देश भर में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गवर्नेंस मॉडल की डिमांड होती रही है. पर पिछले दिनों दिल्ली के सीलमपुर और पश्चिम बंगाल में दंगा पीड़ितों के बीच भी वो उम्मीद बनकर उभरे हैं. आखिर वो कौन से कारण हैं जिसके चलते पूरे देश में उनकी डिमांड बढ़ रही है?
वक्फ बोर्ड संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान सबसे बड़ा मुद्दा वक्फ बाय यूजर का बन गया है. हिंदू पक्ष जिस तरह इस मुद्दे पर आक्रामक हुआ है उससे लगता है कि सरकार इस विषय पर झुकने के मूड में नहीं है.
कानूनी दुश्वारियां अपनी जगह हैं, लेकिन राहुल गांधी ने बिहार में आरजेडी नेतृत्व का जीना हराम कर रखा है - बिहार में कांग्रेस हर वो काम कर रही है जो लालू यादव को बिल्कुल भी पंसद नहीं है.
ओवरसीज पाकिस्तानियों को संबोधित करते हुए पाकिस्तानी सेना के प्रमुख असीम मुनीर के मुंह से जो बातें निकल रही थीं वो वैसी ही थीं जैसे कोई डरा हुआ सेनापति संभावित हार को देखते हुए अपनी टुकड़ी में जोश भर रहा हो. मुनीर पाकिस्तानियों को हिंदुओं के खिलाफ भडका कर, टू नेशन थियरी को सही साबित कर रहे थे. जाहिर है कि 2 से 3 परसेंट हिंदुओं से डर तो नहीं ही है. आइये देखते हैं कि आखिर बात क्या है?
मुर्शिदाबाद में जो कुछ हो रहा है, यह नया नहीं है. दरअसल मुर्शिदाबाद की धरती नफरती कट्टरवाद का प्रयोगशाला रही है. पूर्वी भारत में कोलकता और ढाका से पहले मुस्लिम शासन का गढ़ मुर्शिदाबाद ही रहा है.
अन्नामलाई बताते हैं कि तमिलनाडु में यूपी के 25 लाख रजिस्टर्ड मजदूर हैं. अगर अनऑफिशियल को भी जोड़ लिया जाए तो करीब 40 लाख लेबर तमिलनाडु में हैं. अन्ना कहते हैं कि कल्पना करिए अगर योगी आदित्यनाथ और नीतीश कुमार कहें कि इतने सस्ता श्रम क्यों आपको उपलब्ध कराएं तो तमिलनाडु क्या कर लेगा?
तमिलनाडु में AIADMK के साथ गठबंधन के लिए BJP को के. अन्नामलाई जैसे नेता की कुर्बानी देनी पड़ी है, लेकिन ई. पलानीस्वामी का मन अभी नहीं भर सका है - अमित शाह के बयान की वो अपने हिसाब से व्याख्या कर रहे हैं.
वक्फ बिल और उसके बाद कानून के विरोध की आवाजें देश के अलग अलग हिस्सों में भी सुनाई पड़ी हैं, लेकिन पश्चिम बंगाल में विरोध हिंसक रूप क्यों ले लेता है? वो भी तब जबकि ममता बनर्जी खुद वक्फ कानून के खिलाफ खुलकर खड़ी हो गई हैं.
बांग्लादेश से जारी घुसपैठ और जनसंख्या बदलाव ने पश्चिम बंगाल की सामाजिक बनावट को हिला दिया है. धार्मिक, राजनीतिक और भौगोलिक वजहों से हालात धीरे-धीरे एक 'नई बंटवारे' की ओर बढ़ते दिख रहे हैं. चिकन नेक यानी सिलीगुड़ी कॉरिडोर जैसे संवेदनशील इलाके सबसे ज्यादा खतरे में हैं.
नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही एनडीए बिहार चुनाव लड़ेगा, बीजेपी नेता ये बात कहते तो हैं, लेकिन संसदीय बोर्ड के अप्रूवल की शर्त भी जोड़ देते हैं - और, नीतीश कुमार की कुर्सी पर खतरा भांप जेडीयू नेता बवाल करने लगते हैं.
