MP News: धार जिले के पीथमपुर इंडस्ट्रियल एरिया में भोपाल की बंद पड़ी यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकले 6 हजार 570 किलो जहरीले कचरे को तीसरे चरण में जला दिया गया है. यह कचरा 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के स्थल से निकाला गया था, जिसे 2 जनवरी को 250 किलोमीटर दूर पीथमपुर के एक कचरा निपटान संयंत्र में लाया गया था. कुल 337 टन कचरे के निपटान की योजना के तहत यह प्रक्रिया चल रही है.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सुरक्षा मानदंडों का कड़ाई से पालन करते हुए इस कचरे का परीक्षण तीन चरणों में करने का आदेश दिया था. कोर्ट ने अधिकारियों से 27 मार्च तक रिपोर्ट पेश करने को कहा है.
तीसरे चरण के बारे में जानकारी देते हुए एक अधिकारी ने बताया, "10 मार्च को शाम 7:41 बजे से 270 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से कचरे को भस्मक में डालना शुरू किया गया. 11 मार्च को रात 8 बजे तक 6 हजार 570 किलोग्राम कचरा जला दिया गया."
एयर क्वालिटी पर नजर
अधिकारी ने कहा कि भस्मीकरण के दौरान उत्सर्जन की निगरानी ऑनलाइन सतत उत्सर्जन निगरानी प्रणाली (OCEMS) के जरिए की गई, जो निर्धारित मानकों के भीतर रही. आसपास के गांवों- तारपुरा, चिराखान और बजरंगपुरा में एयर क्वालिटी भी मानकों के अनुरूप पाई गई.
परीक्षण के पिछले चरण
पहला परीक्षण 28 फरवरी को शुरू हुआ और 3 मार्च को खत्म हुआ, जिसमें 10 टन कचरे को 135 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से जलाया गया. यह प्रक्रिया 75 घंटे तक चली. दूसरा चरण 8 मार्च को समाप्त हुआ, जिसमें 180 किलोग्राम प्रति घंटे की दर से कचरे का निपटान किया गया. अब तीसरे चरण के बाद अधिकारियों को उम्मीद है कि पूरी प्रक्रिया की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाएगी.
भोपाल गैस त्रासदी का कचरा
2-3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड की कीटनाशक फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस के रिसाव ने दुनिया की सबसे भीषण औद्योगिक त्रासदी को जन्म दिया था. इसमें कम से कम 5,479 लोग मारे गए थे और हजारों अन्य शारीरिक रूप से प्रभावित हुए थे. 40 साल बाद भी इस कचरे का निपटान एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.
पीथमपुर में विरोध
कचरे को पीथमपुर लाए जाने के बाद स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को नुकसान की आशंका जताई. हालांकि, राज्य सरकार ने इन आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि कचरे के सुरक्षित निपटान के लिए सभी जरूरी इंतजाम किए गए हैं.
आगे की प्रक्रिया
तीसरे चरण के सफल समापन के बाद अब नजरें कोर्ट की अगली सुनवाई पर टिकी हैं. सरकार का दावा है कि वैज्ञानिक तरीकों से कचरे का निपटान किया जा रहा है और इससे पर्यावरण को कोई खतरा नहीं है. यह कदम भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल पुराने दाग को मिटाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है.