scorecardresearch
 

मध्य प्रदेश: कूनो में क्यों नहीं रुक रही चीतों की मौत? जानिए विशेषज्ञों ने किसको बताया जिम्मेदार

मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों की लगातार हो रही मौत के बाद प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे हैं. इस बीच कूनो नेशनल पार्क में मीडिया प्रोटोकॉल लागू हो गया है. पार्क प्रबंधन से जुड़े लोग अब मीडिया से बात नहीं कर सकेंगे

Advertisement
X
कूनो नेशनल पार्क में लगातार हो रही मौतों को लेकर प्रशासन पर उठ रहे हैं सवाल
कूनो नेशनल पार्क में लगातार हो रही मौतों को लेकर प्रशासन पर उठ रहे हैं सवाल

मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों की लगातार हो रही मौत और उनके बीमार पड़ने के बाद पार्क प्रबंधन पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं कि वाकई चीतों की देखभाल ठीक से हो रही है? मंगलवार को चीतों के गलों में गहरे घाव मिले हैं जिनमे कीड़े पड़ चुके हैं. मुख्यमंत्री ने भी पूरे मामले में एक बैठक बुलाई थी. वहीं अब कूनो नेशनल पार्क में मीडिया प्रोटोकॉल भी लागू कर दिया गया है.

Advertisement

चीतों के गले में घाव, पड़े कीड़े
मंगलवार को कूनो नेशनल पार्क में मौजूद तीन चीतों की गर्दन में मिले गहरे घाव से हडकंप मच गया. एक हफ्ते पहले ही कॉलर आईडी के इंफेक्शन के चलते हुई दो चीतों की मौत के बाद पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ जसबीर चौहान पर गाज गिरी थी. अब कूनो में 4 महीने में शावकों समेत 8 चीतों की मौत के बाद कूनो प्रबंधन की नींद खुली है और चीतों की जांच की जा रही है. इस दौरान कूनो के खुले जंगल में मौजूद 3 चीतो में इंफेक्शन मिला है. इनमें से चीता पवन (पूर्व नाम ओबान) को पकड़कर जब बेहोश करने के बाद उसकी गर्दन पर लगे कॉलर आईडी को हटाया गया तो गहरा घाव मिला है जिसमें कीड़े भी पड़े हुए थे. आपको बता दें कि कूनो में कुल 20 वयस्क चीतों में से 5 की मौत के बाद अब 15 चीते बचे हैं, जिनमें 10 खुले जंगल में और 5 बाड़ों में बंद है. इन सभी को बंदूक से दवाई के इंजेक्शन लगाए जाने है.

Advertisement

शिवराज ने बुलाई बैठक
मुख्यमंत्री ने मंगलवार को मंत्रालय में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ चीता पुनर्वास प्रोजेक्ट के संबंध में समीक्षा बैठक ली और चीतों की सुरक्षा को लेकर आवश्यक दिशा-निर्देश दिए. बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि चीता पुनर्वास प्रोजेक्ट में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाए गए चीतों में से कुछ चीतों की मृत्यु, चिंता का विषय है. उनके स्वास्थ्य और देखभाल के लिए केन्द्र सरकार द्वारा गठित चीता टास्क फोर्स को राज्य शासन की ओर से हरसंभव सहयोग प्रदान किया जाए. क्षेत्र में पर्याप्त वन्य-प्राणी चिकित्सकों सहित सभी आवश्यक दवाओं और उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए. साथ ही चीतों की स्थिति की नियमित समीक्षा की व्यवस्था हो. आवश्यकता होने पर फॉरेस्ट गार्ड की संख्या और पुनर्वास प्रोजेक्ट के लिए उपलब्ध क्षेत्र में वृद्धि की जाए.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ
वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट अजय दुबे ने चीतों की मौत की वजह चीता एक्सपर्ट्स की टीम और कूनो नेशनल पार्क की टीम के बीच समन्वय की कमी को बताया है. अजय दुबे का कहना है की जैसी मॉनिटरिंग होना चाहिए वैसी मॉनिटरिंग नहीं हो रही है और वन विभाग भी चीतों की मौत की वजह अपने हिसाब से अलग-अलग बता रहा है. अजय दुबे का कहना है कि जब साउथ अफ्रीका के एक्सपर्ट ने कहा था कि चीतों को बारिश के मौसम में कॉलर आईडी का खास ध्यान रखना है बावजूद इसके वह ध्यान नहीं रखा गया और कॉलर आईडी की वजह से  इंफेक्शन से दो चीतों की मौत हो गई, ये लापरवाही है.

