इजरायल को हमास ने अब तक सबसे बड़ा दर्द दिया है. इजरायल के करीब 800 लोग हमास के हमले में मारे गए हैं. हालांकि इजरायल ने तुरंत एक्शन लेते हुए गाजा पर हमले तेज कर दिया. इजरायली सेनाएं पूरे गाजा को घेर रखी हैं. पर इजरायली बदले का असल किरदार तो वो है जिसने हमास की फंडिंग की , हथियार मुहैया कराए और हमले की ट्रेनिंग दी. अब यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि हमास को इस भीषण हमले के लिए मदद ईरान से मिली है. ईरान और इजरायल के बीच खुन्नस बहुत पुरानी रही है.इजरायल अपने हर दुश्मन पर वॉर करेगा, पर ऐसा लगता है ईरान उसमें सबसे पहला होगा. ईरान पर इजरायल के हमले के लिए तात्कालिक कारण तो हैं ही पांच कारण और भी हैं जिनके चलते युद्ध विशेषज्ञों को लगता है कि ईरान पर हमला अतिशीघ्र संभव है.
1-हमास और हिजबुल्ला को खुलकर समर्थन देता आया है ईरान
आज से करीब 4 साल पहले लेबनान स्थित आतंकी संगठन हिजबुल्ला ने चेतावनी दी थी कि अगर अमेरिका ने ईरान के खिलाफ कोई युद्ध शुरू करने की जहमत उठाई तो इसका जवाब इजराइल पर पूरी निष्ठुरता से बमबारी करके की जाएगी.कहने का मतलब है कि ईरान समर्थित आतंकी संगठन हिजबुल्ला बहुत पहले से ताक में था कि कब उसे मौका मिले और वो इजरायल पर हमला कर दे. दरअसल उसी समय खुलासा हुआ था कि ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को काफी हद तक कंप्लीट कर लिया है. उसी समय ईरानी सेना ने अमेरिका का एक ड्रोन मार गिराया था. कहा जाता है कि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईरान पर हमले का आदेश तक दे दिया था पर बाद में वापस ले लिया गया. हिजबुल्ला को ईरान की तरफ से मिलिट्री ट्रेनिंग, हथियार और फंड भी मिलता रहा है. सीरिया से भी उसे समर्थन मिलता रहा है. इजराइल शुरू से ही कहता रहा है कि ईरान उसके खिलाफ सीरिया की जमीन का इस्तेमाल करता है. जुलाई 2006 में भी हिजबुल्ला लड़ाकों ने इजरायल पर रॉकेट दागे थे. इजराइल ने जवाब में लेबनान पर एयर स्ट्राइक की थी जिसमें करीब 1200 लोगों की मौत हुई थी. इजराइल के भी 160 सैनिक मारे गए थे. हिजबुल्ला अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, कनाडा और कई अन्य देशों में बैन है. हिजबुल्ला शुरू से वेस्ट और इजरायल की आंख में कांटा रहा है. मध्य एशिया में भी कई देश इस संगठन को पसंद नहीं करते. यह निश्चित है कि अब इजरायल हिजबुल्ला के मूल पर चोट करेगा. इसलिए ईरान पर हमला तय माना जा रहा है.
Spokesperson of Izzuddin Al-Qassam Brigades, Abu Obaidah:
“We thank the Islamic Republic of Iran who provided us with weapons, money and other equipment! He gave us missiles to destroy Zionist fortresses, and helped us with standard anti-tank missiles!” pic.twitter.com/NsprERkFTX
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) October 9, 2023
2-सऊदी के लिए सिरदर्द हैं यमन के ईरान समर्थित हूती गोरिल्ला
इजरायल ईरान को कमजोर करके मध्य एशिया में समर्थन जुटाना चाहेगा.हूतियों के ठिकानों पर सऊदी अरब ने पिछले साल ही घातक हवाई हमले किए थे पर अभी भी हूती गोरिल्ला उसकी नाक में दम किए रहते हैं.हूतियों के विरुद्ध सऊदी के नेतृत्व में बने गठबंधन का सदस्य यूएई भी है.पिछले साल 17 जनवरी को हूतियों ने अबु धाबी के पास एक औद्योगिक ठिकाने पर हमला किया और इस हमले में तेल के ट्रकों में आ लग गई. इस हमले में तीन विदेशी कर्मचारियों की मौत भी हो गई थी. हुतियों ने इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास भी हमला किया था.हूती विद्रोहियों से निपटने के लिए और यमन में सरकार को पुनर्स्थापित करने के लिए सऊदी अरब ने 2015 में अरब देशों का एक सैन्य गठबंधन तैयार किया था.
