अरविंद केजरीवाल पर नई मुसीबत आ पड़ी है, और एक बार फिर ये सवाल खड़ा हो गया है क्या फिर से वो बाउंस बैक कर सकेंगे? आम आदमी पार्टी के नेता की नई मुसीबत ED यानी प्रवर्तन निदेशालय को केंद्रीय गृह मंत्रालय से मिली मुकदमा चलाने की मंजूरी है. अब ईडी दिल्ली शराब नीति केस से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अरविंद केजरीवाल के साथ साथ मनीष सिसोदिया के खिलाफ भी PMLA के तहत मुकदमा चला सकती है.
मुकदमा चलाने की मंजूरी तो पहले से मिली हुई है, लेकिन ये खबर ऐसे वक्त आई है जब अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव के लिए नई दिल्ली विधानसभा सीट नामांकन दाखिल किया है. सवाल तो भाजपा से भी पूछा जा रहा है कि एन चुनाव से पहले कार्रवाई की अनुमति देकर वह क्या हांसिल कर लेगी?
अब तक तो यही देखने को मिला है कि जब भी बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से घेरने की कोशिश हुई है, अरविंद केजरीवाल बचने का कोई रास्ता खोज ही ले रहे हैं. और अब तो लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी दिल्ली के मोर्चे पर धावा बोल चुके हैं.
जब अरविंद केजरीवाल पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव बनाया जा रहा था, तब वो खामोश रहे. जेल से बाहर आते ही इस्तीफा दे दिया, और अपनी जगह आतिशी को मुख्यमंत्री बना दिया. बेशक, कानूनी और व्यावहारिक मजबूरियां वजह रहीं, लेकिन ये फायदा तो हुआ ही कि राजनीतिक विरोधियों को हमले के लिए नई रणनीति बनानी पड़ी, और केजरीवाल के साथ साथ आतिशी को घेरने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनो को नई रणनीति बनानी पड़ी.
अब सवाल है कि अरविंद केजरीवाल नई मुसीबत से कैसे निकलेंगे और जांच एजेंसी को केंद्र सरकार से मिली मंजूरी का दिल्ली विधानसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा? क्या वे एक बार फिर जनता को यह भरोसा दिलाएंगे कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार कैसे उनके खिलाफ एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है. अब तो आम आदमी पार्टी यह आसानी से समझा सकती है कि चुनाव से ठीक पहले गृह मंत्रालय द्वारा ED को PMLA केस चलाने की इजाजत देना साबित करता है कि भाजपा उनके खिलाफ दुश्मनी का भाव रखती है. उन्हें झूठे आरोप में फंसा रही है.
दिल्ली में वोटिंग से पहले अगर ED का एक्शन हुआ तो
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के बाद से बीजेपी नेता दिल्ली में ‘आप-दा’ बोल कर अक्सर ही अरविंद केजरीवाल पर हमला बोल दे रहे हैं. मुश्किल ये है कि अरविंद केजरीवाल पर वास्तव में आपदा केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से आ गई है - और अब देखना है कि कैसे नई आपदा में अरविंद केजरीवाल नया अवसर ढूंढ पाते हैं?
सीबीआई को अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी पहले ही मिल गई थी, लेकिन ईडी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, अलग से मंजूरी चाहिये थी. एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ईडी को पीएमएलए के तहत मुकदमा चलाने के लिए विशेष मंजूरी की जरूरत है. और ये मंजूरी सक्षम प्राधिकारी ही दे सकता था, अब आगे की कार्रवाई के लिए ईडी के सामने रास्ता साफ है.
अब सवाल है कि आगे की कार्रवाई क्या हो सकती है? पहला एक्शन तो यही होगा कि चार्जशीट फाइल की जाये.
लेकिन, क्या चार्जशीट फाइल होने तक ही मामला रहेगा? क्या फिर से गिरफ्तारी जैसी स्थिति तो नहीं बन सकती है?
कहीं ईडी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जमानत रद्द करने की अपील तो नहीं होगी?
