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केजरीवाल की राजनीति 11 साल में ही भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में क्यों फंस गयी

अरविंद केजरीवाल को जो भी हासिल हुआ है, कोई मामूली उपलब्धि नहीं है. अपने राजनीतिक सफर के ऐसे मोड़ पर वो पहुंच चुके हैं, जो चक्रव्यूह जैसा है - कानूनी पचड़ों में बुरी तरह फंसे केजरीवाल की आखिरी उम्मीद सिर-आंखों पर बिठाने वाली जनता ही है, लेकिन तभी तक जब तक लोग भी उनकी राजनीति से नाउम्मीद नहीं हो जाते.

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अरविंद केजरीवाल को भी तब तक नाउम्मीद होने की जरूरत नहीं है, जब जनता को उनसे उम्मीद बची हुई है.
अरविंद केजरीवाल को भी तब तक नाउम्मीद होने की जरूरत नहीं है, जब जनता को उनसे उम्मीद बची हुई है.

एक्टिविज्म और आंदोलन को छोड़ कर देखें तो अरविंद केजरीवाल को मुख्यधारा की राजनीति में 11 साल हो चुके हैं. अपने छोटे से सफर में वो राजनीति के मीठे-कड़वे तमाम स्वाद चख चुके हैं. भ्रष्टाचार के आरोप में सलाखों के पीछे पहुंच चुके साथियों के बाद अब उनको भी प्रवर्तन निदेशालय का नोटिस मिल चुका है - और वो खुद के जेल जाने की भी कई बार आशंका जता चुके हैं. 

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जनलोकपाल की मांग के साथ आंदोलन के रास्ते राजनीति में आये अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंस चुके हैं. राजनीति में आने से पहले और बाद में भी अरविंद केजरीवाल अपने राजनीतिक विरोधियों को देखते देखते चोर, लुटेरे, बलात्कारी और भ्रष्ट बता दिया करते थे, लेकिन अब वो खुद भी बुरी तरह फंसे हुए हैं. जिस मुंह से वो दूसरों पर आरोप लगा कर भ्रष्ट होने का दावा करते रहे, आज उसी मुंह से खुद को और अपने साथियों के बेकसूर और कट्टर इमानदार होने का दावा कर रहे हैं.

अरविंद केजरीवाल के कहने पर मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और संजय सिंह को भी लोग बेकसूर और कट्टर इमानदार आसानी से मान लेते, बशर्ते दूसरे नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बाद अरविंद केजरीवाल अपनी बातों पर टिके होते. अदालतों में मुकदमा लड़ रहे होते - लेकिन कोई माने भी तो कैसे? 

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जो भी नेता अरविंद केजरीवाल के मीडिया के सामने आकर कुछ कागज दिखा कर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने पर कोर्ट चले गये, अरविंद केजरीवाल ने माफी मांग ली और बचने के लिए समझौता कर लिया - मतलब तो यही हुआ कि अरविंद केजरीवाल राजनीतिक विरोध के चलते यूं ही नेताओं पर भ्रष्टचार के आरोप लगाते रहे. मतलब तो यही हुआ कि अरविंद केजरीवाल के आरोपों में कोई सच्चाई नहीं थी. वे आरोप बस झूठ का पुलिंदा थे. अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए नेताओं को भ्रष्ट बता दिया. 

अब अरविंद केजरीवाल का वही दांव उलटा पड़ रहा है. शराब घोटाले के बाद अब दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने ने एलजी वीके सक्सेना के साथ साथ सीबीआई को पत्र लिख कर दिल्ली जल बोर्ड में हुई गड़बड़ियों की जांच की मांग की है. बीजेपी नेता दिल्ली जल बोर्ड में 500 करोड़ रुपये का घोटाला होने का दावा कर रहे हैं. 

नये इल्जाम पर सफाई में आम आदमी पार्टी का कहना है कि दिल्ली सरकार पहले ही इसकी शिकायत कर चुकी है, और केंद्र सरकार एक्शन नहीं ले रही है. AAP का कहना है कि अगर कुछ गलत हुआ है, तो अफसरों ने किया है, मंत्रालय का कोई लेनादेना नहीं है.

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अरविंद केजरीवाल आज एक ऐसे मोड़ पर खड़े नजर आ रहे हैं जब उनके कई साथी जेल में हैं, और वो खुद भी भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में आ चुके हैं - आगे की लड़ाई लंबी है, और काफी मुश्किल भी है.

भ्रष्टाचार पर घिरे केजरीवाल की सफाई नाकाफी है

26 नवंबर, 2023 को आम आदमी पार्टी की स्थापना दिवस के मौके पर अरविंद केजरीवाल ने कहा है, '11 साल पूरे  में जनता ने हमें बहुत प्यार दिया... लोगों के आशीर्वाद और कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत से दो राज्यों में हमारी सरकारें बनीं... और दो अन्य राज्यों में विधायक बने... आज देश के हर कोने में आम आदमी पार्टी की चर्चा है... हर राज्य में हमारे कार्यकर्ता हैं, ये बहुत बड़ी बात है.'

