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78 साल की उम्र में बुजुर्ग शिक्षक ने बना डाली 5 भाषाओं की डिक्शनरी

कहते हैं कि प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज नहीं होती. इस बात को कई लोग साबित भी कर चुके हैं. ऐसे ही कुछ लोग में शामिल हैं बिहार के छपरा के रहने वाले 78 साल के बुजुर्ग शिक्षक पंडित बद्री नारायण पांडे. उम्र की जिस दहलीज पर लोग अपने परिवार और उनकी खुशियों तक सीमित रह जाते हैं, उसी पड़ाव पर पहुंचकर बद्री नारायण ने छात्रों लिए एक नहीं बल्कि पांच भाषाओं की डिक्शनरी बना डाली.

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बद्री नारायण पांडे
बद्री नारायण पांडे

कहते हैं कि प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज नहीं होती. इस बात को कई लोग साबित भी कर चुके हैं. ऐसे ही कुछ लोग में शामिल हैं बिहार के छपरा के रहने वाले 78 साल के बुजुर्ग शिक्षक पंडित बद्री नारायण पांडे. उम्र की जिस दहलीज पर लोग अपने परिवार और उनकी खुशियों तक सीमित रह जाते हैं, उसी पड़ाव पर पहुंचकर बद्री नारायण ने छात्रों लिए एक नहीं बल्कि पांच भाषाओं की डिक्शनरी बना डाली.

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पंडित बद्री नारायण पांडे ने एक ऐसी डिक्शनरी बनाई है जिसमें पांच भाषाएं शामिल हैं. इन पांच भाषाओं में अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत, पर्सियन और जर्मन भाषा शामिल है. मजेदार बात ये है कि ये पांचों भाषाएं आपको एक ही किताब में उपलब्ध कराई गई हैं. बद्री नारायण द्वारा रचित इस डिक्शनरी का नाम 'A five language concise Dictionary' है.

फिलहाल छपरा शहर के हरदन बासु लेन में बेहद ही साधारण जीवन व्यतीत कर रहे बद्री नारायण से हमने मिलकर बात की और इस डिक्शनरी की रचना के मूल उद्देश्य के बारे में उनसे पूछा. बद्री नारायण ने बताया कि भाषा की समझ और जानकारी के लिए बेहतर शब्दावली का होना बेहद जरूरी है. भाषा की विविधता को जानने के लिए भाषा का तुलनात्मक अध्ययन होना चाहिए. पांडे ने बताया कि शिक्षण कार्य के दौरान ही उन्हें ये बात पता चली कि दुनिया की कई भाषाएं एक दूसरे से मिलती हैं और तब से ही वो इस डिक्शनरी पर काम कर रहे थे.

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पांडे ने बताया कि एमए की पढ़ाई के दौरान उन्होंने 'ब्लूमफील्ड' की एक किताब पढ़ी थी जिसमें उन्होंने देखा कि अरबी, फारसी, जर्मन और फ्रेंच, सभी भाषाएं एक दूसरे से मिल रही है. पांडे ने बताया कि पर्सियन और संस्कृत भाषा एक दूसरे से बहुत मिलते हैं इसलिए उन्हें इसकी विविधता को समझने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. जर्मन भाषा की जानकारी के लिए भी उन्होंने कई किताब पढ़े.

बद्री नारायण ने बताया कि इस डिक्शनरी की परिकल्पना तो उन्होंने बहुत पहले कर ली थी लेकिन इसको मूल रूप में लाने का काम सेवानिवृत्ति के बाद ही दे पाए. पांडे का जन्म एक बेहद ही साधारण परिवार में बिहार के सीवान जिले के हुलेसरा गांव में हुआ. बद्री नारायण के पिता का नाम पंडित रास बिहारी पांडे था जो पेशे से छपरा कोर्ट में मुख्तार थे. पांडे बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल थे. साल 1955 में मैट्रिक, साल 1957 में छपरा के राजेंद्र कॉलेज से इंटरमीडिएट, और साल 1959 में इसी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली थी. शिक्षा ग्रहण करने के बाद साल 1960 से ही शिक्षण का कार्य शुरू कर दिया था जो अब भी जारी है.

फिलहाल बद्री नारायण इस डिक्शनरी के विस्तार पर काम कर रहे हैं. बद्री नारायण पांडे का ये प्रयास वाकई काबिल-ए-तारीफ है और उम्मीद है कि उनकी बनाई गई इस डिक्शनरी से छात्रों को काफी मदद मिलेगी.

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