रायपुर साहित्य महोत्सव के तीसरे दिन लोकसंगीत पर कई मशहूर कलाकारों ने अपनी राय रखी. इस मौके पर आयोजित एक गोष्ठी के दौरान खुमान साव ने कहा कि छत्तीसगढ़ी लोक संगीत का दायरा बहुत व्यापक है. उसे बताने के लिए पांच-दस मिनट तो क्या पांच दिन और पांच महीने भी कम होंगे.
साव ने कहा कि छत्तीसगढ़ी
लोक संगीत में रिदम या ताल स्वाभाविक रूप से शामिल हैं. यहां के लोक गीतों के सुर और ताल शास्त्रीय संगीत वालों को भी आश्चर्य चकित कर देते हैं. इस गोष्ठी
में खुमान साव, लक्ष्मण मस्तूरिया और ममता चन्द्राकर ने छत्तीसगढ़ी लोक संगीत और बलबीर सिंह भी शामिल हुए.
लक्ष्मण मस्तूरिया ने इस बात पर चिंता जताई कि आज के समय में छत्तीसगढ़ी लोक गीत और लोक संगीत के नाम पर समाज में जो कुछ भी परोसा जा रहा है, उसमें मौलिकता नहीं है. वास्तव में देखा जाए, तो वह छत्तीसगढ़ का असली लोकगीत और लोकसंगीत नहीं है.
मस्तूरिया ने कहा कि लोकगीत और लोक नृत्य केवल देखने की नहीं बल्कि अनुभव करने और जीवन में उतारने की चीज है. उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के लोगों को अपनी लोक संस्कृति, अपने लोक गीत और लोक संगीत को लेकर आत्म गौरव होना चाहिए. लालराम कुमार सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ का लोक संगीत अथाह सागर की तरह है. यहां जन्म से मौत तक सभी रीति-रिवाजों में इसकी गूंज सुनाई देती है.