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रेखा: 'दूसरी औरत' की ऐसी कहानी जिसके बेखौफ अंदाज ने सिनेमा की तस्वीर बदल दी

सिनेमा जगत में अपनी लड़ाई कैसे लड़नी है, भानुरेखा ने इसे एक वक़्त बाद अच्छे से समझ लिया था. 'गणेशन' को विदा कर भानुरेखा ने अकेलेपन को अपना साथी बना लिया और विवादों से जमकर दो-दो हाथ किये. हालांकि बचपन में एक ऐसा समय भी आया जब उसने जीवन ख़त्म करने की तैयारी कर ली थी. पढ़िए अभिनेत्री रेखा से जुड़ी अनसुनी कहानी...

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अभिनेत्री रेखा के बेबाक अंदाज ने उन्हें हमेशा बेहद ख़ास बनाया
अभिनेत्री रेखा के बेबाक अंदाज ने उन्हें हमेशा बेहद ख़ास बनाया

Bollywood Queen Rekha: साल 1981 में आई फ़िल्म 'उमराव जान' में शहरयार के लिखे एक गाने की एक लाइन 'इन आंखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं' की तरह रेखा की ज़िंदगी में भी अफ़सानों की कोई कमी नहीं है. उन्हीं अफ़सानों में एक अफ़साना ये भी बताता है कि जिसके प्यार के चर्चे चार दशक से चर्चा में हैं वो भानुरेखा यानी कि रेखा बचपन से ही प्यार से कोसों दूर रहीं.

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सिनेमा जगत में एक कभी ना मिटाई जा सकने वाली लकीर बन चुकीं रेखा की मां और तेलुगू फिल्मों की मशहूर एक्ट्रेस पुष्पावल्ली, उन दिनों के तमिल सुपरस्टार जेमिनी गणेशन के प्यार में थीं, पुष्पावल्ली हमेशा से यही चाहती रहीं कि उन्हें अपने नाम के साथ गणेशन लिखने का अधिकार मिले, लेकिन यह हो ना सका. ऐसे में जब भानुरेखा का जन्म हुआ तो वो अनगिनत सवालों से घिर गई, ऐसे सवाल जिन्होंने अफवाह बनकर अब तक कहीं न कहीं भानुरेखा का पीछा नहीं छोड़ा. दरअसल उस समय भानुरेखा के बारे में जेमिनी की नाजायज़ बेटी होने की अफवाह मद्रास की हवा में घुल चुकी थी.

हालांकि बचपन से ही पुष्पावल्ली ने भानुरेखा को उनका पूरा नाम भानुरेखा गणेशन ही बताया. पुष्पावल्ली जिस नाम को लिखने के लिए तरसती रहीं वो उन्होंने अपनी बेटी को दिया. वो चाहती थीं जो उन्हें नहीं मिल सका, उनकी बेटी को मिले. हालांकि पचास के दशक में इस तरह की चाहत तरसने के लिए ही बनी थीं. 

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वहीं इस दौरान जेमिनी और उनकी एक फिल्म की अभिनेत्री सावित्री के बीच अफेयर की चर्चा भी आने लगी, यही नहीं इसके कुछ समय बाद दोनों की शादी की खबर भी हर तरफ जंगल की आग की तरह फ़ैल गई. और कुछ समय बाद ही सावित्री अपने नाम के साथ गणेशन लगाने लगीं... ये बात पुष्पावल्ली को बेहद चुभ गयी.    

