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क्या 'अमर सिंह चमकीला' अश्‍लील गानों को जस्टिफाई करती है? ये है असलियत

पंजाबी सिंगर अमर सिंह चमकीला की बॉयोपिक अमर सिंह चमकीला फिल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो चुकी है. लोग चमकीला के द्विअर्थी गानों को जस्टिफाई करने के लिए फिल्म के डायरेक्टर इम्तियाज अली की आलोचना कर रहे हैं. आइये देखते हैं सही क्या है?

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अमर सिंह चमकीला में दिलजीत दोसांझ और परिणीति चोपड़ा
अमर सिंह चमकीला में दिलजीत दोसांझ और परिणीति चोपड़ा

इम्तियाज अली शानदार प्रेम कहांनियां बनाते रहे हैं. उनकी फिल्मों का नायक या नायिका टूटकर प्यार करते हैं. कहानी कहने की यह उनकी कला ही थी कि उन्होंने दर्शकों से ऐसे सब्जेक्ट को भी एक्सेप्ट करवाया जो भारत के लोगों के गले से कभी नहीं उतरता. जब वी मेट का नायक अपनी मां से बहुत नाराज रहता है. क्योंकि उसकी मां बचपन में ही उसे और उसके पिता को छोड़कर किसी दूसरे के साथ चली जाती है. पर जब नायक को प्रेम होता है तो उसे समझ में आता है कि उसकी मां सही थी. यह विषय बॉलीवुड के मेन स्ट्रीम सिनेमा के लिए बहुत बोल्ड था. पर जब वी मेट हिट ही नहीं हुई दर्शकों ने उसे कल्ट मूवी भी बना दिया.

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कुछ इस तरह की ही कोशिश उन्होंने अमर सिंह चमकीला के साथ भी की है. करीब करीब हर भाषा और बोली में एक क्लास ऐसा है जहां अश्‍लीलता की भरमार है. पंजाब में भी ऐसा रहा है.पर उसे ग्लोरिफाई कभी नहीं किया गया. पर कहा जा रहा है कि चमकीला फिल्म के जरिए शायद इम्तियाज अली उसे वैधता प्रदान कर रहे हैं. हालांकि फिल्म की कहानी चमकीला की सत्य कहानी पर आधारित है. पर उनके गाए द्विअर्थी गानों को जस्टिफाई करने के लिए उन्होंने फिल्म के जरिए ऐसे तर्क गढ़े हैं जो हर किसी के गले नहीं उतर सकता है. जाहिर है कंट्रोवर्सी तो होनी ही थी.

क्या फिल्म द्विअर्थी अश्‍लील गानों को जस्टिफाई करती है?

फिल्म में एक सीन जिमसें चमकीला अभी बच्चा है. कुछ महिलाएं एक गाना गा रही हैं. उसमें 'खड़ा' शब्द बार-बार आ रहा है.इस शब्द के बारे में बच्चा अपनी मां से पूछता है .मां उसे थप्पड़ मारकर चुप करा देती है. बाद में चमकीला ऐसे ही गाने बनाकर पंजाब का एल्विस बन जाता है. उसके अश्लील गाने की वजह उसकी सहगायिका जिससे उसने शादी कर ली है अपने मायके जाती है तो चमकीला के ससुराल वाले चमकीला से शर्त रखते हैं कि पहले इस तरह के वह गाने गाना छोड़ दो उसके बाद ही लडकी तुम्हारे साथ जाएगी. बाद में परिवार की एक महिला से यह तर्क देती है कि हम लोग जो पारंपरिक गाने गाते हैं उसमें क्या अश्‍लीलता नहीं होती. पंजाब ही नहीं पूर्वी यूपी और बिहार में शादी और अन्य अवसर पर गालियों की परंपरा रही है. इस तरह के तर्क देकर फिल्मकार ऐसे गानों के लिए चमकीला को जस्टिफाई करने की कोशिश करता है. 

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फिल्म क्रिटिक दिनेश श्रीनेत अपनी फेसबुक वॉल पर इसके लिए जमकर बखिया उधेड़ते हैं.श्रीनेत लिखते हैं कि यह चलन सिर्फ पंजाब में नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा समेत पूरे उत्तर भारत की आंचलिक बोलियों में मौजूद है. फिल्म में किसी उत्सव की तरह लड़कियों को उसके गानों पर नाचते-गाते तो दिखाया है, मगर रोजमर्रा में आटो-बसों पर इस तरह के गीत कैसे अप्रत्यक्ष रूप से छेड़खानी को बढ़ावा देते होंगे इस पर फ़िल्म चुप हो जाती है. 

