अरविंद केजरीवाल को ED यानी प्रवर्तन निदेशालय ने दोबारा पूछताछ के लिए बुलाया है. ईडी ने फिर से समन भेज कर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पूछताछ के लिए 21 दिसंबर को पेश होने के लिए कहा है - लेकिन अब ये भी साफ हो गया है कि आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल पूछताछ के लिए प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर नहीं जा रहे हैं.
AAP के राज्य सभा सांसद राघव चड्ढा के ताजा बयान से साफ है कि अरविंद केजरीवाल प्रवर्तन निदेशालय के नोटिस को बिलकुल भी तवज्जो नहीं दे रहे हैं. मीडिया की तरफ से पूछे जाने पर राघव चड्ढा का कहना था, 'सब लोग जानते हैं कि माननीय मुख्यमंत्री 19 तारीख को विपश्यना के लिए प्रस्थान करेंगे... वो नियमित तौर पर जाते हैं विपश्यना के लिए, और ये उनका पहले से तय कार्यक्रम है... वो वकीलों से सलाह करके... ईडी को क्या जवाब देना है, जवाब देना है या नहीं... आगे की रणनीति तय करेंगे.'
प्रवर्तन निदेशालय ने इससे पहले भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को समन भेजा था, जिसमें 2 नवंबर को पेश होने के लिए कहा गया था. तब अरविंद केजरीवाल ने ईडी को भेजे गये अपने जवाब में नोटिस को राजनीति से प्रेरित करार देते हुए काफी अस्पष्ट बताया था. साथ ही विधानसभा चुनावों में अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए ईडी से पेशी का मंतव्य स्पष्ट करने को कहा था.
5 राज्यों में हुए चुनाव खत्म भी हो गये, नतीजे भी आ गये, और आम आदमी पार्टी के हाथ कहीं कुछ लगा भी नहीं. राघव चड्ढा ठीक कह रहे हैं, अरविंद केजरीवाल अक्सर थकाऊ कामकाज के बाद विपश्यना के लिए जाते रहे हैं. वैसे ही जैसे पहले प्राकृतिक चिकित्सा के लिए छुट्टी लेकर जाते रहे हैं.
जिस तरह से अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर पूछताछ के लिए ईडी के सामने पेश न होने का फैसला किया है, ऐसा लगता है दिल्ली शराब घोटाले की कानूनी जंग को अब वो पूरी तरह राजनीतिक तरीके से ही लड़ना चाहते हैं. आम आदमी पार्टी के तीन बड़े नेता मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और संजय सिंह पहले से ही कानूनी पचड़े में फंसे हुए हैं - और केजरीवाल और उनकी टीम की तरफ से जमानत लेने की कोशिशें जारी हैं.
मुश्किल ये है कि आम आदमी पार्टी की लीगल टीम अदालत को जमानत का आधार ठीक से समझा नहीं पा रही है, और जमानत अर्जी लगातार खारिज हो जा रही है. निश्चित रूप से अपनी संभावित गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल अपने केस में भी ऐसी ही स्थिति की कल्पना कर रहे होंगे.
अरविंद केजरीवाल को पहली बार नोटिस मिलने के बाद आम आदमी पार्टी की बैठक में तय हुआ था कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे को लेकर खुद फैसला लेने से अच्छा उन लोगों की राय ली जाये, जिन्होंने वोट देकर सत्ता सौंपी है. उसी मीटिंग में ये भी तय हुआ कि अगर लोगों ने साथ दिया तो जेल से ही सरकार चलाने के इंतजाम किये जाएंगे. दिल्ली सरकार के मंत्रियों सौरभ भारद्वाज और आतिशी ने बाकायदा जेल से सरकार चलाने की तैयारियों के बारे में बताया भी था.
अब ये तो साफ हो गया है कि अरविंद केजरीवाल 21 दिसंबर को ईडी दफ्तर जाने के बजाय विपश्यना शिविर में रहने का फैसला कर चुके हैं - ये समझना भी जरूरी हो गया है कि वो जेल जाने पर इतने आमादा क्यों हैं?
क्या केजरीवाल को लोगों की राय मिल चुकी है?
प्रवर्तन निदेशालय का पहला नोटिस मिलते ही अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों की तरफ से गिरफ्तारी की आशंका जतायी जाने लगी थी. नोटिस का जवाब देते हुए अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी नेताओं की बयानबाजी का भी हवाला दिया था.
और हाल ही में बीजेपी सांसद मनोज तिवारी के साथ एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दिल्ली में कहा था, '...जो आधी कैबिनेट जेल भेज चुका हो वो खुद कब तक जेल के बाहर रहेगा, इसकी गारंटी दिल्ली की जनता के सामने नहीं है.'
आम आदमी पार्टी की तरफ से 1 दिसंबर से दिल्ली में 'मैं भी केजरीवाल' सिग्नेचर कैंपेन चलाया जा रहा था. करीब तीन हफ्ते के इस कैंपेन में लोगों से पूछा जा रहा था कि क्या गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल को जेल में रह कर अपनी सरकार चलानी चाहिये? या इस्तीफा देना चाहिये?
