मध्य प्रदेश में कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव हैं. सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंकना शुरू कर दिया है. पार्टी का जिन इलाकों में विशेष फोकस है, उनमें पहला नाम ग्वालियर-चंबल का है. इस इलाके को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. यहां से पहले माधवराव सिंधिया और फिर उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस संगठन को धार देते रहे हैं. दशकों से पार्टी के लिए यह मजबूत दुर्ग के रूप में गिना जाता है. लेकिन, 2022 में सत्ता के उलटफेर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद कांग्रेस ने अपने इस किले को बचाए रखने के लिए खास फोकस कर दिया है.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी शुक्रवार को ग्वालियर में एक रैली को संबोधित किया. प्रियंका 40 दिन में दूसरी बार मध्य प्रदेश पहुंचीं. प्रियंका सबसे पहले रानी लक्ष्मीबाई के स्मारक पर पहुंचीं, वहां उन्होंने महान स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि दी. उसके बाद प्रियंका ने मेला मैदान में जनसभा को संबोधित किया. यह रैली कांग्रेस के लिए बेहद अहम मानी जा रही है.
कांग्रेस का ग्वालियर-चंबल पर खास फोकस
दरअसल, कांग्रेस ग्वालियर से अपनी जड़ें नहीं छोड़ना चाहती है. सिंधिया राजवंश ने एक समय ग्वालियर की तत्कालीन रियासत पर शासन किया है. यहां पार्टी पर सिंधिया परिवार की छाप भी रही है. हालांकि, अब सिंधिया कांग्रेस के साथ नहीं हैं. ऐसे में संगठन के सामने उसी मजबूती से खड़े रहने की चुनौती है. यही वजह है कि पार्टी 2020 के बाद इस इलाके में खास फोकस रखना चाहती है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने जब नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ा तो ये जिम्मेदारी संगठन ने ग्वालियर- चंबल इलाके के दिग्गज और अनुभवी नेता गोविंद सिंह को सौंपी. गोविंद भिंड जिले की लहार सीट से 7 बार से विधायक हैं. इस इलाके को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है.
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कांग्रेस के ग्वालियर-चंबल में फोकस रखने की एक और वजह है. पार्टी को 2018 के विधानसभा चुनाव हों या 2020 का उपचुनाव या फिर नगर निकाय और पंचायत चुनाव. इन सभी फॉर्मेट के चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त जीत मिली है. 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने ग्वालियर -चंबल के 8 जिलों की कुल 34 सीटों में 26 सीटें जीती थीं. जबकि बीजेपी को 7 और बसपा को एक सीट मिली थी. सिर्फ चंबल संभाग के तीन जिलों की 13 सीटों में 10 कांग्रेस के खाते में आई थीं.
2018 के नतीजे दोहराने की तैयारी में कांग्रेस
इतना ही नहीं, 2020 के उपचुनाव में भी कांग्रेस ने अपना दोबारा ताकत दिखाई. ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की 16 सीटों पर उपचुनाव हुए, जिसमें सात सीट ही कांग्रेस के खाते में आई थीं. 2018 के नतीजों को दोहराने और सिंधिया को रोकने के लिए गोविंद सिंह का कद बढ़ाया गया. गोविंद को पूर्व सीएम दिग्विजय के खेमे का माना जाता है.
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ग्वालियर में 57 साल बाद कांग्रेस का मेयर
कांग्रेस ने 2022 में नगर निकाय चुनाव में ग्वालियर- चंबल में जबरदस्त परफॉर्म किया था. सत्ताधारी बीजेपी के मजबूत किले भी धराशायी कर दिए थे. ग्वालियर में कांग्रेस का कोई बड़ा नेता ना होने के बाद भी पार्टी अपना मेयर बनाने में सफल रही थी. ग्वालियर की जीत का श्रेय विधायक सतीश सिकरवार को जाता है, जिनकी पत्नी शोभा सिकरवार ने मेयर का चुनाव जीता है. ग्वालियर में 57 साल बाद नगर निगम के चुनाव में बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस ने नया इतिहास बनाया था.
