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हजारों मधुमक्खियों ने युवक को ऐसे काटा, तीन दिन तक डंक निकालते रहे डॉक्टर

मधुमक्खियों ने उसे ऐसा घेरा कि उसका शरीर का शायद ही कोई ऐसा अंग हो, जहां उसे डंक न मारा हो. 72 घंटों तक डॉक्टरों ने उसके शरीर से डंक निकाले. ऐसे मामलों में अक्सर मौत हो जाती है. मगर, डॉक्टरों ने उसे बचा लिया. युवक करीब एक माह तक अस्पताल में भर्ती रहा. अब उसकी हालत ठीक बताई जा रही है.

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अस्पताल में चल रहा अविनाश का इलाज.
अस्पताल में चल रहा अविनाश का इलाज.

खेत में गए एक युवक पर एक साथ हजारों मधुमक्खियों ने हमला कर दिया. मधुमक्खियों ने उसे ऐसा घेरा कि उसका शरीर का शायद ही कोई ऐसा अंग हो, जहां उसे डंक न मारा हो. परिवार के लोगों ने बड़ी मुश्किल से उसे बचाया और डंक निकालना शुरू किए. 

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मगर, इस बीच युवक की हालत गंभीर होती चली गई. आनन-फानन में उसे इंदौर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज के लिए एडमिट कराया गया. वहां डॉक्टरों ने इंटरनेशनल रेफरेंस का उपयोग किया और लगातार 72 घंटे CRRT-CVVHDF (हेमोडियाफिल्ट्रेशन) कर जहर को बाहर निकाला. 

इसके साथ ही प्लाज्मा एक्सचेंज के जरिये उसकी जान बचाई. युवक करीब एक माह तक अस्पताल में भर्ती रहा. अब उसकी हालत अच्छी है. डॉक्टर के अनुसार, मेडिकल रिसर्च के तहत सांप काटने पर इसका इलाज तो है, लेकिन मधुमक्खियों के काटने से होने वाले जहरीले प्रकोप का कोई इलाज नहीं है. 

मधुमक्खियों के काटने पर नामुमकिन होता है जान बचाना 

ऐसे में जब इंसान को हजारों मधुमक्खियां काट लें, तो उसका बचना नामुमकिन ही होता है. मगर, इस तरह के इस मामले में युवक की जान बचा ली गई है. घटना खंडवा जिले के एक गांव की है. यहां रहने वाले किसान अविनाश मालवीय 11 नवंबर को अपने खेत में गए थे. 

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अचानक मधमक्खियों का समूह उड़ते हुए आया और उसने अविनाश पर हमला कर दिया. वे दौड़ते-दौड़ते घर तक पहुंचे. मगर, तब तक मधुमक्खियों ने उन्हें हजारों डंक मार दिए थे. अविनाश का शरीर पूरी तरह सूज गया था और वह बेसुध हो गए थे. 

उन्होंने डंक निकालना शुरू किया और फिर पास ही के एक अस्पताल ले गए. जहां इंदौर के एक प्राइवेट अस्पताल में रैफर किया गया. मांसपेशियों में सूजन के साथ मल्टी ऑर्गन डिसफंक्शन हो गया था.  

बहुत जहरीले घाव हो गए थे 

अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जय सिंह अरोडा और डॉ. ज्योति वाधवानी ने बताया कि मरीज जब अस्पताल आया, तो उसे सांस लेने में बहुत तकलीफ हो रही थी. उसके पूरे शरीर में सूजन और कई सारे घाव थे. उसकी हालत काफी गंभीर थी. इस पर उसे आईसीयू में एडमिट किया गया. 

यहां कई टेस्ट कराने पर पता चला कि उसे गंभीर संक्रमण के साथ मांसपेशियों में सूजन, सेप्सिस, मसल ब्रेक डॉउन, मल्टी ऑर्गन डिसफंक्शन यानी शरीर के दो या उससे अधिक अंगों का एक साथ काम बंद कर देने की वजह से उसकी हालत नाजुक होती जा रही थी. हजारों मधुमक्खियों के काटने से बहुत ज्यादा जहरीले घाव हो गए थे. इनका उपचार शुरू किया गया. 

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72 घंटों तक डॉक्टरों ने निकाले डंक 

डॉ. जय सिंह अरोड़ा ने बताया कि इस प्रकार के मामले बहुत ही दुर्लभ होते हैं. अकसर जब इतनी बड़ी संख्या में मधुमक्खियां किसी को डंक मारती हैं, तो व्यक्ति की मृत्यु होने की आशंका ज्यादा होती है. हालांकि, समय पर उपचार शुरू करने से स्थिति को काबू में किया जा सकता है. 

ऐसे में प्लाज्मा-एक्सचेंज, CRRT-CVVHDF जान बचाने के लिए कारगर साबित हो सकते हैं. इन उपचारों से ऐसे मरीजों की मदद हो सकती है, जिन्हें कार्डियक फेलियर, लिवर फेलियर, मल्टी ऑर्गन फेलियर, ऑटोइम्यून बीमारियां या गंभीर बैक्टीरिया या वायरल इनफेक्शंस हुए हैं. साथ ही ड्रग्स या केमिकल की वजह से पॉइजनिंग होने पर भी यह इलाज का तरीका कारगर होता है. 

इस केस में शुरू के 72 घंटे तक लगातार डॉक्टरों की टीम ने उसके शरीर से डंक निकाले. इस दौरान मरीज काफी कराह रहा था क्योंकि आमतौर पर एक-दो डंक में ही इंसान तिलमिला जाता है, जबकि उक्त मरीज के तो पूरे शरीर पर ही डंक ही डंक थे. टॉक्सिन भरे प्लाज्मा को निकालकर नॉर्मल प्लाज्मा रिप्लेस किया गया.

ऐसे ही CRRT जो एक स्पेशल डायग्नोसिस है, लगातार 72 घंटे की गई. इसमें ऑर्गन्स डेमेज के चलते जो भी टॉक्सिन प्रॉडक्ट्स डेवलप हो रहे थे, उन्हें निकाला गया. इसके बाद मरीज की रिकवरी शुरू हुई और अब 27 दिनों बाद डिस्चार्ज किया गया.

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खास बात यह कि मरीज के परिजन की सूझबूझ, उसे समय पर अस्पताल लाने, और मरीज का विल पॉवर स्ट्रांग होने की वजह से उसकी जान बच गई. डॉक्टरों ने भी सभी आवश्यक उपचार करने में पूरी ताकत लगा दी. यूएस, चाइना, अफ्रीका में इस तरह से इलाज किया जाता है. वहां की मधुमक्खियों में टॉक्सिन भारत की मधुमक्खियों से कम होते हैं. 

मेडिकल जर्नल में प्रकाशित होगा यह केस 

वहां यही थैरेपी CRRT व प्लाज्मा एक्सजेंज अपनाई जाती है जो यहां भी अपनाई गई. मरीज के इलाज के लिए AIMS दिल्ली में भी बात की गई थी. मगर, वहां भी इस तरह का कोई केस पहले नहीं आया था. लिहाजा, इंटरनेशनल रेफेरेंस का उपयोग किया. अब केस एक मेडिकल जनरल में प्रकाशित होने जा रहा है. यह फिजियिशन्स और प्राइमेरी केयर को नई दिशा देगा. 

 

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