आप के बहुत सारे नेताओं के साथ साथ दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी और सौरभ भारद्वाज ने भी अपने अपने इलाकों में कैंपेन में हिस्सा लिया. डोर टू डोर कैंपेन के दौरान आतिशा का कहना रहा, 'हम दिल्ली की जनता की राय लेने के लिए निकले हैं... आज केंद्र सरकार और बीजेपी झूठे आरोप लगा-लगाकर आम आदमी पार्टी के नेताओं को जेल में डाल रही है... बीजेपी ने सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को गिरफ्तार करा लिया और अब अरविंद केजरीवाल को भी गिरफ्तार करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है.'
आतिशी लोगों से मिल कर पूछ रही थीं कि अगर झूठे केस के तहत सीएम अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया जाता है, तो क्या उन्हें इस्तीफा देना चाहिए या जेल से सरकार चलानी चाहिए?
दिल्ली के लोगों ने क्या कहा? और कितने लोगों की राय इस्तीफे के पक्ष में रही या जेल से सरकार चलाने को लेकर औपचारिक तौर पर तो ये नहीं बताया गया, लेकिन कैंपेन के बीच में ही सौरभ भारद्वाज ने दावा किया कि फीडबैक अपेक्षा से कहीं ज्यादा है. 90 फीसदी से ज्यादा लोग मानते हैं कि अरविंद केजरीवाल को सरकार का नेतृत्व जारी रखना चाहिये. मतलब, जेल से सरकार चलाने का अपना इंतजाम जरूर करना चाहिये.
कैंपेन से पहले AAP नेता आतिशी ने बताया था कि जेल से सरकार चलाने के लिए वे लोग अदालत से अनुमति लेने की कोशिश करेंगे - और फिर दिशानिर्देशों के हिसाब से ही कामकाज होगा.
क्या केजरीवाल को गिरफ्तारी में ज्यादा फायदा नजर आ रहा है?
अरविंद केजरीवाल को दोबारा ईडी का नोटिस ऐसे वक्त मिला है जब विपक्षी गठबंधन INDIA के नेता मीटिंग के लिए दिल्ली में हैं. संसद की सुरक्षा में सेंध को लेकर विपक्ष के सांसदों के हंगामे के बाद बड़ी संख्या में उनको सस्पेंड किया गया है.
INDIA गुट की मीटिंग से पहले अरविंद केजरीवाल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात की है. तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर शेयर की है. वैसे ही वो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन से भी मिल चुके हैं.
अरविंद केजरीवाल अपने स्तर पर तो केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार से मुकाबले की रणनीति पर काम कर ही रहे हैं, विपक्षी दलों के नेताओं के साथ भी सामूहिक लड़ाई की योजना पर काम चल रहा है.
पहले अरविंद केजरीवाल विपक्षी खेमे के कुछ ही राजनीतिक दलों के साथ संपर्क रखा करते थे, लेकिन दिल्ली सेवा बिल पर उनको सबके साथ की जरूरत महसूस हुई. हमेशा ही परहेज रखने वाला कांग्रेस नेतृत्व भी अरविंद केजरीवाल को लेकर थोड़ा नरम हो गया था.
जैसे दिल्ली सेवा बिल पर केजरीवाल को पूरे विपक्ष का साथ मिला था, बीजेपी से लड़ाई में आगे भी वो वैसा ही इंतजाम चाहते हैं. मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के वक्त तो ऐसा हो भी चुका है, लेकिन तब कांग्रेस का साथ नहीं मिला था.
फर्ज कीजिये केजरीवाल अपने स्तर पर भी तैयारी कर लेते हैं, और विपक्ष का भी पूरा सपोर्ट मिलता है, तो निश्चित रूप से बीजेपी के खिलाफ लड़ाई थोड़ा आसान हो सकती है.
और केजरीवाल के मनमाफिक माहौल में गिरफ्तारी होती है तो वो और उनके साथी मौके का पूरा फायदा उठाना चाहेंगे. केजरीवाल की कोशिश होगी कि उनकी गिरफ्तारी मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, नवाब मलिक और संजय राउत जैसे नेताओं से बिलकुल अलग हो. गिरफ्तारी के बाद पूरे वक्त वो सुर्खियों में बने रहें - और 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के पक्ष में एक अच्छा माहौल बन जाये.
अरविंद केजरीवाल की लड़ाई सिर्फ बीजेपी से है, ऐसा नहीं लगता. दरअसल, अरविंद केजरीवाल के सामने एक चुनौती कांग्रेस को पछाड़ कर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनने की भी है.
विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद अरविंद केजरीवाल की तरफ से कांग्रेस को ये बताने और जताने की भी कोशिश हुई थी कि उत्तर भारत की सबसे बड़ी पार्टी तो AAP ही है. फैक्ट भी है, उत्तर भारत में दिल्ली के साथ पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है, जबकि कांग्रेस सिर्फ हिमाचल प्रदेश में सत्ता में है. वैसे तो कांग्रेस की तीन राज्यों में सरकार है, लेकिन कर्नाटक और तेलंगाना तो दक्षिण भारत में आते हैं - और ये बात ऐसे वक्त महत्वपूर्ण तो हो ही जाती है जब देश में उत्तर और दक्षिण को बांट कर राजनीतिक बहस चल रही हो.