निकाय चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को दिया था झटका
इससे पहले 1965-66 में कांग्रेस के विष्णु माधव भागवत महापौर रहे थे. उसके बाद लगातार महापौर पद पर बीजेपी का कब्जा रहा. कुल 66 वार्डों में से कांग्रेस के 26 पार्षद चुनाव जीते थे. बीजेपी नगर निकाय चुनाव में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रद्युम्न सिंह तोमर, जयभान सिंह पवैया, अनूप मिश्रा के वार्ड में हार गई थी. 2018 में ग्वालियर शहर की तीनों विधानसभा की सीटें कांग्रेस के खाते में आई थीं. उसके बाद उपचुनाव में भी एक सीट कांग्रेस और एक सीट बीजेपी को मिली थी.
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ग्वालियर में दबदबा बनाने वाले सतीश सिकरवार कौन?
ग्वालियर मेयर के चुनाव में बीजेपी को 57 साल बाद हार मिली थी. कांग्रेस की कैंडिडेट शोभा सिकरवार इससे पहले तीन बार पार्षद रहीं हैं. उनके पति सतीश सिकरवार दो बार पार्षद रहे. सतीश बीजेपी में भी रहे हैं और विधानसभा चुनाव हारे हैं. उसके बाद पार्टी से नाराज होकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. दूसरे चुनाव में कांग्रेस पार्टी से मैदान में उतरे और ग्वालियर पूर्व विधानसभा से विधायक बन गए. शोभा के देवर और सतीश के छोटे भाई नीटू सिकरवार भी जौरा मुरैना से विधायक रह चुके हैं. शोभा के ससुर गजराज सिंह सिकरवार भी विधायक रहे हैं. मूलतः उनका परिवार मुरैना का रहने वाला है.
ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस के कितने अभेद किले?
ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस के कुछ ऐसे अभेद किले भी हैं, जहां बीजेपी को चुनाव जीतने के लिए पसीना बहाना पड़ रहा है. इनमें दिग्विजय सिंह का गढ़ राघौगढ़ इलाका है. ये क्षेत्र गुना जिले में आता है. दूसरा भिंड जिले का लहार क्षेत्र है. यहां गोविंद सिंह का दबदबा है. तीसरा इलाका शिवपुरी जिले का पिछोर माना जाता रहा है. यहां से केपी सिंह 30 साल से विधायक हैं. ग्वालियर जिले के भितरवार इलाके में भी कांग्रेस की पकड़ है. कांग्रेस विधायक लाखन सिंह यादव 2008 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. ग्वालियर जिले की डबरा सीट भी कांग्रेस के कब्जे में है. 2018 से 2018 तक कांग्रेस से इमरती देवी चुनाव जीतीं. 2020 के उपचुनाव में सुरेश राजे ने जीत हासिल की.
प्रियंका की जबलपुर के बाद ग्वालियर में सभा
इससे पहले 12 जून को प्रियंका गांधी ने जबलपुर में एक रैली को संबोधित किया था. तब उन्होंने राज्य में कांग्रेस के चुनावी अभियान की शुरुआत की थी. उन्होंने जबलपुर में ऐलान किया था कि अगर कांग्रेस में सत्ता में आई तो वह महिलाओं को प्रति माह 1,500 रुपये की मदद, 100 यूनिट तक मुफ्त बिजली और पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली समेत समेत पांच योजनाएं लागू की जाएंगी.
कांग्रेस ने चुनाव जीतने पर गारंटी का दिया भरोसा
प्रियंका ने शिवराज सिंह चौहान सरकार पर भ्रष्टाचार में डूबे रहने और नौकरियां देने में विफल रहने का आरोप लगाया था. इसके साथ ही कांग्रेस से बीजेपी नेता बने केंद्रीय मंत्री बने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर भी तंज कसा था. बता दें कि मध्य प्रदेश में सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों ने मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़ दी थी और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए थे, जिसके कारण 15 महीने में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई थी. एमपी में शिवराज सिंह चौहान की सत्ता में वापसी हुई थी.
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