जेमिनी और पुष्पावल्ली के बीच होने वाले मनमुटाव और झगड़ों को भानुरेखा ने बहुत ही कम उम्र में बेहद करीब से देखा. एक वक़्त बाद जेमिनी ने पुष्पावल्ली और दोनों बेटियों भानुरेखा और राधा को अपनाने से इनकार कर दिया. और एक इंटरव्यू में यह तक कह दिया कि सावित्री और उसके अलावा आई कोई भी औरत मेरी पत्नी नहीं है, हालांकि मैं उन्हें सबसे मेरी पत्नी के रूप में ही मिलवाता था. उनसे मेरे बच्चे भी हुए लेकिन ये रिश्ते नाजायज़ थे. उन्होंने इस पर कहा कि उनकी शादी बचपन में ही हो चुकी है और उनकी पत्नी का नाम बोबजी है. जेमिनी के इस बयान ने एक साथ कई दिल तोड़ दिए थे. ऐसे में पुष्पावल्ली और सावित्री समेत तमाम स्त्रियों का क्या हाल हो रहा होगा यह या तो वो खुद जान सकती हैं या फिर ईश्वर.   

सुसाइड नोट

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भानुरेखा ने अपनी मां को जेमिनी के लिए तड़पते देखा, और हर वो कोशिश करते हुए भी देखा जिससे जेमिनी उन्हें अपना लें. इस तरह से भानुरेखा ने प्रेम सम्बंधों का एक बुरा रूप बचपन में ही देख लिया था. जायज-नाजायज की लड़ाई लड़ते हुए जीवन में आगे बढ़ने वाली भानुरेखा ने साल 1968 की एक रात सुसाइड नोट लिखा. जिसमें उन्होंने तमाम तानों और पढ़ाई के बोझ से आजादी की मांग लिख दी. उन्होंने लिखा कि अब उन्हें नाजायज जैसे ताने बर्दाश्त नहीं होते हैं, पढ़ाई बोझ लगने लगी है और वो स्कूल के एग्जाम में फेल भी हो गयी हैं. भानुरेखा ने उस रात जीवन के अंत के लिए नींद की कई गोलियां खा लीं और सो गयीं.

लेकिन डॉक्टर्स की तमाम कोशिशों के बाद भानुरेखा ने जब आंखें खोलीं तो सामने मां खड़ी हुई थीं. सब रो रहे थे. और तब पुष्पावल्ली ने भानुरेखा से पूछा कि वो क्या करना चाहती हैं. भानुरेखा पढ़ना नहीं चाहती थीं, या ऐसे कहा जाए कि वो स्कूल नहीं जाना चाहती थीं जहां हर समय उनपर ताने मारे जा रहे थे. ऐसे में वो ना चाहते हुए भी फिल्मों की तरफ बढ़ गईं. फिल्मों में काम ना करने की चाह रखने वाली रेखा ने भले ही मजबूरी में यहां किरदारों को निभाया हो, लेकिन उन्होंने कभी अपनी बहन राधा को यहां आने नहीं दिया. इसकी वजह शायद सिनेमा जगत में उनके बुरे अनुभव रहे होंगे.

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एक इंटरव्यू में रेखा ने कहा था कि बम्बई उनके लिए एक जंगल की तरह था जहां वो खाली हाथ बिना किसी हथियार पहुंचीं थीं, जहां लोग उनका फायदा उठाने की कोशिश किया करते थे. इस सब पर और करीब से पता करने पर मालूम चलता है कि उस दौर में भानुरेखा को फिल्मी दुनिया में काम मिलने में काफी दिक्कतें भी आती थीं, जिसकी वजह कुछ और नहीं बल्कि उनका सरनेम 'गणेशन' था. फिल्म प्रोड्यूसर्स को यही लगता था कि अगर भानुरेखा को काम दिया तो जेमिनी की नाराजगी झेलनी पड़ेगी.

बंबई का बुलावा

साउथ की फिल्मों में काम कर गुजर बसर कर रहीं भानुरेखा को अचानक एक बंबई के फिल्म निर्माता ने फिल्म का ऑफर दे दिया. पहली हिंदी फिल्म और बंबई, भानुरेखा अपने नए सफ़र पर निकलने वाली थीं. बंबई पहुंच कर भानुरेखा के लिए जुहू में मौजूद अजन्ता पैलेस होटल का कमरा नंबर 115, उनका घर बना. यहीं से उनका बंबई का सफ़र भी शुरू हो गया.  लेकिन जेमिनी गणेशन की 'अवैध' संतान के ताने ने भानुरेखा का मद्रास से बंबई तक साथ नहीं छोड़ा था. हर शख्स अब भानुरेखा और उनकी अम्मा की कहानी जानता था और हर दूसरा आदमी उनका फायदा उठाना चाहता था. वहीं दूसरी तरफ जेमिनी अभी भी फ़िल्में कर रहे थे, और इस दौर तक वो बंबई की फ़िल्मी दुनिया के बड़े नामों के साथ नजर भी आ चुके थे.

