13 जनवरी, 2025 को शुरू हुआ प्रयागराज महाकुंभ खत्म तो 26 फरवरी के आखिरी स्नान के साथ हुआ. लेकिन, उसके दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में जो भाषण दिया, उस पर समाजवादी पार्टी ने खूब बवाल मचाया.
योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि महाकुंभ में जिसे भी जिस चीज की तलाश थी, उसे मिला ही. योगी आदित्यनाथ का कहना था कि भक्तों को भगवान तक मिल गये, लेकिन 'गिद्धों को लाश', और 'सूअरों को गंदगी' ही मिली.
समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव महाकुंभ को लेकर शुरू से ही, बल्कि आयोजन के बहुत पहले से ही योगी आदित्यनाथ पर हमलावर थे. खासकर, योगी आदित्यनाथ की तरफ से महाकुंभ का न्योता दिया जाना अखिलेश यादव को बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था. वो योगी आदित्यनाथ पर वैसे ही हमलावर थे जैसे जनवरी, 2024 में अयोध्या के राम मंदिर उद्घाटन के दौरान.
महाकुंभ की समाप्ति के बाद योगी आदित्यनाथ करीब डेढ़ महीने तक ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं. जैसे पुलिसवालों को हफ्ता भर की छुट्टी, और बोनस देने का ऐलान किया है, वैसे ही सफाईकर्मियों के लिए भी बोनस की घोषणा की थी.
सफाईकर्मियों के साथ का एक वीडियो शेयर करते हुए यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नये सिरे से कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की. सोशल साइट एक्स पर उनकी ही बात 'जिसने जो तलाशा उसको वही मिला...' शेयर करते हुए अखिलेश यादव ने सवाल उठाया है, ये है साक्षात् प्रमाण… पहले तो कह रहे थे गंदगी है ही नहीं... अब ये सब कूड़ा-करकट कहां से आया? जनता पूछ रही है कि स्वच्छ जल के सेवन का वीडियो आज आयेगा या उसकी शूटिंग बाद में होगी?
सोशल मीडिया पर ये वीडियो खूब शेयर किया गया है. योगी आदित्यनाथ के समर्थक अखिलेश यादव पर टूट पड़े हैं, और अखिलेश यादव के पक्ष में खड़े लोग योगी आदित्यनाथ खो कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं.
व्यवस्था के नाम पर ऐसे सवाल तो बनते भी हैं. विपक्ष को तो लोकतंत्र में ये हक भी हासिल है. लेकिन, व्यवस्था के बहाने आगे बढ़ते हुए निजी हमले भी सुनने को मिले हैं. जैसे लोकसभा में विपक्ष के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बात बात पर आक्रामक रुख अख्तियार किये रहते हैं, अखिलेश यादव भी उसी लाइन पर सवाल पूछ रहे हैं, 'भगवा कपड़े पहनने से कोई योगी हो जाता है क्या?'
योगी पर निजी हमले से क्या मिलेगा?
सितंबर, 2024 में अखिलेश यादव ने सोशल साइट X पर लिखा था, 'भाषा से पहचानिये असली संत महंत, साधु वेष में घूमते जग में धूर्त अनंत.'
और हाल ही में, अखिलेश यादव ने बिल्कुल उसी अंदाज में सवाल उठाया है कि क्या भगवा वस्त्र धारण करने से कोई योगी हो जाता है? साधु के रूप में अखिलेश यादव ने रावण का भी उदाहरण दिया है. आपको याद होगा एक चुनावी रैली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात करते करते रावण की मिसाल दिये जाने के बाद काफी बवाल मचा था.
अखिलेश यादव का कहना था, क्या भगवा कपड़े पहनने से कोई योगी हो जाता है? भारत के लोग, खासकर गांव के लोग जो रामायण देखते हैं... जानते हैं... माता सीता का जब अपहरण हुआ था तो रावण भी साधु के भेष में आया था... ये पूरा प्रदेश जानता है, हिंदू समाज के लोग जानते हैं... जब रावण को सीता मां का हरण करना था तो रावण साधु के भेष में आया था, इसलिए हमको और आपको सावधान रहना पड़ेगा... ऐसे लोगों से हमें सावधान रहना पड़ेगा, जिनका व्यवहार और भाषा खराब हो गये हैं.
महाकुंभ में मची भगदड़ में हुई मौतों का मामला अलग था. वो व्यवस्था की बदइंतजामी थी. अखिलेश यादव ने वित्त मंत्री के आम बजट भाषण से पहले भी मौतों का मामला उठाया, और बाद में पूरा भाषण भी दिया.
घटना के वक्त अखिलेश यादव के संजीदगी भरे बयान की तारीफ भी हुई थी. अखिलेश यादव के बयान को राजनीतिक रूप से ही नहीं नैतिक तौर पर भी सही माना गया - और संसद में उनके भाषण को भी सही तरीके से देखा गया.
देखा जाये, तो महाकुंभ की मौतों पर सवाल सिर्फ अखिलेश यादव ने ही उठाया, लेकिन पूरा विपक्ष योगी आदित्यनाथ और बीजेपी को घेरने का बड़ा मौका चूक गया.
योगी आदित्यनाथ पर अखिलेश यादव का ये अंदाज तो ठीक वैसा ही है, जैसे राहुल गांधी बात बात पर भी, और कई बार तो बिना बात के भी, प्रधानमंत्री नरेेंद्र मोदी पर हमले करते हैं, और सीनियर कांग्रेस नेताओं के मना करने के बावजूद अपनी मनवाली ही करते हैं, भले भी उसका राजनीतिक नुकसान ही क्यों न हो - आखिर अखिलेश यादव को ये बात क्यों नहीं समझ में आ रही है?
क्या ये सब 2027 की तैयारी की रणनीति का हिस्सा है?
जिस तरीके से योगी आदित्यनाथ पर अखिलेश यादव हमला बोल देते हैं, क्या उनके वोटर ऐसी ही बातों से खुश होते हैं? हो सकता है यादव वोटर खुश होते हों, लेकिन उनका बाकी वोट बैंक कहां जा रहा है? ओबीसी वोटर तो उनसे दूर छिटकता जा रहा है, और जातीय जनगणना के बहाने कांग्रेस उन तक पहुंचने की कोशिश कर रही है.
अगर लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत में पीडीए फैक्टर का ही असर रहा तो यूपी में दो चरणों में हुए 10 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनावों
पीडीए का जादू क्यों नहीं चला?
अगर अयोध्या लोकसभा सीट पर अवधेश प्रसाद की जीत की वजह पीडीए का प्रभाव था, तो मिल्कीपुर में दम क्यों निकल गया - और कुंदरकी, वहां समाजवादी पार्टी को वोट क्यों नहीं मिला?
उपचुनावों के दौरान ही अखिलेश यादव ने 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव की तरफ ध्यान दिलाया था और पीडीए पर बने रहने की बात दोहराई थी - लगता तो नहीं कि सब कुछ सही दिशा में चल रहा है.