हर साल सर्दियों में पराली जलाने से दिल्ली का दम घुटता है, जिसके बाद सरकारों की तरफ से बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन हालात नहीं सुधरते. पराली का धुआं दिल्ली ही नहीं, इसके आसपास के कई इलाकों को भी प्रभावित करता है. भोपाल के युवा साइंटिस्ट्स ने दिल्ली की इस दमघोंटू समस्या का समाधान निकाल लिया है. जिसे पेरिस में होने वाली रिसर्च प्रतियोगिता में भी चुना गया है. भोपाल स्थित IISER (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च) के 12 युवा रिसर्च साइंटिस्ट ने मिलकर ऐसा बायोलॉजिकल फॉर्मूला बनाया है, जिसे पराली पर डालकर डीकंपोज किया जा सकता है.
पराली से बनाई जा सकेगी बायोगैस
IISER में बायोलॉजिकल साइंस के डिपार्टमेंट हेड डॉक्टर सौरभ दत्ता ने 'आजतक' से बात करते हुए बताया कि पराली को डिकम्पोज होने के बाद इससे बायोगैस बनाई जा सकती है. हालांकि इसपर फाइनल रिसर्च होना अभी बाकी है. उन्होंने बताया कि छात्रों ने जो फार्मूला तैयार किया है वह सिर्फ पराली पर ही काम करेगा और किसी अन्य पदार्थ या वस्तुओं पर नहीं इसलिए यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल रहेगा'. रिसर्च करने वाले छात्रों ने इससे बायो प्लास्टिक भी बनाया है, जो एक समय के बाद खुद ही खत्म हो जाएगा और पर्यावरण में लंबे समय तक मौजूद नहीं रहेगा.
डॉक्टर सौरभ दत्ता के मुताबिक रिसर्च का उद्देश्य इस धारणा को बदलना है कि पराली सिर्फ एक वेस्ट प्रोडक्ट है. हमने इस रिसर्च से लोगों को यह बताने की कोशिश की है कि पराली ऊर्जा का स्त्रोत भी हो सकती है. दिवाली आने ही वाली है, जिसके बाद सर्दियों के दिन शुरू हो जाएंगे. दिल्ली के लिए सर्दियां कोहरे और प्रदूषण का डबल अटैक लाती हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार से इस रिसर्च को बाजार में इस्तेमाल के लिए देने की मंजूरी मिल जाएगी तो देश की राजधानी दिल्ली के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं होगा.'
पेरिस में वर्ल्ड लेवल चैंपियनशिप में जाएगी टीम
डॉक्टर सौरभ दत्ता ने बताया कि IISER भोपाल की इस रिसर्च को पेरिस भेजा गया था, जहां इसे 2500 डॉलर का इनाम भी मिला और इसी महीने की 26 तारीख को पेरिस में होने वाली वर्ल्ड लेवल की चैंपियनशिप के लिए IISER की टीम को बुलाया भी गया है.