ये सब ऐसी काल्पनिक परिस्थितियां हैं, जिनके हकीकत में तब्दील होने में जरा भी देर नहीं लगेगी - मामला पॉलिटिकल जो है. केजरीवाल और उनकी टीम तो ऐसे ही इल्जाम लगाती रही है.
ईडी की आगे की कार्रवाई चाहे जैसी भी हो, लेकिन एक बात तो पक्की है, दिल्ली विधानसभा चुनाव पर असर तो जरूर पड़ेगा - ये बात अलग है कि कौन मुद्दे को किस रूप में प्रोजेक्ट और प्रचारित करता है, जो भी करेगा उसे फायदा मिलना पक्का है.
चीजें जो अरविंद केजरीवाल को उबारने का जरिया बन सकती हैं
जिस तरह राहुल गांधी दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ उतरे हैं, वो भी स्वाति मालीवाल के विरोध जैसा ही है. एक वाकये के बाद स्वाति मालीवाल और INDIA ब्लॉक में छिड़ी वर्चस्व की लड़ाई के बाद राहुल गांधी ने भी मोर्चा संभाल लिया है, जिसे फेस करना अरविंद केजरीवाल के लिए स्वाभाविक तौर पर जरूरी नहीं था.
फिर भी ऐसी कई चीजें हैं, जो अरविंद केजरीवाल के पक्ष में खड़ी लगती हैं, और मुश्किल घड़ी में मामूली सपोर्ट भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
1. दिल्ली में AAP को मिला INDIA ब्लॉक का सपोर्ट: अरविंद केजरीवाल को दिल्ली चुनाव में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव ने समर्थन दिया है.
ये समर्थन राहुल गांधी के खिलाफ भी जाता है, क्योंकि कांग्रेस के साथ ये ममता बनर्जी और अखिलेश यादव दोनो ही इंडिया ब्लॉक के मजबूत सदस्य हैं.
अरविंद केजरीवाल के लिए ममता बनर्जी से भी ज्यादा अखिलेश यादव का सपोर्ट मायने रखता है. अखिलेश यादव की अपील का पूर्वांचल से आये दिल्ली के वोटर पर पड़ सकता है. पूर्वांचल के लोग दिल्ली में कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
2. कल्याणकारी योजनाओं वाले चुनावी वादे: दिल्लीवालों के लिए आम आदमी पार्टी की तरफ से किये गये कल्याणकारी योजनाओं के वादे भी अरविंद केजरीवाल के लिए कवच बन सकते हैं.
पुजारी और ग्रंथी सम्मान योजना में हिंदुओं के साथ साथ अरविंद केजरीवाल ने सिख समुदाय को भी खुश करने की कोशिश की है. ऐसे ही संजीवनी योजना के तहत सत्ता में लौटने पर अरविंद केजरीवाल ने 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को मुफ्त इलाज की सुविधा देने का वादा किया है. मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना भी ऐसी ही एक महत्वपूर्ण पहल है.
चुनाव जीते तो केजरीवाल क्या फिर बन पाएंगे मुख्यमंत्री?
ये सवाल तो पहले से ही बना हुआ था कि क्या चुनाव जीतने की स्थिति में अरविंद केजरीवाल फिर से दिल्ली के मुख्यमंत्री बन पाएंगे?
और ईडी को मिली केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी के बाद कोई नई मुसीबत गले आ पड़ी तो क्या होगा?
देखा जाये तो सुप्रीम कोर्ट की जमानत की शर्तों के चलते अरविंद केजरीवाल के लिए मुख्यमंत्री बनने पर संशय तो बना ही हुआ है. अदालत ने जमानत देते वक्त ही बोल दिया था कि अरविंद केजरीवाल न तो सचिवालय या सीएमओ जा सकते हैं, न किसी भी फाइल पर हस्ताक्षर कर सकते हैं.
ऐसे हालात में अगर अरविंद केजरीवाल चुनाव जीत भी जाते हैं तो उनको फिर से सुप्रीम कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ेगी - और ईडी ने पहले ही पेंच फंसा दिया तो मामला बिगड़ भी सकता है.