केरल में अगले साल यानि 2026 अप्रैल में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. इस बीच केरल कांग्रेस में अंतर्कलह चरम पर है. सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस नेता शशि थरूर जैसा इंटलेक्चुअल, संतुलित और समझदार चेहरा अगर नाराज दिख रहा है तो मतलब साफ है कि पार्टी में उन्हें महत्व नहीं मिल रहा है. कांग्रेस सांसद शशि थरूर का ये कहना कि पार्टी के लिए वह उपलब्ध हैं, लेकिन पार्टी को मेरी सेवाओं की जरूरत नहीं तो मेरे पास विकल्प भी है. थरूर का यह बयान दिखाता है कि उन्हें दिल से किसी बात की पीड़ा हुई है. वो कहते हैं कि कांग्रेस विरोधी भी मुझे वोट देते हैं. मैं आरामदायक जिंदगी छोड़कर यहां आया था. वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के आग्रह पर संयुक्त राष्ट्र में कार्यकाल पूरा होने पर भारत आया था. इस तरह के बयान के बाद ऐसा माना जा रहा है कि उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का मन बना लिया है. जाहिर है कि यह कांग्रेस के लिए बहुत बड़ा सेटबैक साबित हो सकता है.पर सवाल उठता है कि कांग्रेस के नुकसान से किसको फायदा होगा? जाहिर है कि शशि थरूर की इस नाराजगी से लेफ्ट से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी की आखों में चमक दिख रही है. आइए देखते हैं कि वे क्या कारण है कि थरूर के लिए बीजेपी में उम्मीद की किरणें ज्यादा हैं.
1-केरल की राजनीति में कांग्रेस- हिंदू वोट और थरूर
केरल की राजनीति में कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोट तो मिलते ही हैं पर हिंदुओं का सपोर्ट भी वामपंथियों के मुकाबले कांग्रेस को मिलता रहा है. जिन लोगों को 2024 के लोकसभा चुनावों का कैंपेन याद होगा उन्हें याद होगा कि किस तरह कांग्रेस यहां ऐसे मुद्दों से बच रही थी जिसके चलते उन्हें मुसलमानों का हितैषी न साबित किया जा सके. राहुल गांधी की रैली से मुस्लिम लीग को दूर रखना रहा हो या सीएए का विरोध, कांग्रेस यहां फूंक फूंक कर कदम रख रही थी. केरल की सत्तारूढ़ वामपंथी पार्टी बराबर कांग्रेस को चैलेंज करती थी कि वो सीएए पर अपना रुख क्यों नहीं क्लियर कर रही है. केरल की वामपंथी सरकार ने सीएए को सर्वोंच्च न्यायालय में चैलेंज किया था. मुख्यमंत्री पिनराय विजयन अपनी सभाओं में कहा करते थे कि आखिर कांग्रेस शासित राज्य ऐसा क्यों नहीं करते. विजयन याद दिलाते कि राहुल गांधी अपनी न्याय यात्रा के दौरान कभी भी सीएए कानून का विरोध करते नहीं दिखे. दरअसल वामपंथी मुसलमानों के बीच यह साबित करना चाहते थे कि उनके असली हितैषी हम हैं. कांग्रेस इसलिए यहां सीएए के मुद्दे को नहीं उठा रही थी क्योंकि उसे डर था कि हिंदू उन्हें अपना विरोधी मान लेंगे.
केरल में बीजेपी के साथ यही संकट है कि हिंदू बीजेपी की बजाए अभी कांग्रेस के साथ हैं. जाहिर है कि केरल में बीजेपी को एक मजबूत चेहरा चाहिए. थरूर जैसा नेता अगर बीजेपी को केरल में मिल जाता है तो जो हिंदू कांग्रेस को वोट करते आएं हैं उन्हें बीजेपी की ओर लाना आसान होगा. थरूर को लेकर बीजेपी कुछ बड़ी प्लानिंग कर सकती है.
2-कांग्रेस से आए नेताओं को बीजेपी में मिल रही तवज्जो
एक समय था कि भारतीय जनता पार्टी में कांग्रेस से आए नेताओं को बहुत तवज्जो नहीं मिलती थी, पर अब पहले जैसी बात नहीं है. ज्योतिरादित्य सिंधिया, हिमंता बिस्व सरमा, रवनीत सिंह बिट्टू जैसे दर्जनों नाम हैं जो कांग्रेस से बीजेपी में आकर भारतीय जनता पार्टी का चेहरा बन चुके हैं. बीजेपी ने उन्हें पर्याप्त मौका दिया है. यही नहीं आज की तारीख में बीजेपी ऐसे भी कांग्रेसी आए हैं जो पीएम नरेंद्र मोदी के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करते रहे हैं. पर अब बीजेपी में हैं और उनमें से कई मंत्रिमरिषद के चेहरे भी हैं. जबकि शशि थरूर ने कभी भी पीएम मोदी के लिए कोई ऐसी बात नहीं कि जिनके चलते उन्हें शर्मिंदा होना पड़े. इसके उलट थरूर ने कई बार पीएम मोदी की तारीफ की है. यही तारीफ उनके लिए भारी पड़ती रही है.
