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Everester Bhawna Dehariya: ठंड से जम गया शरीर, नाक से बहा खून! 15 महीने की बच्ची को छोड़ मां ने ऐसे फतह किया माउंट एल्ब्रुस

Mountaineer Bhawna Dehariya: एक मां के लिए ड्यूटी पर जाते समय अपने बच्चे को छोड़ना बहुत मुश्किल होता है, और यह तब और भी मुश्किल हो जाता है जब नौकरी जोखिम भरी हो. माउंट एवरेस्ट फतह कर चुकीं मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा की पर्वतारोही भावना डेहरिया के लिए भी यह आसान नहीं था, जब उन्हें अपनी 15 महीने की बेटी को छोड़कर यूरोप महाद्वीप के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एल्ब्रुस वेस्ट और माउंट एल्ब्रुस ईस्ट की चढ़ाई करने जाना पड़ा.

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Mount Everester Bhawna Dehariya with her Daughter at peak of Mount Elbrus
Mount Everester Bhawna Dehariya with her Daughter at peak of Mount Elbrus

मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा जिले के तामिया नामक एक छोटे से आदिवासी गांव की रहने वाली भावना डेहरिया ने अपने स्कूल के दिनों से ही दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचने का सपना देखा. जब वह बछेंद्री पाल की किताब का एक अध्याय "एवरेस्ट - माई जर्नी टू द टॉप" पढ़ रही थीं, तभी उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें भी माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचना है. कड़ी मेहनत, कई असफलताओं, आर्थिक तंगी और मुश्किल हालात के बाद 2019 में, भावना ने 22 मई को वो सपना पूरा कर दिखाया. 
 
माउंट एवरेस्ट के अलावा भावना दुनिया की कई अन्य प्रसिद्ध चोटियों पर भी सफलतापूर्वक चढ़ चुकी हैं. भावना ने 2019 में दीपावली के दिन अफ्रीका महाद्वीप का माउंट किलिमंजारो और होली के दिन ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के माउंट कोज़िअस्को के सबसे ऊंचे शिखर पर भी तिरंगा फहरा दिया. वे पांच महाद्वीपों के सबसे ऊंचे शिखरों पर ये कारनामा पूरा कर चुकी हैं और गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर भी हैं.

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इस 15 अगस्त को जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था, 30 वर्षीय भावना ने यूरोप महाद्वीप के समुद्र तल से 5642 मीटर (18510 फीट) ऊंचे पर्वत माउंट एल्ब्रुस वेस्ट और माउंट एल्ब्रुस ईस्ट 5621 मीटर (18,442 फीट) पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की और तिरंगा लहरा दिया. भावना की ये उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि मां बनने के बाद यह उनका पहला पर्वतारोहण अभियान था. भावना बताती हैं कि यूरोप महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटियों को फतह करने के लिए उन्हें अपनी 15 महीने की बेटी से 15 दिनों तक दूर रहना था जो न उनके और न उनकी बेटी के लिए आसान था. पर अपने पति और परिवार के सपोर्ट से उन्होंने ये कर दिखाया. 

आजतक से बात करते हुए, भावना बताती हैं कि 'हर मां की तरह मेरे लिए भी अपनी बेटी से 15 दिन तक दूर रहना और ऐसी जगह पर रहना, जहां कोई नेटवर्क नहीं था, बहुत कठिन था. मेरी बेटी गिन्नी मेरे बहुत करीब है. वो मुझसे एक मिनट भी दूर नहीं रहती लेकिन इन 15 दिनों में उसने भी हिम्मत दिखाई, जो मेरे लिए गर्व की बात है. मुझे ये जान कर खुशी है कि मेरी बेटी भी अपनी मां की तरह स्ट्रांग है.'

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यूरोप महाद्वीप के शिखर पर पहुंचने के रास्ते में आई चुनौतियों के बारे में बताते हुए भावना कहती हैं कि 'माउंट एल्ब्रुस की चढ़ाई के बाद, नींद पूरी नहीं होने की वजह से मुझे डिहाइड्रेशन हुआ. मेरी तबीयत खराब हो गई थी, क्योंकि दोनों शिखरों के नजदीक तापमान -25 से -35 डिग्री तक पहुंच गया था. ठंडी हवा की रफ्तार भी  35 किलोमीटर प्रति घंटा तक बढ़ जा रही थी. मेरी नाक से खून निकलने लगा, हाथों की उंगलियां पूरी जम गईं. पूर्वी शिखर पर जाने के दौरान उंगलियां सुन्न हो जाने के कारण मुझे फ्रोजन बाइट होने का डर था. उस वक्त मुझे बस अपनी बेटी का ख्याल आ रहा था. हालांकि, मैंने ठान लिया था कि मुझे ये समिट कर वापस सही सलामत जाना है. अपनी बेटी के जन्म के बाद मैंने पर्वतीय क्षेत्र में जो ट्रेनिंग की थी, उससे मुझे रिकॉर्ड टाइम में समिट कर पाने में बहुत मदद मिली.'

भावना बताती हैं कि 'पहली बार उन्होंने अपनी बेटी को जयपुर में टेरिटोरियल आर्मी की परीक्षा देने के लिए अपनी मां के साथ छोड़ा था. तब गिन्नी सिर्फ तीन महीने की थी. गर्भावस्था के बाद कठिन व्यायाम या प्रशिक्षण करने की अनुमति नहीं थी और माइनस तापमान में इतनी ऊंचाई पर एक पहाड़ पर चढ़ना एक ऐसी चीज है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. लेकिन, मैंने कभी हार नहीं मानी. मैं धीरे-धीरे तैयारी करती रही और अंततः कर दिखाया.'

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