scorecardresearch
 

Holika Dahan की आग से साल भर घरों में सुलगता रहता है चूल्हा, MP के मालवा में अनूठी प्रथा

होलिका दहन के साथ शुरू होने वाली होली देशभर में अलग-अलग परंपराओं के साथ मनाई जाती है, लेकिन मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में इसकी एक अनूठी प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है. यहां होलिका दहन की आग को घर ले जाकर चूल्हा जलाने और इसे साल भर संरक्षित रखने की परंपरा आज भी जीवित है. मान्यता है कि यह नई अग्नि सुख-समृद्धि लाती है और रोग-द्वेष को नष्ट करती है.

Advertisement
X
होलिका दहन की सांकेतिक तस्वीर. (सौजन्य मेटा एआई)
होलिका दहन की सांकेतिक तस्वीर. (सौजन्य मेटा एआई)

मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में होलिका दहन का विशेष महत्व है. लोग जलती होली से धधकते अंगारे और भस्म घर ले जाते हैं और उसी से चूल्हा जलाते हैं. आगर मालवा सहित पूरे मालवा के ग्रामीण इलाकों में यह परंपरा कायम है. जलाए गए चूल्हे की आग को राख में दबाकर अगले दिन के लिए सुरक्षित रखा जाता है और फिर उसी से चूल्हा दोबारा प्रज्वलित किया जाता है. इस तरह साल भर एक ही आग से चूल्हा जलाने की प्रथा यहां देखने को मिलती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और परिवार की आरोग्यता बढ़ती है.

Advertisement

फसलों की सुरक्षा और परंपरा
होलिका दहन को प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण से भी जोड़ा जाता है. आगर मालवा के प्रसिद्ध बाबा बैजनाथ महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी सुरेंद्र शास्त्री बताते हैं, "शास्त्रों के अनुसार, ढुंढा नामक राक्षसी फसलों को नुकसान पहुंचाती थी. लोगों ने तृण-काष्ठ से विशाल अग्नि जलाई, जिससे वह भयभीत होकर भाग गई. तभी से होलिका दहन की शुरुआत हुई. बाद में होलिका ने प्रहलाद को जलाने की कोशिश की, लेकिन वह खुद जल गई और प्रहलाद बच गए." 

इसी मान्यता के चलते मालवा में लोग होलिका दहन के दिन अपने खेतों से गेहूं की बालियां लाते हैं, उन्हें अग्नि में सेकते हैं और खाते हैं. उनका विश्वास है कि इससे फसलें रोगों से बची रहती हैं और अगली फसल अच्छी होती है.

आधुनिकता में भी जिंदा परंपरा
हालांकि, आजकल घरों में चूल्हों की जगह गैस स्टोव ने ले ली है, फिर भी होलिका दहन की भस्म और अंगारों को घर लाने की प्रथा बरकरार है. लोग इसे आरोग्यता और सुख-समृद्धि का प्रतीक मानते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कई परिवार होलिका की आग को साल भर संरक्षित रखते हैं और इससे चूल्हा जलाते हैं. यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य से भी जुड़ी है.

Advertisement

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश
होलिका दहन के जरिए मालवा के लोग बुराइयों और राक्षसी प्रवृत्तियों को खत्म करने का संदेश देते हैं. जलती अग्नि से वातावरण शुद्ध होता है और सुगंधित बनता है. यह प्रथा मालवा की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी लोगों के जीवन में गहरी पैठ बनाए हुए है.

मालवा में होलिका दहन का यह अनोखा तरीका न केवल परंपराओं को जीवित रखता है, बल्कि सामुदायिक एकता और प्रकृति के प्रति सम्मान को भी उजागर करता है. 14 मार्च को होने वाले होलिका दहन के साथ यह परंपरा एक बार फिर देखने को मिलेगी.

Live TV

Advertisement
Advertisement