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UP का नया धर्मांतरण कानून योगी आदित्यनाथ की ताकत बरकरार रखेगा या बढ़ाएगा भी?

योगी आदित्यनाथ के राजनीति उभार में 'लव-जिहाद' मुहिम का सबसे ज्यादा योगदान रहा है. मौजूदा मुसीबतों के बीच एक बार फिर योगी आदित्यनाथ ने अपने आजमाये हुए हथियार पर ही भरोसा जताया है - और यही कारण है कि विधानसभा में जो संशोधित धर्मांतरण विधेयक पास हुआ है, उसे लव-जिहाद कानून के तौर पर ही देखा जा रहा है.

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योगी आदित्यनाथ ने ऐसी चाल चली है, जो उनके राजनीतिक विरोधियों की नींद हराम कर सकता है.
योगी आदित्यनाथ ने ऐसी चाल चली है, जो उनके राजनीतिक विरोधियों की नींद हराम कर सकता है.

योगी आदित्यनाथ ने अपनी तरकश से दो जबरदस्त तीर छोड़े हैं, जिनमें से एक ब्रह्मास्त्र कैटेगरी का है, जिसका निशाना अचूक होता है. और दूसरा यूपी बीजेपी के लिए बहुत बड़ी नसीहत है, सभी के लिए ऊपर से नीचे तक. 

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यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने सारे राजनीतिक विरोधियों को एनकाउंटर स्टाइल में आगाह कर दिया है कि अगर किसी ने कोई भी चालाकी दिखाई, तो नुकसान किसी एक का नहीं होगा. कोई नहीं बचेगा - बेहतर यही है कि मौका रहते सभी लोग सुधर जायें.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरी बीजेपी को सीधे सपाट शब्दों में समझा दिया है, 'अगर आज विधानसभा चुनाव हो जायें, तो समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों को बराबर सीटें मिलेंगी.'

लोकसभा चुनाव 2024 में मिले वोटों के आधार पर तो ऐसे गुणा-भाग कई जगह किये जा रहे थे, लेकिन खुद योगी आदित्यनाथ की तरफ से कहा जाना बड़ी बात है. ये तो साफ शब्दों में चेतावनी है, इस सलाहियत के साथ कि चीजों को कोई हल्के में लेने की कोशिश हुई तो लेने के देने पड़ सकते हैं. 

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और ब्रह्मास्त्र तो वो कानून है जिसमें लव-जिहाद के खिलाफ पहले के मुकाबले ज्यादा ही सख्त सजा के प्रावधान किये गये हैं. शादी के लिए जबरन धर्मांतरण के खिलाफ योगी आदित्यनाथ ने लव-जिहाद के नाम से मुहिम शुरू की थी, जिसकी बदौलत वो मौजूदा मुकाम तक पहु्ंचे हैं - और जब उस जगह पर खतरा मंडरा रहा है तो फिर से उसी मुहिम को और भी सख्त तरीके से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. 

एक कानून ही काफी है, सरकार और संगठन में फर्क समझाने के लिए

'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम 2024' - धर्मांतरण विरोधी इस कानून को भी लव-जिहाद कानून के नाम से जाना जा रहा है - मीडिया की कई रिपोर्ट में यही नाम पढ़ने को मिल रहा है. कानून के नये स्वरूप में तथ्यों को छिपाकर या डरा-धमकाकर धर्म परिवर्तन कराने को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है, जिसमें उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है.

नवंबर, 2020 में ये एक ऑर्डिनेंस के रूप में सामने आया था, जो बाद में यूपी के दोनो सदनों से पास होकर 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021' में तब्दील हो गया था - और अब इसे संशोधित कर पहले के मुकाबले ज्यादा सख्त बना दिया गया है. 

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लव-जिहाद की मुहिम यूपी में हिंदू युवा वाहिनी की तरफ से चलाया जाता था. धीरे धीरे वो मुहिम अब कड़े कानून का रूप ले चुकी है. मुख्यमंत्री बनने से पहले, गोरखपुर का सांसद रहते योगी आदित्यनाथ मठ के दायित्वों से इतर अपने सामाजिक गतिविधियों के लिए हिंदू युवा वाहिनी का गठन किये थे, जो इतनी ताकतवर और असरदार हुई कि इलाके में उनका राजनीतिक दबदबा कायम हो गया - और बीजेपी के चुनाव जीतने के बाद वो मुख्यमंत्री भी बन गये. पांच साल सरकार चलाने के बाद सत्ता में वापसी भी कर ली, लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी के घटिया प्रदर्शन के बाद योगी आदित्यनाथ सवालों के घेरे में आ गये. 

चुनाव नतीजों के आते ही योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक विरोधी एक्टिव हो गये, और कहते हैं कि उसे बीजेपी के अंदर से ही हवा दी जाने लगी. विरोध का मुखर स्वर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के मुंह से सुनाई दिया, और फिर दूसरे उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक की तरफ से भी वैसे ही तौर तरीके दिखाई देने लगे.  

