मां बनने की चाहत एक ऐसा सपना है जो हर महिला के दिल में पलता है, लेकिन कई बार जिंदगी की उलझनों और शारीरिक परेशानियों के चलते यह सपना अधूरा रह जाता है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 37 साल की काव्या (बदला हुआ नाम) की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. 12 साल तक मातृत्व की राह में भटकने के बाद जब आधुनिक तकनीक आईवीएफ भी उनके सपनों को सच करने में नाकाम रही, तब आयुर्वेद ने उनके जीवन में एक नया सवेरा ला दिया. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के खुशीलाल आयुर्वेदिक अस्पताल में दो महीने के इलाज के बाद आज काव्या तीन महीने की गर्भवती हैं और उनके चेहरे पर मां बनने की खुशी साफ झलक रही है.
काव्या की यह खुशी अकेली नहीं है. पिछले तीन साल में आयुर्वेद ने 24 ऐसी महिलाओं को मातृत्व का सुख दिया है, जो अलग-अलग वजहों से मां बनने से वंचित थीं. इनमें से 16 मांएं अपने स्वस्थ शिशुओं को गोद में लेकर खिला रही हैं.
काव्या के पति की आंखों में खुशी के आंसू हैं. वे कहते हैं, "हमने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी. एक सहकर्मी की सलाह पर आयुर्वेद की शरण में आए, लेकिन हमें भरोसा नहीं था. आज यह हमारे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है."
आयुर्वेद की जादुई छड़ी
खुशीलाल आयुर्वेदिक अस्पताल की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. मौसमी कुल्हारे इस चमत्कार की सूत्रधार हैं. वे बताती हैं कि मां न बन पाने की वजहें हर महिला में अलग होती हैं. मसलन, कभी ट्यूब ब्लॉकेज, कभी थायराइड, तो कभी सर्वाइकल या यूटराइन समस्याएं. लेकिन आयुर्वेद की प्राचीन किताबों में हर दर्द का इलाज छिपा है.
डॉ. कुल्हारे कहती हैं, "हम पहले पति-पत्नी दोनों की जांच करते हैं. वजह जानने के बाद उनकी काउंसिलिंग करते हैं. आयुर्वेद कहता है कि मातृत्व सुख के लिए शरीर के साथ-साथ मन का स्वस्थ होना भी जरूरी है. कई बार तनाव ही सबसे बड़ा रोड़ा बन जाता है."
लाइफस्टाइल में बदलाव लाया रंग
डॉ. कुल्हारे की सलाह पर काव्या और उनके पति ने अपनी दिनचर्या में बदलाव किया. सुबह जल्दी उठना, योग-प्राणायाम करना और दिन में सोने की आदत छोड़ना—इन छोटे-छोटे बदलावों ने उनके शरीर और मन को नई ऊर्जा दी. इसके बाद पंचकर्म थैरेपी और आयुर्वेदिक दवाओं ने अपना असर दिखाया.
डॉक्टर बताती हैं, "लाइफस्टाइल बदलने से ही मन बदलने लगता है. स्वस्थ आदतें अपनाने से दंपती शारीरिक और मानसिक रूप से मातृत्व के लिए तैयार हो जाते हैं."
जंक फूड को कहा अलविदा
आयुर्वेदिक इलाज का एक अहम हिस्सा था- खानपान में बदलाव. डॉ. ने दंपतियों को जंक फूड और मैदे से बनी चीजों से दूर रहने की सख्त हिदायत दी. पिज्जा, समोसे और मिर्च-मसाले वाले भोजन को अलविदा कहकर काव्या ने मोटे अनाज, सलाद, स्प्राउट्स और मौसमी फलों को अपनी थाली में जगह दी. डॉ. कुल्हारे कहती हैं, "ये बदलाव शरीर को डिटॉक्स करते हैं और प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं."
मुफ्त इलाज, MPCST का सहयोग
खुशीलाल आयुर्वेदिक अस्पताल में इंफर्टिलिटी को खत्म करने के लिए एक खास प्रोग्राम भी चल रहा है, जिसे मध्य प्रदेश काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (MPCST) ने फंड किया है. डॉ. निशा भालेराव और डॉ. मौसमी कुल्हारे के नेतृत्व में चल रहे इस प्रोग्राम के तहत हर महिला का दो महीने तक इलाज होता है और इस दौरान सारी दवाएं मुफ्त दी जाती हैं. इस पहल ने उन दंपतियों के लिए उम्मीद की किरण जलाई है, जो आर्थिक तंगी के चलते महंगे इलाज नहीं करा सकते.
आयुर्वेद ने जगाई नई उम्मीद
खुशीलाल आयुर्वेदिक अस्पताल की यह सफलता आयुर्वेद की ताकत का जीता-जागता सबूत है. जब आधुनिक चिकित्सा पद्धतियां जवाब दे गईं, तब आयुर्वेद ने काव्या जैसी 24 महिलाओं को मां बनने का सुख दिया. यह कहानी न केवल मातृत्व की अधूरी चाहत को पूरा करने की है, बल्कि प्राचीन चिकित्सा पद्धति में छिपी ताकत को फिर से दुनिया के सामने लाने की भी है. आयुर्वेद ने साबित कर दिया कि जब सारी राहें बंद हो जाएं, तब भी उम्मीद की एक किरण हमेशा बाकी रहती है.
इनका कहना
पं. खुशीलाल शर्मा शासकीय (स्वायत्त) आयुर्वेद महाविद्यालय एवं संस्थान के प्राचार्य डॉक्टर उमेश शुक्ला ने बताया, ''आयुर्वेद कॉलेज में गायनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर निशा भालेराव और डॉ. मौसमी कुल्हारे के नेतृत्व में इनफर्टिलिटी को लेकर एक प्रोजेक्ट संचालित है. इसमें 60 महिलाओं पर अध्ययन किया जाना है. MPCST की स्पॉन्सरशिप में इस पर काम किया जा रहा है. अब तक शोध में सकारात्मक परिणाम मिले हैं.''