पोएट्री कहें, शायरी कहें या फिर कविता, सिर्फ ज़ुबान का दायरा तोड़ दिया जाए, तो ये सभी अल्फ़ाज़ एक ही दुनिया से त'अल्लुक़ रखते हैं. पोएट्री किसी के लिए ज़िंदगी में नए रास्तों का ज़रिया हो जाती है, किसी के लिए एंटरटेनमेंट की वजह, तो किसी की ख़ातिर दुनिया से मिले दर्द को सहने के लिए उसकी हस्ती का सामान है. पोएट्री की दुनिया अदब यानी साहित्य (Literature) की ज़मीन पर बसी एक बस्ती जैसी होती है, जिसमें हर तरह के लोगों का गुज़र-बसर हो जाता है. इस बस्ती को दूर से देखने वाले लोग शायरी और शायर दोनों को अलग-अलग नज़र से देखते हैं.
आइए जानते हैं कि पोएट्री/शायरी/कविता है क्या? हमारी ज़िंदगी में इसकी क्या अहमियत होती है और सोशल मीडिया के दौर में पोएट्री कर रही नई नस्ल को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
World Poetry Day क्यों और कब से?
साल 1999 में UNESCO ने अपनी 30वीं जनरल कॉन्फ्रेंस में 'वर्ल्ड पोएट्री डे' की शुरुआत की थी. इसका मक़सद दुनिया की तमाम तरह की ज़ुबानों और तहज़ीबों को बचाकर रखना और किसी की क़लम से पोएट्री के रूप में निकले उसके व्यक्तिगत हुनर को अपनाना है. इस साल इसकी थीम है- 'Standing on the Shoulders of Giants', जिसका मतलब है- "दिग्गजों के कंधों पर खड़े होना"
शायरों और कवियों की नज़र में पोएट्री क्या है?
ग्रीक फिलॉसफर प्लेटो ने लिखा है- Poetry इतिहास की तुलना में किसी बड़े सच के ज़्यादा क़रीब होती है.
फ़िलिस्तीन के राष्ट्रीय कवि माने जाने वाले महमूद दरविश (Mahmoud Darwish) ने लिखा है- पोएट्री और ख़ूबसूरती हमेशा सुकून देने वाली चीज़ें हैं. जब आप कुछ शानदार चीज़ पढ़ते हैं, तो आप ज़िंदगी जीने की वजह पाते हैं. यह हर तरह की बाधाओं और मुश्किलों को ख़त्म करने का काम करती है.
उर्दू अदब की मशहूर हस्तियों में शामिल प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी वर्ल्ड पोएट्री डे पर 'aajtak.in' से बातचीत में कहते हैं कि शायरी, कविता और क्रिएटिविटी किसी की इख़्तियारी चीज़ नहीं है. वो एक वालिहाना यानी प्रेमपूर्वक की गई तर्जुमानी होती है. उसके बारे में लोग अपनी राय तो दे सकते हैं लेकिन उसको कैसा होना चाहिए ये किसी के इख़्तियार में नही होता है.
वसीम बरेलवी आगे कहते हैं कि इसीलिए क्रिएटिविटी को समाज के द्वारा बहुत ज़्यादा अहमियत दी जाती है. शायर और कवि अपने वजूद के इज़हार को जिस तरह से दुनिया के सामने लाता है, वो उसका अपना होता है, उसकी अपनी एक हैसियत होती है.
'शायरी आर्ट की मां है...'
उर्दू शायर तहज़ीब हाफ़ी कहते हैं कि शायरी एक इज़हार है. जो लोग अपनी ख़्वाहिशात का इज़हार नहीं कर पाते, शायर उसको बाहर लाने की कोशिश करता है. पोएट्री दुनिया को देखने की एक आंख हैं, एक ऐसी खिड़की है, जिससे आप एक अलग दुनिया देख सकते हैं.
तहज़ीब हाफ़ी कहते हैं कि थिएटर को आर्ट की मां कहा जाता है लेकिन मैं कहता हूं कि शायरी आर्ट की मां है क्योंकि शायर चैलेंज करता है- इतिहासकार को, फिलॉस्फर को. मुझे लगता है कि शायर एक क़िले में खड़ा है और सबको चैलेंज कर रहा है कि आओ मुझसे कैसे जीत सकते हो क्योंकि वो एक ऐसी कायनात से एक चीज़ वजूद में लाता है, जो पहले एक्जिस्ट ही नहीं करती थी.
'मौन भी कविता है...'
