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मध्य प्रदेश

भव्य और दिव्य है उज्जैन का 'महाकाल लोक', पूरा परिसर भ्रमण करने में लगेंगे 6 घंटे

mahakal corridor
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उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर का कार्य पूरा हो चुका है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम 11 अक्टूबर को शाम का तय माया जा रहा है. शाम होते ही रोशनी से जगमगाते महाकाल कॉरिडोर का लोकार्पण किया जाएगा. महाकाल कॉरिडोर में विभिन्न देवी देवताओं की बड़ी मूर्तियों की स्थापना का काम तेजी से चल रहा है. 108 स्तंभ बनाये जा चुके हैं. कॉरिडोर में शिव कथा को दर्शाने वाले चित्रांकन किये जा रहे हैं. भव्य प्रवेश द्वार बनाया गया है. उज्जैन में बन रहा कॉरिडोर काशी विश्वनाथ मंदिर से आकार में करीब 4 गुना बड़ा है. महाकाल कॉरिडोर में शिव तांडव स्त्रोत, शिव विवाह, महाकालेश्वर वाटिका, महाकालेश्वर मार्ग, शिव अवतार वाटिका, प्रवचन हॉल, रूद्रसागर तट विकास, अर्ध पथ क्षेत्र, धर्मशाला और पार्किंग सर्विसेस भी तैयार किया जा रहा है. इससे भक्तों को दर्शन करने और कॉरिडोर घूमने के दौरान खास अनुभव होने वाला है.

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महाकल के पथ पर सबसे पहले आपको नजर आएगा महाकाल का सबसे प्रिय गण नंदी, जिसे एक द्वार का स्वरूप देकर विशालकाय रूप में शिखर पर 4 नंदी प्रतिमा को विराजमान कर द्वार बनाया गया है. जिसके ठीक सामने शिव पुत्र गणेश और विपरीत दिशा में त्रिशूल और रुद्राक्ष की मूर्ति नजर आएगी. इस भव्य नंदी द्वार में 10 दिगपाल और 8 अलग-अलग पिलर सुंदर कलाकृतियों के साथ नजर आएंगे, जिसे राजस्थान के बंसी पहाड़पुर सेंड स्टोन से राजस्थान के कारीगरों ने तराशकर तैयार किया है.

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नंदी द्वार के प्रवेश के बाद ही आपको कॉरिडोर में कमल को नजर आएगा जिस के बीचो बीच ध्यान मुद्रा में दिखाई देंगे और चार अलग-अलग दिशाओं में चार सिंह की मूर्ति भी लगाई गई हैं. फव्वारे और इस कमल कुंड की खूबसूरती रात की रोशनी में देखते ही बनती है. दरअसल, माना जाता है कि महाकाल वन के वक्त इसी स्थान पर कमल खिला करते थे. यही वजह है किस स्थान पर कमल को तैयार कर शिव को ध्यान मुद्रा में मूर्त रूप में दिखाया गया है.

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ये कॉरिडोर खूबसूरत तो है ही. साथ ही पौराणिक दृष्टिकोण से लोगों का ज्ञान वर्धन भी करता है. कमल कुंड के ठीक सामने सप्त ऋषि मंडल बना है, जिसके ठीक बीच में इस कॉरिडोर का सबसे 54 फीट ऊंचा शिव स्तंभ नजर आएगा. सबसे ऊपर पांच मुखी शिव, फिर नीचे नाट्य ध्यान मुद्रा में शिव और ठीक उनके नीचे शिव के 4 गहने डमरु, अर्धचंद्र, सर्प, त्रिशूल नजर आएंगे और उनके बारे में नीचे श्लोक भी लिखे गए हैं. पुराणों में उल्लेख है कि सप्त ऋषि भगवान शिव के पहले शिष्य थे, जिन्हें महाकाल ने दीक्षा दी थी. यही वजह है सप्त ऋषि की प्रतिमा के नीचे उक्त ऋषि की गाथा भी म्यूरल के जरिए दर्शाई गई है. माना जाता है कि महाकाल से सप्त ऋषि के दीक्षा लेने के दिन को ही गुरु पूर्णिमा माना गया. महाकाल कॉरिडोर में धर्म और तकनीक का अनूठा संगम भी आपको देखने को मिलेगा क्योंकि यह जितनी भी मूर्तियां है. उन सब की अपनी एक कहानी है और इन कहानियों को जानने के लिए आपको सिर्फ इन मूर्तियों के सामने लगे बार कोड को स्कैन करना होगा. कैंप करते की मूर्तियों से जुड़ी कहानी ऑडियो और टेक्स्ट फॉर्मेट में आपके मोबाइल में आ जाएगी.

