1. चलिए आप की बातें हम मान लेते हैं
जान के बदले मगर हम जान लेते हैं
नक़ाब नहीं ज़रा ये पलकें उठाइए,
हम आंखों का हर हर्फ पहचान लेते हैं
बढ़े हैं भाव और हुए हैं तंग लिबास,
अब कर्ज लेकर चड्डी बनियान लेते हैं
कब तलक रिवायतों का हम वजन उठाएं,
हाशिए से ही 'साथी' उनमान लेते हैं
2. कमबख्त ने कह दिया तुम कमबख्त नहीं
तुमको वक्त दें इतना यहां वक्त नहीं
बेइंसाफी नहीं होगी, किसी हाल में
अवामी ताकत है निज़ामी तख्त नहीं.
ये कहकर वक्त ने जिस्म समेट लिया,
तेरा वक्त आएगा मगर बेवक्त नहीं
ये सख्त सलाखें अक्सर टूट जाते हैं,
कानून सख्त हो पर ज़्यादा सख्त नहीं
गर हुए बागी तो बगावत तय समझिए,
सुनो हम 'साथी' हैं तुम्हारे भक्त नहीं
3. वो कह रहे थे कोई सैलाब आया है
उनके किए करम का अब हिसाब आया है
मांगते थे जो कभी जुगनुओं से रौशनी,
हिस्से में उनके आज आफताब आया है
ज़ुबानी जंग में आवाजें रौंदी जाती है,
क्या चिल्लाने से कभी इंकलाब आया है
हसीन ख्वाबों ने नजर में जड़ दिए ताले,
अच्छा हुआ कि आज बुरा ख्वाब आया है
यूँ बेनकाब होकर तुम अच्छे नहीं लगते,
पहन लो इंसानियत का गर नकाब आया है
उनके बे अदब अल्फाज से भी हुई खुशी,
कम से कम 'साथी' का कुछ जवाब आया है.
अक्षय दुबे साथी: पेशे से डॉक्यूमेंट्री स्क्रिप्ट राइटर हैं. यायावरी इनका शौक नहीं बल्कि जीवन का लक्ष्य है. आप भी अपनी कविताएं booksaajtak@gmail.com पर भेज सकते हैं.