भगवान महाकाल को उज्जैन नगरी के राजा के रूप में पूजा जाता है, इसलिए यहां के राजा अपने प्रजा रूपी भक्तों को दर्शन देने के लिए सोमवार को मंदिर से बाहर आए. इस प्रक्रिया को महाकाल की सवारी का नाम दिया गया है. सवारी के दौरान अपने आराध्य के दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ी. इस दौरान हर कोई भगवान की एक झलक पाने के लिए आतुर था.
मान्यता है कि उज्जैन नगरी और आसपास के क्षेत्रों से आने वाले भक्तों के लिए भगवान महाकाल की एक झलक पाना भी किसी अमृत प्रसाद से कम नहीं है. सवारी आने से घंटों पहले ही लोग भगवान के दर्शन के लिए सड़क पर टकटकी लगाए खड़े थे. भक्त अपने आराध्य के दर्शन मात्र से ही खुद को धन्य मानते हैं. भगवान महाकाल की शाही सवारी के लिए प्रशासनिक स्तर पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. जिला कलेक्टर और एसपी खुद सुरक्षा कमान पर नजर रखे हुए थे.
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अधिकारियों ने बताया कि पूरी सवारी मार्ग पर बैरिकेडिंग की गई है. श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए 1500 से अधिक पुलिस बल तैनात किया गया है, जिसमें पुलिस कांस्टेबल के साथ ही प्रशासन के अधिकारी भी शामिल हैं. शोभायात्रा के दौरान हेलीकॉप्टर से आसमान से पुष्प वर्षा भी की गई. महाकाल मंदिर के सभा मंडप में पूजन के बाद जैसे ही पालकी निकली, पुलिस बल ने पूरे राजकीय सम्मान के साथ भगवान महाकाल को नमन किया.
यहां से देवाधि देव महादेव चांदी की पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले. शंख, डमरू की थाप, डोला-मंजीरे की ध्वनि और जय महाकाल के उद्घोष से पूरा वातावरण शिवमय हो गया. इस भव्य आयोजन में 70 भजन मंडलियां, आदिवासी कलाकारों की टोली, आधा दर्जन बैंड ग्रुप, पुलिस बैंड, सशस्त्र पुलिस बल के साथ ही ढोल बजाने वालों की टोली शामिल रही.
प्रचलित कथाओं के अनुसार माना जाता है कि भगवान शिव को श्रावण मास प्रिय है और सोमवार भी. इसलिए सोमवार को विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा करने की परंपरा है. इस वर्ष श्रावण मास सोमवार से प्रारंभ होकर सोमवार को ही समाप्त हुआ. इसके बाद भादों की अमावस्या तक दो सोमवार का संयोग बना. डेढ़ माह की अवधि में सात सोमवार पड़े, जिनमें से पांच श्रावण के और दो भादों के थे. मराठा दक्षिणी ब्राह्मणों के मतानुसार अमावस्यांत मास की मान्यता के कारण भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से अंतिम तिथि अमावस्या तक श्रावण मास माना जाता है. इसीलिए भाद्रपद में बाबा महाकाल की दो सवारी निकालने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है.
मान्यता है कि सवारी की परंपरा की शुरुआत सिंधिया राजवंश ने की थी और इसी वजह से भादों पक्ष में भी सवारी की परंपरा शुरू की गई. तब से राजसी परंपरा के अनुसार अंतिम सवारी पर राजपरिवार का कोई न कोई सदस्य उज्जैन आकर भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना करता है. यह परंपरा भी वर्षों से चली आ रही है. इसी परंपरा का पालन करते हुए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दानी गेट क्षेत्र से भगवान महाकाल का पूजन किया.