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इस पूरे महाकाल कॉरिडोर में अलग-अलग महाकाल वाटिका तैयार की गई हैं उनमें से एक है यह त्रिपुरासुर का वध करते हुए त्रिदेव की भव्य मूर्तियां. शिव पुराण में त्रिपुरासुर के वध का उल्लेख है. इस मूर्ति में सारथी के रूप में ब्रह्मा, शिव के बाण में विष्णु हैं. एक रथ के पहिए सूर्य और चंद्र हैं, चार श्वेत अश्व इसे खींच रहे हैं जो कि चार वेद हैं, ये वो दृश्य है जिसमें सृष्टि को बचाने के लिए ब्रह्मा विष्णु महेश एक साथ त्रिपुरासुर से युद्ध कर रहे हैं. महाकाल कॉरिडोर के प्रथम चरण में करीब 351 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं. इस कॉरिडोर को शिवपुराण की कथाओं के आधार पर तैयार किया गया है. इस कॉरिडोर को इस 900 मीटर लंबी और 35 फीट ऊंची दीवार से कवर किया गया है. इसे खूबसूरती देने के लिए 900 मीटर लंबी म्यूरल वाल का स्वरूप देकर 54 अलग अलग शिव कथा, शिव गाथाओं को म्यूरल के माध्यम से उकेरा गया है.

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पूरे महाकाल कॉरिडोर में भगवान शिव से जुड़े अलग-अलग प्रसंगों को बेहद ही खूबसूरती के साथ उकेरा गया है. जब आप महाकाल कॉरिडोर से होते हुए भगवान महाकाल के दर्शनों के लिए आगे बढ़ेंगे तो आपकी नजरें प्रतिमाओं पर जाकर टिक जाएंगी जो भगवान शिव के जीवन से जुड़े अलग-अलग प्रसंगों को बताती हैं. खास बात यह है कि हर प्रतिमा के नीचे उससे जुड़े इतिहास को लिखा भी गया है ताकि लोग इन प्रतिमाओं के जरिए भगवान शिव से जुड़े प्रसंगों को पढ़ सके. महाकाल कॉरिडोर के बीचो बीच बनी कैलाश पर्वत को उठा है रावण की करीब 15 फीट ऊंची प्रतिमा सबका ध्यान खींचती है. इस प्रतिमा के जरिए दिखाया गया है कि भले ही रामायण अष्ट भुजाओं के साथ सर्व शक्तिशाली था लेकिन किस तरह भगवान शिव ने महेश अपने अंगूठे के बल से उसे रसातल में पहुंचा दिया था.

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इसके थोड़ी ही दूर जाने पर भगवान शिव के जीवन से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग समुद्र मंथन को दिखाया गया है. समुद्र मंथन के दौरान जिस तरह से देवताओं और असुरों में अमृत को लेकर खींचतान हो रही थी इस प्रतिमा के जरिए उसे दिखाया गया है. समुद्र मंथन के दौरान ही भगवान शिव ने विष का प्याला पिया था और वह नीलकंठ कहलाए थे. शिव से जुड़े इसी प्रसंग को इन बेहद खूबसूरत प्रतिमाओं के साथ महाकाल कॉरिडोर पर प्रदर्शित किया गया है. पूरे महाकाल कॉरिडोर में सबसे ज्यादा आकर्षित करते हैं 108 स्तंभ. जो नंदी द्वार से लेकर महाकाल मंदिर द्वार तक बनाए गए हैं. जिन पर 108 कलाकृतियां बनाई गई है. यह भगवान शिव के आनंद तांडव की कलाकृतियां हैं. जिन्हें राजस्थान और उड़ीसा के कलाकारों ने उकेरा है.

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महाकाल कॉरिडोर में जहां एक तरफ पत्थरों का बेहतरीन इस्तेमाल है तो वहीं दूसरी ओर यहां 40000 से ज्यादा पेड़ पौधों को लगाकर आने वाले समय में एक ग्रीन कॉरिडोर के रूप में भी विकसित किए जाने की योजना है. खास बात यह है कि यहां लगाए गए पेड़ पौधों में से सिर्फ उन्हीं प्रजातियों को चुना गया है जो भगवान शिव को बेहद प्रिय हैं या फिर उनकी पूजा में जिनकी पत्तियों का इस्तेमाल होता है. महाकाल कॉरिडोर में जो पेड़ पौधे लगाए गए हैं उनमें प्रमुख रूप से कैलाशपति, शमी, रुद्राक्ष, सप्तपर्णी, गूलर, वटवृक्ष और पीपल शामिल हैं.

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महाकाल कॉरिडोर में जहां एक तरफ लोग धार्मिक रूप से जुड़ सकेंगे तो वहीं दूसरी तरफ प्रकृति के करीब रहे इसका भी यहां पूरा ध्यान रखा गया है. अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट की तरह महाकाल कॉरिडोर के पास स्थित रुद्रसागर को विकसित कर यह एक बेहद भव्य रुद्रसागर लेक फ्रंट तैयार किया गया है जहां पर बैठकर लोग रूद्र सागर के वैभव को निहार सकेंगे और यहां फुरसत के कुछ पल बिता सकेंगे. आपको बता दें कि रूद्र सागर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है. बताया जाता है कि प्राचीन उज्जैनी में सप्तसागर हुआ करते थे जिनमें से एक रुद्रसागर है. समय के साथ रखरखाव के अभाव में सप्त सागरों में से ज्यादातर या तो सूख गए या गायब हो गए. लेकिन रूद्र सागर का महत्व इसलिए बड़ा है क्योंकि यह महाकाल मंदिर से सटा हुआ है. कहा जाता है कि इसी रुद्रसागर का जल धरती से होता हुआ महाकाल मंदिर के भीतर बने कोटि तीर्थ कुंड में जाकर मिलता है. इसी कोटि तीर्थ कुंड के जल से भगवान महाकाल का अभिषेक किया जाता है.

