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गले में बंधे रेडियो कॉलर बन रहे चीतों की मौत की वजह? एक्सपर्ट के दावे के बाद आया सरकार का बयान

दक्षिण अफ्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वान डेर मेरवे ने मंगोलिया से न्यूज एजेंसी को बताया था, "अत्यधिक गीली स्थितियों के कारण रेडियो कॉलर संक्रमण पैदा कर रहे हैं. दोनों चीतों की मौत सेप्टिसीमिया से हुई है. चीतों की गर्दन के आसपास अन्य जानवरों द्वारा पहुंचाए गए घाव नहीं थे. वे डर्मेटाइटिस और मायियासिस के बाद सेप्टीसीमिया के मामले थे."

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कूनो में अब तक 5 चीतों और 3 शावकों की मौत हो चुकी है
कूनो में अब तक 5 चीतों और 3 शावकों की मौत हो चुकी है

मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अब तक 5 चीतों और 3 शावकों की मौत हो चुकी है. इसी हफ्ते मंगलवार और शुक्रवार को ही 2 नर चीतों (तेजस और सूरज) की मौत हो गई. इसके बाद चीतों के गले में बंधे रेडियो कॉलर को लेकर सवाल उठने लगे. कारण, दक्षिण अफ्रीका के एक चीता एक्सपर्ट ने न्यूज एजेंसी से बात करते हुए दावा किया था कि रेडियो कॉलर के कारण चीते सेप्टीसीमिया के शिकार हो रहे हैं. अब इसको सरकार का बयान आया है, जिसमें सरकार ने रेडियो कॉलर से चीतों की मौत के दावे किसी वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं हैं, बल्कि अटकलों और अफवाहों पर आधारित हैं.

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दरअसल, सेप्टीसीमिया एक गंभीर ब्लड इंफेक्शन है और इससे खून में जहर बनने लगता है. बताया जाता है कि जानवरों के शरीर के बाहरी हिस्से में लंबे समय तक नमी बने रहने के कारण संक्रमण होने लगता है और ये सेप्टीसीमिया का रूप ले लेता है. दक्षिण अफ्रीकी एक्सपर्ट ने दावा किया था कि चीतों की गर्दन में जो रेडियो कॉलर पहनाया गया है, उसके कारण तेजस और सूरज चीतों को सेप्टीसीमिया हो गया और उनकी मौत हो गई.

दक्षिण अफ्रीका के चीता एक्सपर्ट ने क्या कहा था?

दक्षिण अफ्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वान डेर मेरवे ने मंगोलिया से न्यूज एजेंसी को बताया था, "अत्यधिक गीली स्थितियों के कारण रेडियो कॉलर संक्रमण पैदा कर रहे हैं. दोनों चीतों की मौत सेप्टिसीमिया से हुई है. चीतों की गर्दन के आसपास अन्य जानवरों द्वारा पहुंचाए गए घाव नहीं थे. वे डर्मेटाइटिस और मायियासिस के बाद सेप्टीसीमिया के मामले थे."

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सरकार की तरफ से आया ये बयान

केंद्र सरकार की तरफ से बयान जारी हुआ है. इसमें कहा गया है कि चीतों को भारत वापस लाने के लिए प्रोजेक्ट चीता की शुरुआत की गई. इसके तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में कुल 20 रेडियो कॉलर वाले चीतों को भारत लाया गया.  अनिवार्य क्वारंटीन पीरियड के बाद, सभी चीतों को बड़े अनुकूलन बाड़ों में शिफ्ट कर दिया गया. 

वर्तमान में, 11 चीते मुक्त अवस्था में हैं और भारतीय धरती पर पैदा हुए एक शावक सहित 5 चीते क्वारंटीन बाड़े में हैं. प्रत्येक चीते की चौबीसों घंटे निगरानी की जा रही है. चीता को 7 दशकों के बाद भारत वापस लाया गया है और इतने बड़े प्रोजेक्ट में उतार-चढ़ाव आना तय है. विशेष रूप से दक्षिण अफ्रीका के वैश्विक अनुभव से पता चलता है कि अफ्रीकी देशों में चीतों के पुन:प्रवेश के प्रारंभिक चरण में प्रविष्ट चीतों की मृत्यु दर 50% से अधिक है.

चीते की मृत्यु आपसी लड़ाई, बीमारियों, रिहाई से पहले और रिहाई के बाद की दुर्घटनाओं के कारण, जानवरों का शिकार करते समय चोट लगने से, अवैध शिकार, जहर और शिकारियों द्वारा हमले आदि के कारण हो सकती है. शिफ्ट हुए 20 वयस्क चीतों में से कूनो नेशनल पार्क में पांच की मौत हो चुकी है. प्रारंभिक विश्लेषण के अनुसार सभी मौतें प्राकृतिक कारणों से हुई हैं. मीडिया में ऐसी रिपोर्टें हैं, जिनमें चीतों की मौत के लिए रेडियो कॉलर आदि को जिम्मेदार ठहराया गया है. ऐसी रिपोर्टें किसी वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं हैं बल्कि अटकलों और अफवाहों पर आधारित हैं.

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चीतों की मौत के कारणों की जांच के लिए दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के अंतरराष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों/पशु चिकित्सकों से नियमित आधार पर एडवाइज ली जा रही है. 

'अभी निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी'

सरकार ने कहा है कि प्रोजेक्ट चीता को अभी एक साल पूरा होना बाकी है. इसलिए सफलता और विफलता के संदर्भ में परिणाम के बारे में निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी. क्योंकि चीतों का भारत लाना एक दीर्घकालिक परियोजना है. पिछले 10 महीनों में, इस चीता वापसी प्रोजेक्ट में शामिल सभी हितधारकों ने चीता प्रबंधन, निगरानी और संरक्षण में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्राप्त की है और हम आशावादी हैं कि ये प्रोजेक्ट लंबे समय में सफल होगा. इस समय अटकलें लगाने का कोई कारण नहीं है.

कूनो में 16 रह गई है चीतों की संख्या

उल्लेखनीय है कि पिछले साल 17 सितंबर को पीएम मोदी की मौजूदगी में आठ नामीबियाई चीतों - पांच मादा और तीन नर को कूनो नेशनल पार्क में संगरोध बाड़ों में छोड़ा गया था. इस साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते कूनो नेशनल पार्क पहुंचे थे. चार शावकों के जन्म के बाद चीतों की कुल संख्या 24 हो गई थी, लेकिन आठ मौतों के बाद यह संख्या घटकर 16 रह गई है. इससे पहले भारत में चीतों को 1952 में विलुप्त घोषित कर दिया गया था.

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कूनो से कब कब आई मौत की खबरें 

-नामीबिया से लाई गई मादा चीता ज्वाला (सियाया) ने 24 मार्च को 4 शावकों को जन्म दिया था. 
-23 मई को एक शावक की मौत हुई. 
-25 मई को दो और शावकों ने भी दम तोड़ दिया. 
-9 मई को मादा चीता दक्षा घायल अवस्था में मिली थी. इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी. 
-23 अप्रैल को उदय नाम के चीते की मौत हो गई थी. 
-26 मार्च को भी मादा चीता साशा को किडनी में संक्रमण हुआ, इलाज के बाद उसकी मौत हो गई थी.
-10 जुलाई को तेजस चीते की मौत हुई.
-21 जुलाई को सूरज चीते की मौत हो गई.
(तेजस और सूरज की मौत के समय गले और पीठ पर घाव थे, जिनमें कीड़े पड़ गए थे)

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