागी, गुलाम नबी आजाद, प्रफुल्ल पटेल, नीरज शेखर, सतीश चंद्र, डी. राजा, सुप्रिया सुले और कई अन्य राजनेता भी शामिल हुए.

आपको बता दें कि 'अपनी शर्तों पर' शरद पवार की अंग्रेजी में प्रकाशित आत्मकथा 'ऑन माय टर्म्स' का हिंदी अनुवाद है जिसे राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है. 'अपनी शर्तों पर' किताब की भूमिका में शरद पवार ने कहा, "यह किताब मैंने अपने जीवन पर दृष्टिपात करने के लिए तैयार की, साथ ही कुछ जरूरी बातों पर अपने विचार रखने और कुछ बातों के जवाब देने के लिए भी."

Advertisement

पांच दशक लंबे अपने राजनीतिक जीवन में कोई चुनाव न हारने वाले नेता शरद पवार का यह भी मानना है कि कांग्रेस को बीजेपी के सामने खड़े होने के लिए भरोसे के साथ क्षेत्रीय दलों को जोड़ना होगा जैसे अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में किया था और मनमोहन सिंह ने भी अपने समय में किया था.

आत्मकथा में पवार ने अपने कई दशक लंबे राजनीतिक जीवन पर नजर डाली है. और गठबंधन की राजनीति से लेकर कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र, देश में कृषि और उद्योगों के हालत के साथ-साथ भावी भारत की चुनौतियों पर अपने निष्कर्ष भी व्यक्त किए हैं.

कार्यक्रम के सूत्रधार सांसद देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा, "अपनी शर्तों पर जीना आज कल बहुत मुश्किल है, और वो भी राजनीति करते हुए. यह पुस्तक यह बताती है कि शरद पवार ने अपने कामों से इसको संभव बनाया."

राज्य सभा सांसद के. सी त्यागी ने कहा, "भारत की राजनीति में इतनी लंबी पारी शायद ही किसी नेता को नसीब हुई हो. वो मराठवाड़ा से निकल कर देश की राजनीति को प्रभावित करते रहे. जाति, धर्म, क्षेत्र की सभी सीमाएं लांघ कर देश की सेवा करने के लिए हम उनको शुभकामना देते हैं और उनकी दीर्घ आयु की कामना करते हैं."

Advertisement

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के सांसद सीताराम येचुरी का कहना था, "शरद पवार नैतिकता के आधार पर एक राजनैतिक नेता के रूप में एक आधुनिक भारत के निर्माण में अपना योगदान करते रहें. उनके योगदान की आज के दौर में बहुत जरुरत है. हमारे संवैधानिक ढांचा का जो बिखराव नजर आ रहा उससे बचते हुए देश का निर्माण करने में उनकी भूमिका की जरुरत है."

इस मौके पर अशोक माहेश्वरी, मुख्य प्रबंधक, राजकमल प्रकाशन समूह ने कहा, "भारतीय राजनीति की कोई भी चर्चा कुछ जन नायकों के बिना हो ही नहीं सकती. महाराष्ट्र के किसानों की खुशहाली की क्रान्ति का बीज बोने वाले शरद पवार का नाम उनमें बहुत आगे है. शरद पवार की आत्मकथा 'अपनी शर्तों पर' एक तरह से आधुनिक भारतीय राजनीति के सिद्धांतों और समीकरणों का लेखा-जोखा है. राजनीति और समाज कार्यों में रूचि लेने वाले सभी को इसे जरूर पढ़ना चाहिए."

पुस्तक के बारे में
इस पुस्तक में उन्होंने गठबंधन की राजनीति, कांग्रेस के भीतर लोकतंत्र के क्षरण, कृषि और उद्योग की स्थिति और भावी भारत के लिए सामाजिक समरसता तथा उदार दृष्टिकोण की अहमियत पर अपने विचार प्रकट किए हैं. पुस्तक में वे देश पर आए संकट के कुछ क्षणों पर भी हमें दुर्लभ जानकारी देते चलते हैं, जिनमें आपातकाल और देश की क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय राजनीति पर उसके प्रभाव; 1991 में चंद्रशेखर सरकार का पतन; राजीव गांधी और एच.एस. लोंगोवाल के बीच हुआ पंजाब समझौता; बाबरी मस्जिद ध्वंस; 1993 के मुम्बई दंगे; लातूर का भूकम्प; एनरॉन विद्युत परियोजना विवाद और सोनिया गांधी द्वारा प्रधानमंत्री पद न लेने का फैसला आदि निर्णायक महत्व के मुद्दे शामिल हैं. भारतीय राजनीति के कुछ बड़े नामों का रोमांचकारी आंकलन भी उन्होंने किया है, जिससे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, वाई.बी. चव्हाण, मोरारजी देसाई, बीजू पटनायक, अटल बिहारी वाजपेयी, चन्द्रशेखर, पी.वी. नरसिम्हा राव, जॉर्ज फर्नांडीज और बाल ठाकरे के व्यक्तित्वों पर नई रोशनी पड़ती है.

Advertisement

लेखक परिचय
शरद पवार राज्यसभा के सदस्य और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष हैं जिसकी स्थापना उन्होंने 1999 में की थी. पवार अलग-अलग समय पर चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. 1991-93 के दौरान केन्द्र सरकार में रक्षामंत्री और 2004-14 के मध्य कृषि मंत्री भी रह चुके हैं. वे भारत की सर्वाधिक प्रभावशाली राजनैतिक हस्तियों में आते हैं. पांच दशक लंबे अपने राजनैतिक जीवन में उन्होंने कभी कोई चुनाव नहीं हारा. चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. दो मौके ऐसे भी आए जब वे भारत के प्रधानमंत्री हो सकते थे. वे भारत और महाराष्ट्र के इतिहास को साठ के दशक से देख रहे हैं.

Advertisement
Advertisement