3-थरूर और मोदी का एक दूसरे की तारीफ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शशि थरूर एक दूसरे की तारीफ करते रहे हैं. संसद के बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए भरे सदन में थरूर की एक तरह से ताऱीफ की थी. पीएम ने राहुल गांधी का नाम न लेते हुए कहा था कि'कुछ लोगों को लगता है जब तक फॉरेन पॉलिसी नहीं बोलते, तब तक वो मैच्योर नहीं लगते, इसलिए फॉरेन पॉलिसी तो बोलना चाहिए, भले देश का नुकसान हो जाए.' मोदी आगे बहुत कुछ कहते हैं पर ये अंतिम ये साफ करते हैं कि ये मैं शशि जी के लिए नहीं कह रहा हूं.' दरअसल नरेंद्र मोदी शशि थरूर को लेकर पहले भी कई बार ऐसा जेस्चर दिखाएं हैं जिससे उनका थरूर के लिए सम्मान दिखता रहा है. नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान जब सफाई का चैलेंज दे रहे थे उसमें पहले चैलेंज में ही उन्होंने शशि थरूर का नाम शामिल किया था. शशि थरूर ने भी पीएम को इसके लिए धन्यवाद अर्जन किया था. थरूर ने एक बार ही नहीं कई बार पीएम मोदी की तारीफ की थी.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप और पीएम मोदी की वार्ता के बाद शशि थरूर प्रधानमंत्री नरेंद्र की मोदी की तारीफ तो अभी हाल में की है, पर यह कोई पहली बार नहीं था. अप्रैल 2023 में शशि थरूर ने केरल के लिए वंदे भारत की घोषणा होने, जुलाई 2023 में पीएम मोदी के विदेश नीति की प्रशंसा की थी. उन्होंने कहा था मुस्लिम देशों से हमारे रिश्ते जितने अच्छे अभी हैं, उतने कभी नहीं रहे. अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर भी थरूर ने पीएम मोदी की तारीफ की थी. G20 को चर्चा का विषय बनाने के लिए मोदी की सराहना की थरूर ने की थी. उन्होंने कहा था कि जी-20 में भारत ने शानदार प्रदर्शन किया. विश्व अब भारत को नजर अंदाज नहीं कर सकता. दोनों के बीच इस तरह की केमिस्ट्री है कि भविष्य में थरूर अगर बीजेपी के साथ आते हैं तो जाहिर है कि यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होनी चाहिए.
4- थरूर की कांग्रेस में उपेक्षा
शशि थरूर पिछले 16 वर्षों से राजनीति में हैं और कांग्रेस के साथ हैं. वो डिप्लोमैट रहे और 2009 से कांग्रेस पार्टी के सांसद हैं. थरूर यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में विदेश राज्य मंत्री और मानव संसाधन राज्य मंत्री का दायित्व संभाला था. अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि इतने वरिष्ठ नेता को पार्टी संसद में बोलने से रोक रही है.किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद में उन्हें बोलने का मौका पार्टी नहीं दे रही है. उन्हें संसद और पार्टी समितियों में दरकिनार कर दिया है. जाहिर है किसी भी मुखर व्यक्तित्व को इस तरह का व्यवहार चुभ रहा होगा.थरूर को ऑल इंडिया प्रफेशनल कांग्रेस (AIPC) के प्रभार से भी हटा दिया गया है. जबकि यह संगठन थरूर का ही तैयार किया हुआ है. माना जा रहा है कि राहुल गांधी के साथ मुलाकात में थरूर ने इस बात के लिए नाराजगी जताई. थरूर युवा कांग्रेस की जिम्मेदारी संभालने को भी तैयार थे, लेकिन राहुल गांधी ने इसे भी अस्वीकार कर दिया.इसके पीछे माना जा रहा है कि गांधी परिवार के समर्थित उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे के विरोध में शशि थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ा था. गांधी परिवार को शायद थरूर का यह कदम अच्छा नहीं लगा था.थरूर 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी के नेता के रूप में अपनी उम्मीदवारी की वकालत करते हुए भी देखे जा रहे हैं. कथित तौर पर साक्षात्कार में दावा किया कि स्वतंत्र एजेंसियों के जनमत सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि वह केरल में (कांग्रेस) नेतृत्व के मामले में दूसरों से आगे हैं.