बिलकुल. बात में दम है. अरविंद केजरीवाल के हिस्से आयी ये उपलब्धि कोई मामूली नहीं है. लेकिन कामयाबी की तस्वीर का दूसरा पहलू काफी धुंधला है. 

अरविंद केजरीवाल कहते हैं, 'आंदोलन के समय रामलीला मैदान में लोग हमसे पूछते थे कि आप लोग आगे चलकर भ्रष्ट नहीं होंगे, इस बात की क्या गारंटी है?' 

अरविंद केजरीवाल ने जिस बात का जिक्र किया है, वो सवाल अब भी लोगों के मन में है. उन लोगों के मन में ही है जो अरविंद केजरीवाल की राजनीति से पूरी तरह नाउम्मीद हो चुके हैं, और उनके मन में भी जिनके मन में थोड़ी बहुत उम्मीद बची हुई है. 

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भ्रष्टाचार की बात पर अरविंद केजरीवाल ने जो कुछ कहा है, उसे विक्टिम कार्ड खेलना ही कहा जाएगा. जैसे अभी बीजेपी के नेता अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं, और जैसे पहले अरविंद केजरीवाल दूसरों पर लगया करते थे - उसमें क्या फर्क है? 

जिन लोगों ने भ्रष्टाचार को लेकर अरविंद केजरीवाल से रामलीला मैदान आंदोलन के दौरान सवाल पूछे थे, आखिर उनको अरविंद केजरीवाल क्या समझाने की कोशिश कर रहे हैं?

कह रहे हैं, 'आज मैं कहना चाहूंगा कि पिछले 11 साल में जितना आम आदमी पार्टी को टारगेट किया गया, भारत के इतिहास में किसी और राजनीतिक पार्टी को इतना टारगेट नहीं किया गया... 11 साल में हम पर 250 से ज्यादा फर्जी केस किए गये... ईडी, सीबीआई, आईटी, दिल्ली पुलिस जैसी सभी एजेंसियों को हमारे पीछे छोड़ दिया गया... लेकिन, आज तक एक भी सबूत, एक पैसे की हेराफेरी नहीं मिली... हमारी ईमानदारी का सबसे बड़ा सर्टिफिकेट यही है.'

अरविंद केजरीवाल ने अपनी तरफ से आम आदमी पार्टी कार्यकर्ताओं की हर संभव हौसलाअफजाई भी की है, 'हमारे विरोधी भी मानते हैं कि आम आदमी पार्टी ने देश की राजनीति बदल दी है... इसी सोच और जज्बे को लेकर हमें आगे बढ़ते रहना है... आगे का रास्ता कितना ही कठिन क्यों न हो, हम लड़ेंगे और जीतेंगे.'

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जनता की अदालत में जीतते आ रहे हैं केजरीवाल

अगर अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने कहीं कोई गड़बड़ी नहीं की है, तो देश की न्यायिक व्यवस्था ऐसी है कि कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता. ये न्यायिक व्यवस्था की खूबसूरती है कि आरोपी को संदेह का भी लाभ मिलता है. अगर किसी ने कुछ गलत भी किया है, तो भी सबूतों के अभाव में वो बच सकता है. ट

लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि कोई नुकसान नहीं होगा. सबसे बड़ा नुकसान समय का होगा. जब तक दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. राजनीति में वक्त भी बहुत मायने रखता है. 

कानूनी पचड़े में बुरी तरह उलझे अरविंद केजरीवाल के लिए अब भी लोगों का सपोर्ट सबसे बड़ी चीज है. 

ये ठीक है कि कभी उनके बेहद करीबी साथी रहे कवि कुमार विश्वास उनको घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते. लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि जब कपिल मिश्रा ने अरविंद केजरीवाल पर दो करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया था, तो कुमार विश्वास को भी यकीन नहीं हुआ था, और योगेंद्र यादव को भी. योगेंद्र यादव को तो पहले ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था, तब कुमार विश्वास भी दूरी बना चुके थे. 

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ये भी सही है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी है, लेकिन दिल्ली में केजरीवाल के वोटर पर कोई असर नहीं पड़ा है. दिल्ली चुनाव और पंजाब में भी केजरीवाल को भ्रष्ट और आतंकवादियों से रिश्ता रखने वाला नेता साबित करने की पूरी कोशिश हुई, लेकिन लोगों ने भरपूर वोट दिये - और आप की सरकार बनी.

ऐसा भी भरोसा करने वाले कुछ आम लोग भी हैं. ऐसे ही लोगों की बदौलत अरविंद केजरीवाल की पार्टी दिल्ली में दोबारा सत्ता में आती है, और 70 में से 62 सीटें जीत लेती है. 117 सदस्यों वाली पंजाब विधानसभा में 92 विधायकों के साथ आम आदमी पार्टी की सरकार बनती है. गोवा में दो और गुजरात में पांच विधायक चुन कर आते हैं. 

चंडीगढ़ नगर निगम में भी आम आदमी पार्टी जीत हासिल करती है, और उसके बाद दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भी - ये लोगों की ही नहीं, अरविंद केजरीवाल की राजनीति में भी उम्मीदों की मात्र इतनी ही किरण बची हुई है. 

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