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और जब प्रधानमंत्री मोदी की जीत ने जीतने-हारने वाले नेताओं को साहित्य से जोड़ा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारतीय जनता पार्टी की रिकार्डतोड़ जीत के बीच आज कई बार साहित्य भी सियासत के केंद्र में आ गया. स्मृति ईरानी ने अपने ट्वीट में दुष्यंत कुमार की पंक्तियां लिखीं, तो सुधांशु त्रिवेदी ने महादेवी वर्मा को याद किया. रागिनी नायक ने हरिवंशराय बच्चन के नाम से सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित पंक्तियां सुनाईं.

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प्रतिकात्मक इमेज [ सौजन्य Amit Shah_Official ]
प्रतिकात्मक इमेज [ सौजन्य Amit Shah_Official ]

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जीत हो या हार, सियासी उठापठक तात्कालिक है और अंततः जीतने और हारने वाले दोनों पक्ष साहित्य और शब्दों की ओर ही लौटते हैं. लोकसभा चुनाव की मतगणना वाले दिन सियासी गहमागहमी के बीच साहित्य को ऐसे ही जगह मिली. लोकसभा चुनाव 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारतीय जनता पार्टी की रिकार्डतोड़ जीत के बीच कई बार ऐसा हुआ. अमेठी के रण में राहुल गांधी को पटखनी देने वाली स्मृति ईरानी ने जहां अपने ट्वीट में दुष्यंत कुमार की पंक्तियां लिखीं, वहीं सुधांशु त्रिवेदी ने महादेवी वर्मा को याद किया. रागिनी नायक ने हरिवंशराय बच्चन के नाम से सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित पंक्तियां सुनाईं.

अमेठी में राहुल गांधी पर विजयी बढ़त बनाने के बाद स्मृति ईरानी ने अपने ट्वीट में दुष्यंत कुमार के ग़ज़ल की पंक्ति- कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता, लिखीं, तो भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने 'आजतक' पर चल रही डिबेट के दौरान महादेवी वर्मा के गीत- 'पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला' की चंद पंक्तियां गुनगुनाई. कांग्रेस की तरफ से बोल रही रागिनी नायक ने सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित 'लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती' सुनाया.

साहित्य आजतक पर पढ़ें ये तीनों ही रचनाएं-

1.
ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो


                     - दुष्यंत कुमार

ये जो शहतीर है पलकों पे उठा लो यारो
अब कोई ऐसा तरीका भी निकालो यारो

दर्दे—दिल वक़्त पे पैग़ाम भी पहुँचाएगा
इस क़बूतर को ज़रा प्यार से पालो यारो

लोग हाथों में लिए बैठे हैं अपने पिंजरे
आज सैयाद को महफ़िल में बुला लो यारो

आज सीवन को उधेड़ो तो ज़रा देखेंगे
आज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारो

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारो

कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो

लोग कहते थे कि ये बात नहीं कहने की
तुमने कह दी है तो कहने की सज़ा लो यारो

2.
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला


                                  - महादेवी वर्मा

पंथ होने दो अपरिचित
प्राण रहने दो अकेला
घेर ले छाया अमा बन
आज कंजल-अश्रुओं में
रिमझिमा ले यह घिरा घन

और होंगे नयन सूखे
तिल बुझे औ’ पलक रूखे
आर्द्र चितवन में यहां
शत विद्युतों में दीप खेला

अन्य होंगे चरण हारे
और हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे
दुखव्रती निर्माण उन्मद
यह अमरता नापते पद
बांध देंगे अंक-संसृति
से तिमिर में स्वर्ण बेला

दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी
आज जिस पर प्रलय विस्मित
मैं लगाती चल रही नित
मोतियों की हाट औ’
चिनगारियों का एक मेला

हास का मधु-दूत भेजो
रोष की भ्रू-भंगिमा पतझार को चाहे सहे जो
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल, स्वप्न-शतदल
जान लो वह मिलन एकाकी
विरह में है दुकेला!

3.
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

                             
                            -सोहनलाल द्विवेदी

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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती


नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.

[कई लोग इस रचना को हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित मानते हैं, लेकिन अमिताभ बच्चन ने अपनी एक फ़ेसबुक पोस्ट में स्पष्ट किया है कि यह रचना सोहनलाल द्विवेदी जी की है.] 

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