हिंदी साहित्य के चर्चित कवि-कथाकार गीत चतुर्वेदी कहते हैं कि कविता हृदय की छुई-अनछुई अनुभूतियों की अभिव्यक्ति का एक माध्यम है, जिसका सहारा हम ख़ुद को बयान करने के लिए लेते हैं. हम जिस सत्य को अपने जीवन में नहीं पा सकते, उस सत्य को कविता के माध्यम से पाने की कोशिश करते हैं. मेरे लिए कविता सत्य और सौंदर्य तक पहुंचने का एक रास्ता भी है. मौन भी कविता है, यह अचानक किसी भी समय नाज़िल हो सकती है.
तहज़ीब हाफ़ी कहते हैं कि फिलॉस्फर वो बताता है, जो हो चुका है और शायर वो बताता है, जो होने वाला है. शायर बहुत आगे की चीज़ है. शायर एक नॉवेल को दो लाइनों में बंद कर सकता है और शायर के एक शेर से पूरा नॉवेल बन सकता है. कुछ ऐसे शेर भी होते हैं, जिनको एक्सप्लेन करते-करते आप कई साल नॉवेल लिखते रहिए और वो मुकम्मल नहीं होता है. उन दोनों लाइनों में कायनात छिपी होती है.
'अदब (साहित्य) समाज का आईना...'
प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी कहते हैं कि इतिहास लिखा और लिखवाया जाता है लेकिन साहित्य और अदब समाज का आईना होता है. शायर इतना आज़ाद होकर लिखता है कि वो अपनी अहद की सच्चाइयों को बयान करता है, और वो असली सच्चाई होती है, जो तारीख़ यानी इतिहास की सच्चाई से कभी-कभी अलग भी होती है.
World Poetry Day हम क्यों मनाएं?
साहित्य में अलग-अलग विधाएं होती हैं, जिनको हम किताबों में पढ़ सकते हैं. डिजिटल मीडिया के ज़माने में वीडियोज़ और पॉडकास्ट के ज़रिए इसका लुत्फ़ उठा सकते हैं लेकिन ये सवाल उठता है कि हम इसको सेलिब्रेट क्यों करें.
तहज़ीब हाफ़ी कहते हैं कि जब आपको यह पता चल जाएगा कि एक इंसान की ज़िंदगी में शायरी करती क्या है, तो फिर आप इसे सेलिब्रेट करेंगे. शायरी या आर्ट हमारी ज़िंदगी को आसान बनाने का काम करते हैं. अगर आप कहीं से थक-हार के आते हैं और एक शेर सुनते हैं, तो आपको गुज़रे लम्हे याद आ जाते हैं, आप बचपन की याद में खो जाते हैं या आपको कोई याद आ जाता है. आप उसमें थोड़ी देर खो जाते हैं और सुकून मिलता है.
गीत चतुर्वेदी कहते हैं कि कविता लोगों को ज़िंदगी में भरोसा करना सिखाती है. 'कुछ लोग मुझसे कहते हैं कि आपकी कविता पढ़कर ख़ुदकुशी का विचार टाल दिया, वहीं कुछ लोग ये भी कहते हैं कि मैं हंस रहा था, आपकी कविता पढ़कर उदास हो गया.' कविता आपके चेहरे पर आई हुई हंसी को छीन भी सकती है, क्रोध भी ला सकती है, बेबसी से भी भर सकती है. कविता की यही सबसे बड़ी भूमिका है कि यह आपको ज़िंदगी के तमाम पहलुओं से परिचित करा सकती है, यह आपको बेहतर मनुष्य होने के लिए प्रेरित कर सकती है और लगातार करती रह सकती है.
तहज़ीब हाफ़ी कहते हैं कि शायरी इंसान को नॉर्मलाइज़ करती है, हौसला देती है. शायरी का दिन इसलिए मनाना चाहिए क्योंकि ये आपकी ज़िंदगी आसान करती है.
उर्दू शायरी और हिंदी कविता पर सोशल मीडिया का क्या असर हुआ?
शायरी और कविता तो ज़माने से चली आ रही विधा है लेकिन सोशल मीडिया का दौर आने के बाद इसको पढ़ने और सुनने के तरीक़ों में इज़ाफ़ा आया है.
प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी कहते हैं कि जिस तरह से आज सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो रहा है, सोशल मीडिया पर शायरी आई है, यह बहुत अच्छा है. लोगों को दूर-दराज़ पहुंचाया जा सकता है. थोड़ी ही देर में बात पूरी दुनिया तक पहुंच जाती है. इसमें कोई शक नहीं है कि इससे बहुत फ़ायदे हुए हैं लेकिन इससे जो नुक़सानात हैं, उनका वज़्न ज़्यादा है.
