MP News: सीहोर जिले के प्रसिद्ध देवी धाम सलकनपुर मंदिर की पहाड़ी पर भालू ने एक युवक पर जानलेवा हमला कर दिया. घायल को प्राथमिक उपचार के बाद भोपाल रेफर किया गया है. युवक दुकान बंद करके लौट रहा था, तभी पहाड़ी पर बनी मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे भालू ने अचानक हमला बोल दिया. सूचना के बाद वन विभाग की टीम ने भी मौके पर पहुंचकर भालू की तलाश शुरू कर दी है.
प्रसिद्ध देवी धाम सलकनपुर मंदिर की पहाड़ी पर दीपक मेहरा की पूजा सामग्री की दुकान है. हर रोज की तरह गुरुवार को दुकानदार दीपक अपनी बंद करके सीढ़ी मार्ग से नीचे उतर रहे थे. तभी अचानक भालू ने उन पर अटैक कर दिया. इस हमले में दुकानदार गंभीर रूप से घायल हो गए.
स्थानीय लोगों की मदद से उपचार के लिए घायल को सिविल अस्पताल रेंहटी में भर्ती कराया गया. लेकिन हालत गंभीर होने पर वहां से उसे भोपाल रेफर कर दिया गया. मामले में वन विभाग की टीम भी जांच पड़ताल में जुट गई है.
मामले को लेकर वन विभाग के डीएफओ एमएस डाबर ने बताया कि भालू के हमले की सूचना पर टीम पहुंच गई थी. घायल युवक का उपचार का खर्चा वन विभाग उठाएगा. नियम अनुसार मदद भी की जाएगी.
पहले भी दो भालू कर चुके श्रद्धालुओं पर अटैक
बीते 27 अगस्त को भी सलकनपुर मंदिर में उस समय चीख पुकार मच गई थी, जब पहाड़ी पर जंगल से आए दो भालुओं ने श्रद्धालुओं पर हमला कर दिया था. बताया गया है कि रायसेन जिले के मंडीदीप से गजेंद्र कुशवाह, आनंद और उनका एक अन्य साथी देवीधाम सलकनपुर में दर्शन करने के लिए आए थे, वह मंदिर तक सीढ़ियां चढ़कर पहुंचे रहे थे, तभी पहाड़ी पर जंगल से आए दो भालुओं ने अचानक हमला कर दिया. इसमें गजेंद्र कुशवाह और आनंद घायल हो गए, जिन्हे उपचार के लिए सिविल अस्पताल में भर्ती किया गया.
1 हजार 451 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है मंदिर
प्रसिद्ध मां विजयासन धाम सलकनपुर मंदिर तक पहुंचने के लिए 1451 सीढ़ियां हैं. पहाड़ी के निचले स्थान से मंदिर की दूरी 3500 फीट और उंचाई 800 फीट है. मंदिर पहाड़ियों से घिरा हुआ है.. मंदिर तक पहुचने के लिए सड़क मार्ग से वाहन के जरिए जाया जा सकता है. इसके अतिरिक्त रोप-वे से भी मंदिर तक जा सकते हैं. विशेष बात यह है कि कई श्रद्धालुओं माता का नाम लेते हुए पैदल ही सीढियां चढ़ जाते हैं. ...यहां मिलता है मनचाहे जीवनसाथी का वरदान
राक्षस रक्त बीज के वध के बाद माता यहीं पर विराजी थीं
मान्यता है कि सलकनपुर का मां विजयासन धाम प्रसिद्ध शक्ति पीठों में शामिल है. मंदिर का निर्माण वर्ष 1100 के करीब गोंड राजाओं ने कराया था. प्रसिद्ध संत भद्रानंद स्वामी ने मां विजयासन की कठोर तपस्या की थी. बताते हैं कि राक्षस रक्तबीज के वध के बाद माता जिस स्थान पर बैठी थीं, उसी स्थान को मां विजयासन धाम के रूप में जाना जाता है. इसी पहाड़ी पर कई जगहों पर रक्तबीज से युद्ध के अवशेष नजर आते हैं.
मंदिर के आसपास के क्षेत्र में प्राचीन गुफाएं
मंदिर के आसपास के क्षेत्र विभिन्न प्राचीन स्थान और गुफाएं भी हैं. यहां पास में ही किला गिन्नोर, आंवलीघाट, देलावाड़ी, सारू मारू की गुफाएं और भीम बेटका आदि प्रमुख हैं. मंदिर में दर्शन करने के बाद श्रद्धालु प्राचीन स्थानों पर भी घूमने के लिए जाते हैं.