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हालांकि भानुरेखा को बहुत पहले ही यह बहुत अच्छे से समझ आ चुका था कि उनके जीवन से 'गणेशन' को विदा देना ही बेहतर उपाय है. और ऐसा हुआ भी, मद्रास से बंबई आने वाली लड़की का नाम था भानुरेखा, सिर्फ भानुरेखा. रेखा ने एक बार कहा था कि मुझे नहीं लगता कि लोग बदलते हैं, मैं भानुरेखा हूं और हमेशा भानुरेखा ही रहूंगी. बेहद शर्मीली और प्यार से भरी हुई एक लड़की जिसकी जिंदगी में सिर्फ अकेलापन था, मैं आज भी वैसी ही हूं.

रेखा ने अपने अभिनय को शुरुआती दौर में गंभीरता से नहीं लिया. उनसे जुड़े लोग मानते थे कि रेखा थोड़ी सी लापरवाह हैं. सेट पर समय पर नहीं पहुंचना तो जैसे उनकी आदत में शुमार था. शुरुआती फिल्मों की कामयाबी ने रेखा से कमरा नंबर 115 छुड़वा दिया. अट्ठारह साल की उम्र में रेखा ने जुहू के बीच अपार्टमेंट्स में एक फ़्लैट ले लिया. जहां उस दौर की गंभीर अदाकारा जाया भादुड़ी रहा करती थीं.

एक बिल्डिंग में रहने के चलते जया और रेखा की मुलाक़ात अक्सर हो जाया करती थी. रेखा, जया को 'दीदीबाई' कह कर पुकारती और जया के साथ ज्यादा से ज्यादा वक़्त बितातीं. इस दौरान जया, रेखा को एक्टिंग प्रोफेशन को लेकर लापरवाह रवैये पर भी समझाती रहती थीं. ये वो दौर था जब अमिताभ और जया एक दूसरे को डेट कर रहे थे. हालांकि अमिताभ इस दौरान फ़िल्मी दुनिया में हिट फिल्म के लिए संघर्ष कर रहे थे.

जया से रेखा की नाराजगी

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साल 1973 में अमिताभ और जया ने शादी कर ली, लेकिन इस शादी में जया ने रेखा को इनविटेशन नहीं दिया. यह बात रेखा को काफी चुभ गई जिसका उन्होंने एक इंटरव्यू में जिक्र तक कर दिया कि मैंने जया को अपनी बहन माना था, उन्होंने मुझे अपनी शादी में बुलाने तक की ज़रूरत नहीं समझी. जबकि मेरा घर भी उसी बिल्डिंग में है जहां उनका है. रेखा और जया के मनमुटाव की ख़बरें आम हो चुकी थीं.

जया जहां एक तरफ शादी के बाद फ़िल्मी दुनिया से दूरी बनाने की तैयारी कर चुकी थीं तो वहीं रेखा अब अपने करियर के स्टारडम की तरफ बढ़ रही थीं. फिल्म 'घर' से दर्शकों का दिल जीतने वाली रेखा ने साल 1978 में आई 'मुकद्दर का सिकंदर' फिल्म से अपनी अदाकारी का लोहा मनवा लिया था. रेखा की अदाकारी, फिल्म में हीरोइन राखी पर पूरी ताकत के साथ हावी हो गयी थी. वहीं अमिताभ के साथ उनकी जोड़ी ने बॉलीवुड में तहलका ही मचा दिया था.