2019 के आम चुनाव के पहले संघ और बीजेपी दोनो की तरफ से सवाल उठाये जाने लगे थे कि अगर मोदी और योगी के रहते अयोध्या में राम मंदिर नहीं बना तो आखिर कब बनेगा? जाहिर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ यूपी में योगी आदित्यनाथ को भी हिन्दुत्व के कट्टर नेता के तौर पर समझा और समझाया जा रहा था - बहरहाल, अब तो मंदिर भी बन चुका है. 

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ये बात तो संघ और बीजेपी में सबको मालूम है कि हिंदू नेता की छवि ने ही मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री की कुर्सी से प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया है, और मोदी के बाद योगी के राजनीतिक उत्थान को भी उसी नजरिये से ही देखा जाने लगा है. 

जैसे मोदी की राह में कांटों का अंबार था, योगी के समर्थक मानते हैं कि उनकी राह में कांटो की दीवार खड़ी है. योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जो अभियान यूपी बीजेपी में चल रहा है, मकसद उनको डिस्टर्ब करना ही है, जिसे उनकी कुर्सी पर राजनीतिक विरोधियों की टिकी नजर के रूप में देखा जा रहा है. 

ध्यान देने वाली बात ये है कि जिन राजनीतिक मुद्दों की बदौलत योगी आदित्यनाथ ने यूपी के सीएम की कुर्सी पर कब्जा जमाया, उनको ही और मजबूती से आगे कर कुर्सी पर कब्जा बरकरार रखने की भी कोशिश कर रहे हैं - और लगे हाथ अपने राजनीतिक विरोधियों को अपनी स्टाइल में आगाह भी कर दिया है. 

बीजेपी को ऊपर से नीचे तक आगाह करने का तरीका भी जबरदस्त है

लखनऊ में लोकभवन में NDA विधानमंडल दल की बैठक में योगी आदित्यनाथ ने जो कहा है, उनके मुंह से ऐसे राजनीतिक बयान की शायद ही किसी को अपेक्षा रही होगी. क्योंकि चुनावों में तो सबकी गर्मी शांत कर देने जैसी बातें ही करते हैं. और लोकसभा चुनाव नहीं, बल्कि विधानसभा चुनाव में जब उनका सब कुछ दांव पर लगा होता है. 

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ये कहना कि आज की तारीख में विधानसभा के चुनाव करा दिये जायें तो बीजेपी और समाजवादी पार्टी की बराबर सीटें आ जाएंगी, 185-185. ये बाद योगी आदित्यनाथ ने तब कही थी जब विधानसभा सत्र से पहले बीजेपी और गठबंधन सहयोगियों की बैठक हो रही थी.  

लोकसभा चुनाव 2024 के आधार पर हिसाब किताब के जरिये योगी आदित्यनाथ ने आंकड़ों के जरिये यूपी में बीजेपी की मौजूदा हैसियत का स्केच अपने तरीके से दिखाया. विधानसभा वार आकलन पेश करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा, लोकसभा के चुनाव के हिसाब से देखा जाये, तो 183 सीटों पर समाजवादी पार्टी और 16 सीटों पर कांग्रेस जीती है... और अगर अभी विधानसभा चुनाव हो जायें, तो बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों को बराबर 185-185 सीटें मिलेंगी.

ऐसे में जबकि जल्दी ही उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं, योगी आदित्यनाथ ने ऐसा बयान यूं नहीं दिया है, बल्कि ये तो पूरी बीजेपी को अपनी तरफ से यूपी की राजनीतिक हकीकत से वाकिफ कराने की कोशिश है. 

देखा जाये तो योगी आदित्यनाथ ने अपनी तरफ से साफ कर दिया है कि अगर यूपी की कमान उनके हाथ से छूटी तो सरकार और संगठन में फर्क समझाने वाले भी उस स्थिति में नहीं रहेंगे. अगर सरकार की कमान उनके हाथ में नहीं रही तो संगठन कुछ नहीं कर पाएगा. सावधानी हटी नहीं कि समाजवादी पार्टी सरकार बना लेगी. ये तो ऐसा लग रहा है जैसे बीजेपी और नीतीश कुमार बिहार में जंगलराज के नाम पर लोगों को डराते रहते हैं, और यहां योगी आदित्यनाथ के निशाने पर उनके बीजेपी में राजनीतिक विरोधी हैं.

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योगी आदित्यनाथ ने अपनी तरफ जो कहना है कह दिया है. बीजेपी चाहे तो आजमा ले, और अब कोई ये बताने या जताने की कोशिश न करे कि यूपी में बीजेपी की हार के लिए योगी जिम्मेदार हैं. हार का एक ठीकरा भी योगी आदित्यनाथ ऐसे विधायकों पर भी फोड़ा है जो अपने इलाके और सोशल मीडिया पर एक्टिव नहीं हैं. मतलब, अगली बार उनके टिकट पर भी खतरा हो सकता है. जहां जहां बीजेपी लोकसभा सीटें हारी हैं, उसके लिए वहां के विधायक जिम्मेदार ठहराये जाएंगे - और अगले चुनाव से पहले उन सभी से हिसाब किताब भी होगा. जिन विधायकों का चुनावी प्रदर्शन अच्छा नहीं है, और वे चाहे जिस भी तरीके से विरोध प्रदर्शन में शामिल हैं, या फिर विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं, उनकी भी अब खैर नहीं है. 
 

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