पहले भारत में हर घटना के पीछे पाकिस्तान का हाथ बताकर पल्ला झाड़ लिया जाता था. अब वो दौर आ गया है कि सारी समस्या का जड़ बांग्लादेश को बताकर उपद्रवियों को बचाया जा रहा है. उपद्रवियों के खिलाफ एक शब्द भी न बोलकर ममता बनर्जी ने साबित कर दिया है कि वो मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति में किस कदर फंस चुकी हैं.
राहुल गांधी बिहार का ताबड़तोड़ तीन दौरा करने के बाद, तीसरे गुजरात दौरे पर अहमदाबाद पहुंच गये हैं - और, ध्यान देने वाली बात ये भी है कि आम आदमी पार्टी विसावदर उपचुनाव के लिए कमर कस चुकी है.
आकाश आनंद की बीएसपी में वापसी तो हो गई है, लेकिन मुश्किलें वैसे ही बरकरार हैं. सिक्योरिटी छिन जाने के बाद, सबसे ज्यादा चर्चा बीएसपी की बैठक में उनकी गैरमौजूदगी की हो रही है.
कर्नाटक में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने जाति सर्वेक्षण की जो रिपोर्ट पेश की है उससे राज्य इकाई में अंदरूनी खींचतान बढ़ गया है. अगर यहां स्थितियां और खराब होती हैं तो कांग्रेस को राहुल गांधी के इस अभियान को ठंढे बस्ते में डालने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
प्रवर्तन निदेशालय के निशाने पर गांधी परिवार ऐसे वक्त आया है, जब कांग्रेस बिहार से लेकर गुजरात तक चुनावों के लिए एक्टिव है. ऐसे में ये समझने की जरूरत है कि बीजेपी को क्या फायदा होगा, और कांग्रेस पर असर क्या होगा?
भीड़ किसी की नहीं होती. जो उसे शह देते हैं आगे चलकर भीड़ उसकी भी नहीं सुनती है. यहां तक कि भीड़ सेना की भी नहीं सुनती. जब गोलियां बरसती हैं तो भीड़तंत्र दुगुनी ताकत से मुकाबला करता है. इसलिए डरना जरूरी है. क्योंकि जब तक डरेंगे नहीं, तब तक समस्या का हल नहीं सोचेंगे.
मनमोहन सिंह के कार्यकाल में बनी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में यह माना गया था कि आजादी के बाद देश के मुसलमानों की स्थिति दलितों से भी बदतर हो गई है. पर यूपीए गर्वनमेंट में भी मुसलमानों के कल्याण के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया.
बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के मिलकर चनाव लड़ने के संकेत मिले हैं, लेकिन कांग्रेस का लहजा बता रहा है कि कांग्रेस नेतृत्व के मन में कुछ और चल रहा है. जिस तरीके से राहुल गांधी आरजेडी के वोट बैंक पर धावा बोल रहे हैं, लगता नहीं कि तेजस्वी यादव को ये सब मंजूर होगा.
प्रशांत किशोर बिहार में बदलाव लाने की बात कर रहे हैं. जन सुराज की पटना वाली ‘बदलाव रैली’ तो फ्लॉप मानी जा रही है, अब ‘बिहार बदलाव यात्रा’ का असर देखा जाना बाकी है.
कन्हैया कुमार एक स्टूडेंट लीडर रहे हैं. जो बातें वो छात्रों से कहते रहे हैं वैसी ही बातें अगर वो बिहार के मतदाताओं से करेंगे तो यह कांग्रेस पार्टी के लिए नुकसानदायक ही साबित होंगी. पिछले दिनों उनके तीन बयान ऐसे ही हैं जो राजनीतिक दृष्टि से आत्मघाती हैं.
दिल्ली चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने सवाल उठाया था कि राहुल गांधी और उनके परिवार के लोग नेशनल हेराल्ड केस में गिरफ्तार क्यों नहीं किये गये? और, एक बार फिर आम आदमी पार्टी की तरफ से वही सवाल उठाया जा रहा है - ऐसा होने की वजह आने वाला गुजरात चुनाव है या कुछ और?