इस आधार पर भोजपुरी में अश्लील गानों को भी जस्टिफाई किया जाना चाहिए, क्योंकि इनके यूट्यूब पर लाखों व्यूज़ हैं और ये पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के हर गली-नुक्कड़ पर बजते हैं. इसे जस्टिफाई करने का मतलब जो लीक से हटकर काम कर रहा है, उसे हतोत्साहित करना भी है. कोई अचरज नहीं कि आने वाले दिनों में निरहुआ, पवन सिंह और खेसारी लाल यादव की बायोपिक भी सामने आए. श्रीनेत के ही वाल पर अमित यादव लिखते हैं कि फ़िल्म देखते समय यही ख़्याल आ रहा था कि इम्तियाज़ की मानें तो भोजपुरी इंडस्ट्री की अश्लीलता भी सही है. पंजाब में गन कल्चर को बढ़ावा देने वाले गीत भी ठीक हैं.

क्या ओटीटी पर ऐसा जानबूझकर किया जा रहा है?

समाज की परंपराओं और पुरुषों की बातचीत को आधार मानकर अमर सिंह चमकीला के अश्‍लील गानों को महिमामंडित करने का जो काट डायरेक्टर इम्तियाज अली ने फिल्म में ढूंढा है वह दरअसल उनका स्टैंड हो ही नहीं सकता.उनकी पिछली फिल्में इसकी गवाह हैं.उन्होंने कभी समाज की मर्यादा को लांघने की अनावश्यक कोशिश नहीं की.चमकीला में भी कहीं भी अनावश्यक गाली-गलौज या द्वअर्थी गीतों का सहारा लेकर फिल्म को हिट कराने की कोशिश नहीं की गई है. जैसा कि ओटीटी सीरिज हो या फिल्में उनमें अनावश्यक गाली गलौज आवश्यक हो गया है. ओटीटी की फिल्मों और सीरीज में जहां मां-बहन की गाली की जरूरत नहीं है वहां भी बेवजह ठंूसा जा रहा है. ओटीटी पर ऐसा दबाव क्यों है यह समझ से परे है. तो क्या ऐसी फिल्मों के जरिए नेटप्लिक्स जैसे ओटीटी फ्लेटफार्म अश्लील गानों को भी वैधता प्रदान करने के प्रयास में हैं. पर जिन लोगों ने भोजपुरी गानों में अश्लीलता का स्तर देखा और सुना है वो शायद वो कभी भी इसे वैध करने के प्रयास का समर्थन नहीं कर सकते हैं. 

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जब वी मेट के बाद इम्तियाज अली रॉक स्टार में भी एक बोल्ड कथा पर फिल्म बनाया जिसे दर्शकों का भरपूर प्यार मिला.पर इन दोनों फिल्मों के बाद वो अपनी फिल्मों को महान बनाने के चक्कर में गुड़ गोबर कर देते हैं. तमाशा और जब हैरी मेट सेजल में जैसी फिल्में बड़ी स्टार कास्ट के साथ भी नहीं चल सकीं क्योंकि उन फिल्मों को वो महानतम बनाने की कोशिश की गई. जिसके चलते ये फिल्में न दर्शकों के लायक बन सकीं और न समीक्षकों के लायक. फिर भी उनके नाम से जब भी कोई फिल्म आती है लोग देखते हैं . उन्हें उम्मीद होती है एक खूबसूरत लव स्टोरी देखने को मिलेगी. अमर सिंह चमकीला में भी उनसे यही उम्मीद थी. उन्होंने हमेशा की तरह एक अच्छी मूवी बनाने की कोशिश की है. पर ये उनकी पहली फिल्म है जिसमें उनके बनाए शिल्प से ज्यादा बात उन मुद्दों की हो रही है जिसे अली छूकर निकल गए हैं. 

दलित नायक के संघर्ष को नहीं छुआ गया

फिल्म का नायक अमर सिंह चमकीला दलित है. फिल्म की तारीफ इस मायने में की जानी चाहिए कि मेन स्ट्रीम के बॉलिवुड के सिनेमा का नायक आमतौर पर दलित नहीं होता है. जाहिर है कि दलित होने के चलते चमकीला का संघर्ष बहुत बड़े लेवल का रहा होगा. सिर्फ एक सीन छोड़कर पूरी फिल्म इस विषय को भी नहीं छूती है. फिल्मकार के पास इसी बहाने पंजाबी और सिख समाज के ताने बाने को भी दिखाने का मौका था. आतंकवाद के दौर में डरे हुए लोगों को तो दिखाया गया है पर ये समझ में नहीं आया कि कलाकार क्यों डरे हुए हैं. कैसेट निकालने और अखाड़ा लगाने वाले गायकों को यह कहते हुए यह सुना जा रहा है कि जब पंजाब में दुख की घड़ी है इस समय ऐसे गीत निकालने का समय नहीं है . इसे थोड़ा और विस्तार से समझाना चाहिए था.फिल्म की कहानी में दूसरी पत्नी का जट सिख होना छिपाया गया है. जबकि ऐसा भी माना जाता है कि दूसरी पत्नी के परिवार वालों ने अमर सिंह चमकीला की ऑनर किलिंग करवाई. 

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