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विश्व पुस्तक मेला गए नहीं तो जाइए, आखिरी दो दिन बचे हैं

दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहा विश्व पुस्तक मेला अब समाप्त‍ि की ओर पहुंच रहा है. 14 फरवरी से शुरू हुए पुस्तक मेले की आखिरी तारीख है 22 फरवरी. अगर आप अभी तक किताबों की दुनिया की सैर पर नहीं गए हैं, तो पहली फुरसत में निबटा आइए.

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दिल्ली में चल रहा विश्व पुस्तक मेला
दिल्ली में चल रहा विश्व पुस्तक मेला

दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहा विश्व पुस्तक मेला अब समाप्त‍ि की ओर पहुंच रहा है. 14 फरवरी से शुरू हुए पुस्तक मेले की आखिरी तारीख है 22 फरवरी. अगर आप अभी तक किताबों की दुनिया की सैर पर नहीं गए हैं, तो पहली फुरसत में निबटा आइए.

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विश्व पुस्तक मेले में इस बार कई ऐसी बातें हैं, जो इसे खास बनाती है. किताब पढ़ने वालों की कमी का रोना रोने के बजाए प्रकाशकों ने स्मार्ट तरीकों से पाठकों को लुभाने के तरीके ईजाद किये हैं. इस बार आपको पुस्तक मेले में ई-लर्निंग, ई-प्रिंटिंग, 3डी प्रिंटिंग, ई-क्लासेज जैसी कई चीजें देखने को मिलेंगी. महत्वपूर्ण बात ये है कि हॉल नंबर 1 में तमाम ऐसी कंपनियों के स्टॉल हैं, जो न सिर्फ शैक्षिक किताबें मुहैया करा रहे हैं, बल्कि देश में शिक्षण पद्धति में भी क्रांतिकारी बदलाव की ओर अग्रसर हैं.

शिक्षा में तकनीकी को लाने की दिशा में क्या प्रगति हो रही है यह जानना हो तो हॉल नंबर 1 के स्टॉल नंबर 1 से 30 तक पहुंच जाएं. यहां जब आप जाएंगे तो रूबरू होंगे शिक्षण क्षेत्र की ऐसी तकनीकों से, जिनके बारे में खासकर भारत में लोगों ने सिर्फ हॉलीवुड फिल्मों में ही देखा है. ऐसी ही तकनीकों में 3डी प्रिंटिंग बेहद खास है. एमबीडी ग्रुप के स्टॉल पर इसी सिलसिले में कई अलग मशीनें नजर आईं.

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एमबीडी के स्टॉल पर आपको मिलेगी दिखने में छोटी सी प्रिंटिंग मशीन. मटेरियल के तौर पर प्लास्टिक के बने तार. ये छोटे से उपकरण पलक झपकते ही आपके सामने आपकी सोची हुई आकृति में बदल जाएंगे. मसलन आप अगर चूहे के सिर के अंदरूनी हिस्सों पर शोध कर रहे हैं, और उसका पूरा डायाग्राम आपके पास महज डिजाइन में है, तो आप इस खास मशीन के माध्यम से प्लास्टिक से बना चूहे या बिल्ली जिसका भी चाहे, उसका दिमाग पा सकते हैं. यकीनन ये हैरतअंगेज तो है ही, साथ ही बड़ा मजेदार भी.

इस तकनीक के माध्यम से लाइन मॉडल्स बनाने बेहद आसान हो गए हैं. ये सिर्फ शिक्षा में ही नहीं, बल्कि औद्योगिक मॉडलों के लिए भी बेहद उपयोगी हैं. मसलन अगर आप भवन निर्माता हैं और अब तक सिर्फ कागजों पर ही भवनों का मॉडल बनाते रहे हैं, तो इस तकनीक के प्रयोग से आप अपने भवन का 3डी मॉडल बना सकते हैं. बात दाम की करें, तो कंपनी का दावा है कि कीमतें आम-खास सबकी पकड़ के अंदर ही हैं.

ऐसी ही कोशिश में नेत्र ऐप को विकसित किया गया. इस ऐप के माध्यम से आप किताबों को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे. इन किताबों में एक खास प्रकार का लोगो बना होता है. जो किसी भी चित्र के ऊपर होता है. इसे ऐप के माध्यम से एक्सेस करते ही उस तस्वीर का पूरा डायाग्राम आपके मोबाइल पर आ जाता है, जिसके माध्यम से आप बेहतर तरीके से हर उस बड़ी बात को समझ सकते हैं, जो अमूमन शिक्षकों को भी समझाने में परेशानी आती है.

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विश्व पुस्तक मेला 2015 की विषयवस्तु ‘सूर्योदय- पूर्वोत्तर भारत के उभरते स्वर’ रखी गई है. नेशनल बुक ट्रस्ट वहां के जनजीवन से संबंधित साहित्य और सिनेमाओं का प्रदर्शन करेगा. इसके अलावा फिल्म तथा इतिहास पर पैनल चर्चा, संवादात्मक सत्र और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाना निर्धारित है. दक्षिण कोरिया इस मेले के केंद्र में है. दक्षिण कोरिया के 200 पुस्तकों की प्रदर्शनी विशेष आकर्षण का केंद्र है.

विश्व पुस्तक मेले में कुछ मंडप भी बनाये गये हैं जिनमें विदेशी और बाल मंडप प्रमुख हैं. विदेशी मंडप में जहां विश्व भर के करीब 30 देशों ने अपनी पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाई है, वहीं बाल मंडप में विभिन्न भारतीय भाषाओं में बाल साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर आधारित पुस्तकों ओर पत्रिकाओं की प्रदर्शनी लगाई गई हैं

इस वर्ष के पुस्तक मेले में इवेंट कॉर्नर की अनूठी शुरूआत की है जिसमें अतिथि और केंद्रित-देश के अतिरिक्त 10 से अधिक देशों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है. मेले में आने वाले आगंतुकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एंड्रॉयड और आइफोन मोबाइल प्रयोक्ताओं के लिए विशेष मैबाइल ऐप ‘NDWF-2015’ की शुरूआत की गई है जो उन्हें मंजिल तक जाने का मार्ग दिखाएगी.

हर बड़े प्रकाशक के पास कुछ विशेष किताबें मुख्य आकर्षण के तौर पर उपलब्ध हैं. वाणी प्रकाशन ने जहां पत्रकार से नेता बने आशुतोष की किताब 'मुखौटे का राजधर्म' के बड़े पोस्टर चस्पा कर रखे हैं वही राजकमल प्रकाशन रवीश के 'इश्क में शहर होना' को भुना रहा है. पाठकों का किताबों और लेखकों दोनों से एक जगह मुलाकात करने का इससे बेहतर मौका भला क्या हो सकता है.

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बहुत कुछ नये के साथ पुस्तक मेले में पुराना सा भी काफी कुछ है. साहित्य की सदाबहार किताबे नये प्रिंट और संशोधित मूल्य के साथ. इसके अलावा ऑथर्स कॉर्नर में लेखकों के कार्यक्रम होते ही रहते हैं. प्रकाशकों का कहना है मेले में दिल्ली वालों की आमद पिछले साल के मुकाबले कम दिख रही है. मेला वो भी किताबों का वीरान अच्छा नहीं लगता. छुट्टियां भी हैं और मेला भी हो आइए.

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