मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में होलिका दहन का विशेष महत्व है. लोग जलती होली से धधकते अंगारे और भस्म घर ले जाते हैं और उसी से चूल्हा जलाते हैं. आगर मालवा सहित पूरे मालवा के ग्रामीण इलाकों में यह परंपरा कायम है. जलाए गए चूल्हे की आग को राख में दबाकर अगले दिन के लिए सुरक्षित रखा जाता है और फिर उसी से चूल्हा दोबारा प्रज्वलित किया जाता है. इस तरह साल भर एक ही आग से चूल्हा जलाने की प्रथा यहां देखने को मिलती है. स्थानीय लोगों का मानना है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है और परिवार की आरोग्यता बढ़ती है.
फसलों की सुरक्षा और परंपरा
होलिका दहन को प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण से भी जोड़ा जाता है. आगर मालवा के प्रसिद्ध बाबा बैजनाथ महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी सुरेंद्र शास्त्री बताते हैं, "शास्त्रों के अनुसार, ढुंढा नामक राक्षसी फसलों को नुकसान पहुंचाती थी. लोगों ने तृण-काष्ठ से विशाल अग्नि जलाई, जिससे वह भयभीत होकर भाग गई. तभी से होलिका दहन की शुरुआत हुई. बाद में होलिका ने प्रहलाद को जलाने की कोशिश की, लेकिन वह खुद जल गई और प्रहलाद बच गए."
इसी मान्यता के चलते मालवा में लोग होलिका दहन के दिन अपने खेतों से गेहूं की बालियां लाते हैं, उन्हें अग्नि में सेकते हैं और खाते हैं. उनका विश्वास है कि इससे फसलें रोगों से बची रहती हैं और अगली फसल अच्छी होती है.
आधुनिकता में भी जिंदा परंपरा
हालांकि, आजकल घरों में चूल्हों की जगह गैस स्टोव ने ले ली है, फिर भी होलिका दहन की भस्म और अंगारों को घर लाने की प्रथा बरकरार है. लोग इसे आरोग्यता और सुख-समृद्धि का प्रतीक मानते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी कई परिवार होलिका की आग को साल भर संरक्षित रखते हैं और इससे चूल्हा जलाते हैं. यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि पर्यावरण और स्वास्थ्य से भी जुड़ी है.
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश
होलिका दहन के जरिए मालवा के लोग बुराइयों और राक्षसी प्रवृत्तियों को खत्म करने का संदेश देते हैं. जलती अग्नि से वातावरण शुद्ध होता है और सुगंधित बनता है. यह प्रथा मालवा की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी लोगों के जीवन में गहरी पैठ बनाए हुए है.
मालवा में होलिका दहन का यह अनोखा तरीका न केवल परंपराओं को जीवित रखता है, बल्कि सामुदायिक एकता और प्रकृति के प्रति सम्मान को भी उजागर करता है. 14 मार्च को होने वाले होलिका दहन के साथ यह परंपरा एक बार फिर देखने को मिलेगी.