फिल्म का गाना 'सलाम-ए-इश्क' आज तक उतना ही जवां हैं जितना अपने दौर में था. जोहराबाई के किरदार ने बॉलीवुड के इतिहास में अपनी एक अमिट छाप छोड़ दी. बॉलीवुड में रेखा ने 'दूसरी औरत' के किरदार को काफी ज्यादा निभाया. ऐसे में यह चर्चा में भी आ गया था कि अगर 'दूसरी औरत' का किरदार निभाना है तो रेखा से बेहतर इसे कोई नहीं कर सकता. अब भले ही इसे तंज कहा जाए या कुछ और, लेकिन रेखा ने इस किरदार के साथ नाइंसाफी कभी नहीं की.

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बेबाक अंदाज के साथ जीने वाली रेखा ने हर मुश्किल दौर का सामना पूरी ताकत से किया, बेख़ौफ़ मीडिया में अपनी बात रखी. विवादों से घिरी रहीं. उनके बयानों ने हंगामा भी बरपाया. और अपने किरदार पर खुल कर बात भी की. जिसमें उन्होंने फिल्मों में निभाए 'दूसरी औरत' के किरदार पर भी खुलकर बयानबाजी की. रेखा ने एक बार कहा था कि लोग कहते है कि पत्नी का दर्जा एक पायदान ऊपर होता है क्योंकि उसके पास पति होता है, लेकिन मैं कहती हूं कि 'दूसरी औरत' दस पायदान ऊपर होती है क्योंकि पत्नी होते हुए भी उसका पति अपनी जिंदगी में 'दूसरी औरत' की चाह रखता है. रेखा के ऐसे बेबाक अंदाज ने उनके निजी जीवन से लेकर फ़िल्मी दुनिया तक की तस्वीर हर बार बदली है. 

रेखा के जीवन की रेखाओं में अकेलापन

मुश्किल से मुश्किल समय में रेखा ने निर्भीक होना चुना, निडर रहना चुना और अपनी बात बेख़ौफ़ होकर कहना चुना. उनके इसी अंदाज ने कई बार उन्हें विवादों में भी डाला तो कई बार उन्हें अपने चाहने वालों के सिर आंखों पर भी बिठाया. लेकिन तमाम तानों और बुरी भली बातों के बीच प्यार तलाशना, घर बसाने की कोशिश और फिर जिसे बेहद चाहा उससे दूरी... तन्हाई तो जैसे रेखा की हथेलियों में पल बढ़ रही थी. एक प्यासा क्या तलाशेगा भला? बस उसी की तलाश में वो कब बहुत दूर निकल गयीं ये शायद वो ख़ुद भी कभी नहीं समझ सकीं.

लेकिन इन सब के बीच एक अकेलापन ही ऐसा रहा जिसने उनका साथ नहीं छोड़ा. और इस बात को लेकर वो ज़रा भी दुखी नहीं रहीं, बल्कि अकेले होने पर गर्व किया. इंडिया टुडे को साल 1998 में दिए एक इंटरव्यू में रेखा ने कहा था कि जैसे-जैसे मैं उम्र के अगले पड़ाव की ओर बढ़ती जा रही हूं, मैं खुद को अपनी जड़ों की ओर लौटता हुआ पाती हूं. मैं अब और अधिक साउथ इंडियन बन गई हूं. वास्तव में मैं अपनी मां की तरह बन गई हूं. मैं सामाजिक नहीं हूं और मैं अकेले अपनी पेंटिंग और बागवानी से खुश हूं. मुझे मेरे अकेले होने पर गर्व है. अकेलेपन पर गर्व करना सबके हिस्से नहीं आता, रेखा ख़ास थीं, ख़ास हैं और हमेशा बेहद खास रहेंगीं. जिनका जीवन सिर्फ 'किसी एक नाम' के इर्द गिर्द घूमना भर नहीं है, उससे कहीं अधिक विशाल है.  


 

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