MP News: रोड एक्सीडेंट में घायल व्यक्ति के इलाज को लेकर गुना जिला अस्पताल में ड्यूटी डॉक्टर और पुलिस कांस्टेबल के बीच बहसबाजी हो गई. मुद्दा एक्सीडेंट में घायल हुए व्यक्तियों के इलाज का था. घायलों का इलाज नियमों के बंधन में उलझ कर रह गया.
दरअसल, म्याना थाना क्षेत्र के नेशनल हाइवे पर मोहन यादव एवं छोटू प्रजापति की मोटरसाइकिलें आमने सामने भिड़ गईं. एक्सीडेंट में दोनों ही बाइक सवार बुरी तरह से जख्मी हो गए . सड़क हादसे की सूचना जब डायल 100 के स्टाफ को मिली तो पुलिसकर्मी तत्काल घटनास्थल पर पहुंचे. एम्बुलेंस से संपर्क किया गया लेकिन एम्बुलेंस घटनास्थल पर पहुंचती तब तक शायद देर हो जाती. डायल 100 का स्टाफ घायलों की हालत को देखते हुए इलाज के लिए जिला अस्पताल ले आया.
लेकिन जिला अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात सरकारी डॉक्टर ने घायलों का इलाज करने से मना कर दिया. लालफीताशाही का हवाला देते हुए ड्यूटी डॉक्टर ने कहा कि पहले घायलों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज कराना था इसके बाद जिला अस्पताल लाते. बहसबाजी के बीच घायल स्ट्रेचर पर इलाज के लिए तड़पते रहे.
वहीं, पुलिस कांस्टेबल ने बताया कि घायलों की हालत नाजुक थी. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में इतनी व्यवस्थाएं नहीं हैं कि इलाज हो पाता. घटनास्थल से स्वास्थ्य केंद्र व जिला अस्पताल की दूरी बराबर है. जिला अस्पताल में घायलों का इलाज करने में आखिर दिक्कत क्या है?
ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने बताया कि जिस जगह एक्सीडेंट हुआ है, वहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर घायलों का इलाज कराना चाहिए था. पुलिसकर्मी घायलों को जिला अस्पताल ले आए. इलाज को लेकर पुलिसकर्मी और ड्यूटी डॉक्टर के बीच बहसबाजी हो गई.
पुलिसकर्मी ने डॉक्टर से कह दिया, 'अगर आप कह रहे हैं तो मैं घायलों को वापस ले जाता हूं.' इस दौरान घायल मरीज स्ट्रेचर पर बेहोशी की हालत में पड़े रहे. हालांकि, मीडियाकर्मियों की मौजूदगी में ड्यूटी डॉक्टर के तेवर थोड़े नरम पड़ गए. जिसके बाद दोनों घायलों का इलाज किया गया.
इस घटना ने लालफीताशाही से जूझ रहे सिस्टम पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कानूनी तौर पर एक्सीडेंट का शिकार होने वालों को गोल्डन ऑवर में इलाज मुहैया कराकर उनका जीवन बचाना महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन गुना के जिला अस्पताल में नियमों का हवाला देकर जिंदगी और मौत से जूझ रहे घायलों के इलाज में लापरवाही बरती गई जिसपर सवाल खड़े होना लाजमी है.