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महाकाल कॉरिडोर में जहां एक तरफ लोग धार्मिक रूप से जुड़ सकेंगे तो वहीं दूसरी तरफ प्रकृति के करीब रहे इसका भी यहां पूरा ध्यान रखा गया है. अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट की तरह महाकाल कॉरिडोर के पास स्थित रुद्रसागर को विकसित कर यह एक बेहद भव्य रुद्रसागर लेक फ्रंट तैयार किया गया है जहां पर बैठकर लोग रूद्र सागर के वैभव को निहार सकेंगे और यहां फुरसत के कुछ पल बिता सकेंगे. आपको बता दें कि रूद्र सागर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी है. बताया जाता है कि प्राचीन उज्जैनी में सप्तसागर हुआ करते थे जिनमें से एक रुद्रसागर है. समय के साथ रखरखाव के अभाव में सप्त सागरों में से ज्यादातर या तो सूख गए या गायब हो गए. लेकिन रूद्र सागर का महत्व इसलिए बड़ा है क्योंकि यह महाकाल मंदिर से सटा हुआ है. कहा जाता है कि इसी रुद्रसागर का जल धरती से होता हुआ महाकाल मंदिर के भीतर बने कोटि तीर्थ कुंड में जाकर मिलता है. इसी कोटि तीर्थ कुंड के जल से भगवान महाकाल का अभिषेक किया जाता है.

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दरअसल, महाकाल दुनिया का इकलौता दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है और इसीलिए यहां पर साल के 12 महीने श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है. भगवान शिव को प्रिय महीना सावन का है ऐसे में सावन के पूरे महीने मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इसके अलावा महाशिवरात्रि का पर्व हो नाग पंचमी हूं या हर 12 साल में आने वाला सेहत महाकुंभ का अवसर, महाकाल मंदिर श्रद्धा का सबसे बड़ा केंद्र बन जाता है. ऐसे में यहां क्राउड मैनेजमेंट स्थानीय प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होता है. उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह की माने इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए महाकाल कॉरिडोर को इतना भव्य और विराट स्वरूप दिया गया है जिसके चलते लाखों श्रद्धालुओं को एक ही दिन में भगवान महाकाल के दर्शन कराए जा सकेंगे.

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महाकाल कॉरिडोर 2 हेक्टेयर से बढ़कर 18 हेक्टेयर का हो गया है, जिसमें फिलहाल रुद्रसागर सम्मिलित है. पूरा प्रोजेक्ट बन जाने के बाद ये एरिया लगभग 46.5 हेक्टेयर का होगा. इसके बन जाने से यात्रियों को भगवान श्री महाकालेश्वर के दर्शन सुरक्षित और आसान होंगे। प्रशासन को भीड़ नियंत्रण और प्रबंधन में सुविधा होगी. इसने कॉरिडोर के 3 प्रवेशद्वार होंगे, जिनमें से मुख्य प्रवेश नंदी द्वार है और दूसरा शिव का धनुष पिनाकी से बना द्वार तैयार हो चुका है. दूसरे चरण में नील कंठ द्वार तैयार किया जाएगा. इस पूरे प्रोजेक्ट का डिजाइन गुजरात के सरदार वल्लभ भाई पटेल ऑफ टेक्नोलॉजी से बैचलर ऑफ आर्किटेक्कर करने वाले और मूल तह यूपी निवासी प्रोजेक्ट आर्किटेक्ट कृष्ण मुरारी शर्मा ने तैयार किया है. इसे तैयार करने के लिए राजस्थान, गुजरात और उड़ीसा के कारीगरों को लाया गया. महाकाल परिसर में महाकाल कारिडोर, फेसिलिटी सेंटर, सरफेस पार्किंग का भी निर्माण किया गया है. परिसर इतना विशाल है कि पूरा मंदिर परिसर में घूमने और सूक्ष्मता से दर्शन करने के लिए 5 से 6 घंटे का वक्त लगेगा. इसके लिए यहां पर बैटरी से चलने वाली गाड़ियों का इंतजाम भी किया गया है. इस पूरे कॉरिडोर के प्रोजेक्ट डायरेक्टर कृष्ण मुरारी शर्मा का कहना है कि यहां पर जिस तरह से भगवान शिव से जुड़े प्रसंगों को दिखाया गया है वह दुनिया में कहीं भी नहीं है और इसलिए जब लोग इस कॉरिडोर से होकर गुजरेंगे तो वो भगवान शिव से जुड़े प्रसंगों की यादें भी साथ ले जाएंगे.

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