
मध्य प्रदेश में मोहन यादव कैबिनेट का बहुप्रतीक्षित इंतजार समाप्त हो गया है. मोहन मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया है. मोहन मंत्रिमंडल में कुल 28 नए मंत्रियों ने पद एवं गोपनीयता की शपथ ले ली है. सीएम और दो डिप्टी सीएम समेत सरकार में मंत्रियों की कुल संख्या अब 31 पहुंच गई है. नियमों के मुताबिक मध्य प्रदेश में कुल 34 मंत्री बनाए जा सकते हैं. यानी सूबे की सरकार में अब भी तीन मंत्री पद रिक्त हैं. कुछ ही महीने बाद लोकसभा चुनाव हैं और मोहन मंत्रिमंडल के जातीय समीकरण से लेकर गुटीय संतुलन तक, लोकसभा चुनाव की छाप साफ नजर आ रही है.
ओबीसी पर फोकस
मध्य प्रदेश सरकार की तस्वीर देखें तो ओबीसी पर फोकस साफ नजर आ रहा है. मुख्यमंत्री मोहन यादव खुद भी ओबीसी वर्ग से ही आते हैं. सीएम समेत सरकार के कुल 31 में से 13 मंत्री ओबीसी वर्ग से हैं. आंकड़ों के लिहाज से देखें तो सरकार में भागीदारी भी करीब 40 फीसदी बैठती है.
मध्य प्रदेश में ओबीसी आबादी करीब 51 फीसदी है. सरकार का नेतृत्व भी ओबीसी चेहरे के ही हाथ है. सरकार की कमान से लेकर मंत्रिमंडल में भागीदारी तक, बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले नई सरकार के जरिए 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' नारे के इर्द-गिर्द रहने का प्रयास किया है.
ऐसे साधा क्षेत्रीय समीकरण
मध्य प्रदेश की नई मोहन कैबिनेट में क्षेत्रीय समीकरण साधने की कवायद भी साफ नजर आती है. सबसे अधिक आठ मंत्री ग्वालियर चंबल रीजन से हैं जबकि महाकौशल, बुंदेलखंड और विंध्य रीजन से चार-चार मंत्री बनाए गए हैं. मध्य भारत रीजन से पांच और मालवा निमाड़ से तीन मंत्री बनाए गए हैं. जिन नेताओं को मंत्री बनाया गया है, उनमें बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी शामिल हैं. कैलाश विजयवर्गीय इंदौर-तीन विधानसभा सीट से विधानसभा पहुंचे हैं जो मालवा निमाड़ रीजन में ही आती है.
छिंदवाड़ा साधने की कवायद कैसे
बीजेपी का फोकस महाकौशल रीजन पर है और उसे साधने की कवायद मंत्रिमंडल के जातीय समीकरणों से भी समझी जा सकती है. मोहन मंत्रिमंडल में अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग से चार मंत्री बनाए गए हैं. महाकौशल रीजन में एसटी मतदाता प्रभावी हैं, खासकर छिंदवाड़ा सीट पर. छिंदवाड़ा हाल के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार रहे कमलनाथ का गढ़ है.
विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन छिंदवाड़ा जिले में बेहतर रहा था. बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में सूबे की सभी 29 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. 2019 में बीजेपी 28 सीटें जीत गई थी लेकिन छिंदवाड़ा का किला पार्टी नहीं ढहा पाई थी. अब मंत्रिमंडल में चार एसटी और डिप्टी सीएम समेत पांच एससी चेहरों को जगह मिशन छिंदवाड़ा से जोड़कर देखा जा रहा है.
