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305 साल से तोप की गूंज पर खुलता है यहां रोजा, मस्जिद से लाल बल्ब जलाकर दिया जाता है सिग्नल

MP Raisen fort: तोप चलाने से पहले मार्कस वाली मस्जिद से सिग्नल मिलता है. मस्जिद की मीनार पर लाल बल्ब जलाकर संकेत दिया जाता है, जिसके बाद किले से तोप दागी जाती है. यह परंपरा देश में अनोखी है. 

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किले की पहाड़ी से तोप चलाने की परंपरा
किले की पहाड़ी से तोप चलाने की परंपरा

मध्य प्रदेश के रायसेन में स्थित ऐतिहासिक किला, जहां कभी 700 रानियों ने एक साथ जौहर किया था और जहां पारस पत्थर होने के भी दावे किए जाते हैं, आज भी अपनी अनोखी परंपरा के लिए चर्चा में है. पिछले 305 साल से यहां रमजान के महीने में किले की प्राचीर से तोप चलाकर रोजा खोलने और सेहरी की सूचना दी जाती है. यह परंपरा नवाबी शासनकाल से चली आ रही है और आज भी मुस्लिम समुदाय किले से आने वाली तोप की आवाज सुनकर रोजा खोलता है.

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305 साल पुरानी परंपरा
शहर काजी ज़हीर उद्दीन ने बताया, "रायसेन में 305 साल से किले की पहाड़ी से तोप चलाने की परंपरा कायम है. तोप की गूंज सुनकर मुस्लिम समाज रोजा खोलता और सेहरी बंद करता है." यह तोप करीब 30 गांवों तक सुनाई देती है. जिला प्रशासन हर साल रमजान के लिए एक महीने का लाइसेंस जारी करता है. तोप चलाने का काम एक ही परिवार पीढ़ियों से करता आ रहा है. रमजान खत्म होने पर ईद के बाद तोप की सफाई कर इसे सरकारी गोदाम में जमा कर दिया जाता है.

सिग्नल से चलती है तोप
तोप चलाने से पहले मार्कस वाली मस्जिद से सिग्नल मिलता है. मस्जिद की मीनार पर लाल बल्ब जलाकर संकेत दिया जाता है, जिसके बाद किले से तोप दागी जाती है. यह परंपरा देश में अनोखी है. देखें Video:- 

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काजी के मुताबिक, राजस्थान के बाद रायसेन दूसरा ऐसा शहर है, जहां तोप से रमजान की सूचना दी जाती है. यह किला अपनी ऐतिहासिकता और इस परंपरा के कारण हर साल रमजान में चर्चा का केंद्र बन जाता है.

किले का इतिहास
रायसेन का यह किला 16वीं सदी में अपनी वीरता के लिए मशहूर रहा, जब 700 रानियों ने यहां जौहर किया था. कहा जाता है कि किले में पारस पत्थर छिपा है, जो इसे रहस्यमयी बनाता है. आज भी यह किला सीना ताने खड़ा है और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए है. रमजान में तोप की गूंज इसकी शान को और बढ़ा देती है.

प्रशासन की भूमिका
जिला कलेक्टर की अनुमति से चलने वाली यह तोप परंपरा और प्रशासन के समन्वय का उदाहरण है. हर साल लाइसेंस और सुरक्षा के इंतजाम सुनिश्चित किए जाते हैं. यह परंपरा न सिर्फ धार्मिक एकता को दर्शाती है, बल्कि रायसेन की पहचान को भी मजबूत करती है.

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