गीत चतुर्वेदी कहते हैं कि दुनिया की तमाम भाषाओं की कविताओं की तरह हिंदी कविता पर भी सोशल मीडिया ने प्रभाव डाला है और कविता पहले के मुक़ाबले ज़्यादा मुखर हुई है, स्वच्छंद हुई है और कई मामलों में स्वतंत्र है. इसके अलावा तमाम गुण-अवगुण छोड़ दें, तो एक बात तो सभी मानेंगे कि सोशल मीडिया के दौर में हिंदी कविता की व्याप्ति और प्रसार दोनों में बढ़ोतरी हुई है.
शायर तहज़ीब हाफ़ी कहते हैं कि सोशल मीडिया ने हिंदी और उर्दू शायरी को फ़ायदा भी दिया है और नुकसान भी पहुंचाया है. फायदा इस तरह से दिया है कि पहले लोग ख़ुद के पीछे हो जाने के डर से कभी-कभी अपने से पीछे वालों को आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश करते थे लेकिन सोशल मीडिया के दौर में अपने ही स्मार्टफोन से अपनी बात दुनिया तक पहुंचाई सकती है. अब हर तरफ शायरी हो गई. वो आगे कहते हैं कि जब हम 17-18 साल पहले शायरी कर रहे थे, तब इसमें दिलचस्पी रखने वाले लोगों की तादाद कम थी. अब एक्टर्स भी शेर पढ़ रहे हैं, कॉमेडियन भी शेर पढ़ रहे हैं. मुझे ये तब्दीली पसंद आई. लोग शायरी की तरफ जितना आएंगे, हमें अच्छा लगेगा.
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'यह अच्छी अलामत नहीं...'
प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी सोशल मीडिया के दूसरे पहलू की बात करते हुए कहते हैं कि अगर हम उर्दू की बात करें तो मीर और ग़ालिब के ज़माने में दिल्ली से लखनऊ और रामपुर तक का सफ़र चार-पांच महीने और सालों के अंदर हुआ करता था. आज पहुंच तो बढ़ी है मगर अमल के अंदर जो ठहराव ज़रूरी है, वो ख़त्म होता जा रहा है और यह कोई अच्छी अलामत नहीं है.
तहज़ीब हाफ़ी कहते हैं कि सोशल मीडिया से नुक़सान ये हुआ कि आज कुछ भी चल रहा है. जिसको ग़ज़ल में मिसरा कहना भी नहीं आता है, वो भी आकर शेर पढ़ रहा, इससे शायरी के मेयार के साथ कॉम्प्रोमाइज़ किया जा रहा है.
शायरी और कविता लिखने की कोशिश करने वाली नई नस्ल क्या करे और क्या ना करे?
इंटरनेट क्रांति और सोशल मीडिया आने के बाद पोएट्री को लेकर एक नई ऊर्जा देखने को मिली है. जॉब और प्रोफेशन वाले लोगों को भी साहित्य के मंच पर देखा जा रहा है. इसमें ख़ासकर नई नस्ल का चलन ज़्यादा है.
ऐसे में साहित्य की दुनिया में क़दम रखने वाले नई नस्ल के लोगों को किस तरह से ख़ुद को पॉलिश करना चाहिए, इस पर गीत चतुर्वेदी कहते हैं कि जब मैंने लिखने की शुरुआत की थी, तो मेरे पिता जी ने मुझसे एक बात कही थी कि, 'अगर तुम एक पंक्ति लिखना चाहते हो, तो तुम्हारे पास एक हज़ार पंक्तियों का अध्ययन होना चाहिए'. यही बात मैं भी तमाम लोगों से कहता हूं कि जितना ज़्यादा हो सके उतना पढ़िए, आपका लेखन हमेशा अच्छा होता जाएगा. लिखिए कम और पढ़िए ज़्यादा,
'चोर रास्ता नहीं...'
तहज़ीब हाफ़ी कहते हैं कि शयारी या किसी भी आर्ट के अंदर चोर रास्ता नहीं होता, कि आप आए और कल मशहूर हो गए, तो आपको शायरी आ गई. मशहूर होना और शोहरत मिलना अलग चीज़ है. असल बात ये है कि शायरी के लिए आपको सत्रह से अट्ठारह साल देने पड़ते हैं. किसी को भी ज़िंदगी में शायरी करनी है, तो उसके लिए सबसे ज़रूरी ये है कि सबको पढ़ लें. मीर, ग़ालिब से शुरू करिए और उनकी किताबों को घोलकर पी लीजिए. उसके बाद शायरी करें.