एससी-एसटी पर दांव का छिंदवाड़ा कनेक्शन
अब सवाल ये भी है कि एससी-एसटी चेहरों को मंत्री बनाए जाने का छिंदवाड़ा से कनेक्शन क्या है? दरअसल, छिंदवाड़ा लोकसभा एसटी बाहुल्य सीट है. छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में एसटी वोटर्स की तादाद करीब 36 फीसदी है. एससी वर्ग के करीब 11 फीसदी मतदाता छिंदवाड़ा में हैं. यानी छिंदवाड़ा ऐसी सीट है जहां एससी-एसटी वोटर्स की तादाद करीब 47 फीसदी है जो एकमुश्त जिधर चले जाएं, जीत करीब-करीब सुनिश्चित कर देते हैं. कांग्रेस और कमलनाथ की मजबूती के पीछे भी एससी-एसटी वोट के इस समीकरण को मजबूत वजह माना जाता है. बीजेपी ने मोहन मंत्रिमंडल में मंत्रिमंडल की जमावट से छिंदवाड़ा में कांग्रेस के मजबूत समीकरण पर फोकस का संदेश दे दिया है.
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नए चेहरों पर दांव
सूबे में 2003 से अब तक, 20 साल में 18 साल से अधिक समय तक बीजेपी की सरकार रही है. साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. कांग्रेस ने सरकार भी बनाई लेकिन कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार महज 15 महीने ही चल सकी थी. बीजेपी ने इसबार न सिर्फ सीएम बदला, बदलाव की छाप मंत्रिमंडल पर भी साफ नजर आ रही है. मोहन यादव मंत्रिमंडल से कई पुराने मंत्रियों को बाहर रखा गया है तो वहीं पहली बार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए आठ मंत्रियों को मंत्री बनाया गया है.
प्रह्लाद पटेल, राकेश सिंह, राव उदयप्रताप सिंह, संपतिया उइके जैसे नेता पहली बार सूबे की सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में नजर आ रहे हैं. इन नेताओं के अलावा राधा सिंह, प्रतिमा बागरी, दलीप अहिरवार और शिवाजी पटेल भी पहली ही बार विधानसभा पहुंचे और पहली बार में मंत्री भी बन गए. मंत्रिमंडल में नए के साथ ही कैलाश विजयवर्गीय जैसे पुराने चेहरों के साथ सीनियर और फ्रेश के बीच संतुलन साधने की कोशिश की गई है.
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सिंधिया और शिवराज के ये करीबी दरकिनार
मोहन मंत्रिमंडल में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कितने करीबियों का क्या होगा? सबकी नजरें इस पर थीं. नए मंत्रिमंडल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी प्रद्युम्न सिंह तोमर, तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत जैसे नेता जगह बनाने में सफल रहे हैं. हालांकि, नए मंत्रिमंडल में सिंधिया के करीबी और शिवराज सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे प्रभुराम चौधरी को जगह नहीं दी गई है. दूसरी तरफ, शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाने वाले भूपेंद्र सिंह, 10 बार के विधायक गोपाल भार्गव जैसे नेता मंत्रिमंडल में जगह बनाने में विफल रहे.
मोहन कैबिनेट से डॉर्क स्पॉट भरने की तैयारी
बीजेपी की रणनीति मोहन कैबिनेट में जातीय-क्षेत्रीय लिहाज से संतुलन की रणनीति तो झलक ही रही है, 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले डॉर्क स्पॉट भरने की तैयारी भी है. डॉर्क स्पॉट यानी वह क्षेत्र जहां कुछ कमी रह गई थी. बीजेपी ने एमपी में प्रचंड जीत के साथ सरकार बना ली लेकिन छिंदवाड़ा में पार्टी का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा. शिवराज सिंह चौहान चुनाव नतीजे के तुरंत बाद ही छिंदवाड़ा चले गए थे और तभी ये साफ हो गया था कि बीजेपी का फोकस अब छिंदवाड़ा पर है. विपक्ष का जातिगत जनगणना कार्ड विधानसभा चुनाव में फेल रहा लेकिन 2024 में भी इसे काउंटर किया जा सके, मोहन मंत्रिमंडल में मंत्रियों की जमावट में बीजेपी का काउंटर प्लान भी नजर आ रहा है.