यमन पर कब्जे की लड़ाई में सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों और ईरान के बीच एक छद्म युद्ध चलता रहा है. अगस्त, 2020 में इजरायल और यूएई के बीच एक समझौता हुआ ईरान विरोधी गठबंधन में इजरायल की भी एंट्री हो गई. चूंकि हूतियों को मिले ज्यादातर हथियार ईरान से होते हैं. कई रिपोर्ट्स ऐसी आ चुकी हैं कि यूएई ने इजरायली एयर डिफेंस सिस्टम में खरीदने में काफी दिलचस्पी दिखाई थी.अब लगता है कि इजरायल इन देशों का विश्वास जीतकर अपने कॉमन दुश्मन का खात्मा करेगा.
3-इजरायल के लिए सारी समस्या की जड़ ईरान
शनिवार को इजरायल पर हमले को ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने ईरान का समर्थन बताया है. अखबार का कहना है कि हमास को ईरानी सुरक्षा अधिकारियों ने ट्रेन किया था. ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने ईरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड के कुछ पुराने अधिकारियों के हवाले से कहा है कि हमास ने अगस्त से ही इजरायल पर हवा,ज़मीन और समुद्र में हमले की तैयारी कर रहा था. ईरान के इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड के अधिकारियों ने ही हमास को हमले की बारीक रणनीति तैयार की थी.अख़बार ने दावा किया है कि अगर ईरान के सहयोग की बात सच होती है तो इजरायल के साथ ईरान की लड़ाई अब आमने-सामने की हो जाएगी. बीबीसी ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में स्तंभकार थॉमस एल फ्रीडमैन के हवाले से लिखता है कि ये संघर्ष इजरायल और हमास के बीच होने वाली रोजमर्रा का टकराव नहीं है. गज़ा और इजरायल के बीच सीमा सिर्फ 37 मील लंबी है. लेकिन इस संघर्ष ने जो झटके दिए हैं उससे गाज़ा के फिलिस्तीनियों और इजरायल के बीच टकराव न सिर्फ और घातक बन जाएगा बल्कि इसकी गूंज यूक्रेन, सऊदी अरब और ईरान में भी सुनाई पड़ेगी.
4-ईरान के प्रति नरम बाईडेन पर रिपब्लिकन और दक्षिणपंथियों का दबाव
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इजरायल पर हुए घातक और अब तक के सबसे बड़े हमले के बाद पूरी मदद देने की पेशकश की है. लेकिन बाइडन से सवाल किया जा रहा है कि आखिर उनके प्रशासन ने क्यों कैदियों की अदला-बदली के साथ ही ईरान के लिए छह अरब डॉलर के फंड को मंजूरी दी. यह मुद्दा इतना जोर पकड़ रहा है कि रिपब्किलन पार्टी की तरफ से तो अब बाइडन को साल 2024 के राष्ट्रपति चुनाव से बाहर करने की मांग उठने लगी है. फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डेसेंटिस ने कहा, 'ईरान ने इजरायल के खिलाफ इस युद्ध में फंडिंग में मदद की है और जो बाइडन की नीतियों ने ईरानी खजाने को भर दिया है' उन्होंने कहा कि बाइडन की नीतियां ईरान के लिए फायदेमंद हैं और अब इजरायल उसकी कीमत चुका रहा है.
5-ईरान किसी भी समय हांसिल कर सकता है परमाणु हथियार
सालों से यह दावा होता रहा है कि ईरान कभी भी परमाणु बम बना सकता है. अभी हाल ही में फिर ऐसी खबरें आईं हैं कि ईरान महज दो हफ्तों में परमाणु हथियार बना सकता है. अमेरिकी डिफेंस मिनिस्ट्री ने स्ट्रटेजी फॉर काउंटरिंग वेपन्स ऑफ मास डिस्ट्रक्शन रिपोर्ट 2023 में यह जानकारी दी है. दरअसल, ईरान ने यूरेनियम को 60 प्रतिशत तक संवर्धित कर लिया है. मई 2023 में मिली सैटेलाइट तस्वीरों से भी खुलासा हुआ था कि ईरान पहाड़ों के नीचे परमाणु हथियार बना रहा है. अमेरिका ने 2010 से ही ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए UN सिक्योरिटी काउंसिल, यूरोपीय यूनियन आदि से पाबंदियां लगवाईं थीं. बीच में करीब पांच साल तक ईरान को राहत मिल गई. पर जनवरी 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने फिर से ईरान पर सख्त प्रतिबंध लगा दिए. पर कहा जा रहा है कि बाइडेन के आने के बाद ईरान के साथ अमेरिका का रुख फिर से नर्म हो गया. अब अमेरिका के पास मौका होगा कि वो इजरायल पर हमले के बहाने ईरान पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियार कार्यक्रम को रोक सके.