Advertisement

इसके अलावा सरकार बोल रही है कि कूनो में चीतों की देखभाल के लिए विशेषज्ञ पशु चिकित्स्क हैं लेकिन क्या वजह है कि बार-बार भोपाल और जबलपुर वेटनरी हॉस्पिटल से विशेषज्ञ कूनो भेजे जाते हैं? इससे बेहद बहुमूल्य समय बर्बाद हो जाता है. रिटायर्ड IFS जगदीश चंद्रा बताते हैं कि प्रोजेक्ट चीता देखा जाये तो सफल होता दिख रहा है क्योकि चीतों को भारत लाते समय अनुमान लगाया गया था कि पहले साल में 50% चीतों की मौत हो सकती है लेकिन एक साल लगभग पूरा हो चूका है और अनुमान से कम चीते मरे हैं इसलिए कहा जा सकता है की प्रोजेक्ट चीता ठीक चल रहा है लेकिन पार्क प्रबंधन को थोड़ा प्रोफेशनल रवैया अपनाना पड़ेगा क्योंकि जंगल में छोड़े गए चीतों की मॉनिटरिंग को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. चीतों के स्वास्थ्य को भी समय-समय पर मॉनिटर करना होगा नहीं तो इस तरह की खबरें आती रहेंगी. 

मीडिया से दूरी का आदेश जारी

वहीं कूनो में चीतों की लगातार मौत के बाद उठ रहे सवालों के बीच कूनो नेशनल पार्क में मीडिया प्रोटोकॉल लागू हो गया है. पार्क प्रबंधन से जुड़े लोग अब मीडिया से बात नहीं कर सकेंगे और केवल PCCF वाइल्डलाइफ, चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन और प्रोजेक्ट चीता से जुड़े अधिकारी ही मीडिया ब्रीफिंग कर सकेंगे. यही नहीं, अब कूनो से जुड़े सिर्फ लिखित बयान ही जारी होंगे.

Advertisement

कब-कब हुई चीतों की मौत

1- पहली मौत 26 मार्च मादा चीता साशा ( नामीबिया से लाई गई मोदी ने रिलीज किया), किडनी इन्फेक्शन से मौत, जबकि 22-23 जनवरी को ही बीमार होने का पता चला था, लेकिन समय पर इलाज नहीं मिल पाया. वन विभाग ने तर्क दिया कि भारत‌ आने से पहले ही 15 अगस्त 2022 को नामीबिया में साशा का ब्लड टेस्ट किया गया था, जिसमें क्रियेटिनिन का स्तर 400 से ज्यादा था.

2- दूसरी मौत 23 अप्रैल नर चीता उदय ( 18 फरवरी को साउथ अफ्रीका से लाया गया था) वन विभाग ने दावा किया कि पहले से बीमार था. मौत कार्डियक आर्टरी फेल होने की वजह से हुई थी.

3- तीसरी मौत 9 मई मादा चीता दक्षा ( 18 फरवरी को साउथ अफ्रीका से लाया गया था) दक्षा को बाड़े में मेटिंग के लिए भेजा गया था. मेटिंग के दौरान ही दक्षा घायल हो गई और बाद में उसकी मौत हो गई.

4- चौथी मौत 23 मई नामीबिया से लाई गई ज्वाला के एक शावक की मौत, ज्यादा गर्मी, डिहाइड्रेशन और कमजोरी की वजह से हो गई.

5- पांचवीं और छटवीं मौत 25 मई ज्वाला के दो और शावकों की मौत, अधिक तापमान और लू के चलते तबीयत खराब होने की बात सामने आई है. फिर दोनों की मौत हो गई.

Advertisement

6- सातवीं मौत 11 जुलाई को साउथ अफ्रीका से लाए गए नर चीते तेजस की मौत, वन विभाग के प्रेस‌ नोट के मुताबिक तेजस की मौत गर्दन पर चोट और इन्फेक्शन से हुई, जबकि बाद में न्यूज 24 को पीसीसीएफ जेएस चौहान ने बताया कि मौत की वजह कालर आईडी की वजह से गले में इन्फेक्शन होना है.

7- आठवीं मौत 14 जुलाई को साउथ अफ्रीका से लाए गए नर चीते सूरज की मौत, वन विभाग के प्रेस नोट के मुताबिक मौत की वजह गर्दन और पीठ पर घाव होना है. जबकि बाद में न्यूज 24 को पीसीसीएफ जेएस चौहान ने बताया कि मौत की वजह कालर आईडी की वजह से गले में इन्फेक्शन होना है.

 

Advertisement
Advertisement