मध्य प्रदेश के शहरी निकाय चुनाव की तस्वीर साफ हो चुकी है और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के मजबूत किले भी धराशायी हो गए हैं. ग्वालियर में कांग्रेस का कोई बड़ा नेता न होने के बाद भी पार्टी अपना मेयर बनाने में सफल रही. ग्वालियर की जीत का श्रेय विधायक सतीश सिकरवार को जाता है, जिनकी पत्नी ने मेयर का चुनाव जीता है.
नगरीय निकाय चुनाव के नतीजे देखकर भले ही ऐसा लगे कि बीजेपी को बढ़त मिली है, लेकिन पिछले चुनाव की तुलना में पार्टी को नुकसान हुआ है. बीजेपी के कई दिग्गज अपना गढ़ भी नहीं बचा सके. सूबे में करीब एक साल बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में निकाय चुनाव नतीजे बीजेपी के लिए चिंता बढ़ाने वाले हैं तो कांग्रेस के लिए किसी सियासी संजीवनी से कम नहीं.
निकाय चुनाव को मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का लिटमस टेस्ट माना जा रहा है. ऐसे में निकाय चुनाव के नतीजों से कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए सियासी संदेश छिपे हैं.
ग्वालियर शहर में 57 साल बाद नगर निगम के चुनाव में भाजपा के गढ़ में कांग्रेस ने नया इतिहास बनाया है. इससे पहले 1965-66 में कांग्रेस के विष्णु माधव भागवत महापौर रहे थे. उसके बाद लगातार महापौर पद पर भाजपा का कब्जा रहा. कुल 66 वार्डों में से भाजपा 34 पार्षद लेकर सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन कांग्रेस भी 26 पार्षद लेकर अच्छी स्थिति में है. छह अन्य हैं, जिसमें 18 साल बाद BSP भी एक पार्षद जीतकर आई है.
इस चुनाव की बात करें तो डाक मत पत्रों से ही शोभा सिकरवार ने बढ़त बनाना शुरू कर दिया था. यहां दिग्गजों के वार्ड में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है. भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर, प्रद्युम्न सिंह तोमर, जयभान सिंह पवैया, अनूप मिश्रा के वार्ड से भाजपा हार गई. वहीं कांग्रेस के प्रवीण पाठक के वार्ड से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा.
देखा जाए तो ग्वालियर की जनता ने 2018 में ही शहर की तीनों विधानसभा की सीटें कांग्रेस की झोली में डाल दी थीं. उसके बाद उपचुनाव में भी जनता ने 1-1 सीट दी थी. अब महापौर की सीट से भी भाजपा को हाथ धोना पड़ा.
इस चुनाव में कई वार्डों में भाजपा पार्षद तो जीते, लेकिन महापौर प्रत्याशी हार गए. शिवराज के रोड शो, फार्म भराने व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया की कई सभाएं भी हुईं. इसके बाद चुनाव के अंतिम दिन प्रचार खत्म होने से पहले रोड से भी भाजपा का कोई हित नहीं हो सका.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद भी ग्वालियर नगर निगम में उनका महापौर नहीं बन सका. ऐसे में माना जा रहा है कि इस चुनाव का आने वाले विधानसभा चुनाव में खासा असर पड़ सकता है.
शोभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि
शोभा सिकरवार स्वयं तीन बार पार्षद रहीं, जिसमें दो बार निर्विरोध चुनी गईं. उनके पति सतीश सिकरवार दो बार पार्षद रहे. एक बार भाजपा से विधानसभा का चुनाव हारे. इसके बाद दूसरे चुनाव में कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़कर वर्तमान में ग्वालियर पूर्व विधानसभा से विधायक हैं. शोभा के देवर सतीश के छोटे भाई नीटू सिकरवार भी जौरा मुरैना से विधायक रह चुके हैं. शोभा के ससुर गजराज सिंह सिकरवार भी विधायक रहे हैं. मूलतः उनका परिवार मुरैना का रहने वाला है.